वाराणसी: पूरे देश में रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा रहा है. आज के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं. इस बार काफी लंबे वक्त के बाद एक ऐसा अद्भुत संयोग बन रहा है, जो ना सिर्फ बहनों के लिए, बल्कि भाइयों के लिए भी काफी अच्छा और विशेष फलदायी माना जा रहा है. ज्योतिषियों की माने तो काफी लंबे वक्त के बाद रक्षाबंधन का पर्व सोमवार के दिन पड़ रहा है. जब सावन का सोमवार और पूर्णिमा का साथ हो, तो यह अपने आप में विशेष फलदायी होता है. यानी इस अद्भुत संयोग में रक्षाबंधन का पर्व मनाना अति फलदायी होगा.
ज्योतिषाचार्य आचार्य रणधीर कुमार पांडेय का कहना है कि सोमवती पूर्णिमा का विशेष फल पुराणों में वर्णित है. सावन के अंतिम सोमवार के साथ ही पूर्णिमा का साथ मिलना यह लगभग 30 वर्ष के बाद का संयोग है. 30 वर्ष के बाद पड़ रहा यह अद्भुत संयोग इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हर बार रक्षाबंधन पर भद्रा काल में राखी बांधने की मजबूरी से बचने के लिए बहनें लंबी तपस्या करती थीं. भद्रा खत्म होने का इंतजार करने की वजह से पूरा दिन उन्हें इंतजार करना पड़ता था, लेकिन इस बार सुबह 8:29 पर भद्रा खत्म हो रही है. सुबह 8:30 से लेकर रात्रि 8:21 तक पूर्णिमा मिल रही है. इसका तात्पर्य साफ तौर पर है कि रक्षाबंधन का पर्व पूरा दिन मनाया जा सकता है, जो विशेष फलदायी होगा.
ज्योतिषाचार्य का कहना है कि इतना ही नहीं, इस विशेष दिन पर सूर्य भी नक्षत्र परिवर्तन कर रहा है. वर्तमान समय में सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र में विराजमान है. सावन के अंतिम सोमवार यानी रक्षाबंधन के दिन सूर्य 10:40 पर सुबह पुनर्वसु नक्षत्र में प्रवेश करेगा. पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी कर्क है और कर्क के अधिपति चंद्रमा है. सूर्य और चंद्रमा का मित्रवत संबंध होने की वजह से यह विशेष फलदायी होगा. खासतौर पर जिन इलाकों में सूखे की स्थिति है, वहां दृष्टि अच्छी होगी और प्रकृति के लिए यह विशेष फलदायी और उत्तम होगा.
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि यह संयोग अद्भुत है. काफी लंबे वक्त के बाद सोमवार के दिन रक्षाबंधन का पर्व पड़ रहा है. इस दिन बहनें विशेष तौर पर भगवान गणेश की आराधना कर भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं. रक्षा सूत्र बांधते समय इन मंत्रों को पढ़कर बहनें भाइयों को रक्षा सूत्र बांधे.
येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेनत्वाम मनुबध्नामि रक्षंमाचल माचल।।
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, रक्षाबंधन को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं. विशेष तौर पर रक्षाबंधन पौराणिक कथाओं में पति-पत्नी के बीच भी राखी का त्यौहार मनाने की परंपरा का वर्णन है. कहा जाता है कि देवराज इंद्र और दानवों के बीच युद्ध की स्थिति में देवताओं की हार होने लगी थी. देवराज इंद्र की पत्नी शूची ने गुरु बृहस्पति के कहने पर देवराज इंद्र की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था, तब जाकर देवताओं की विजय हुई और देवराज इंद्र विजयी हुए.
इसके अलावा भगवान विष्णु के वामन अवतार के रूप में अवतरित होने के बाद प्रभु विष्णु ने जब राजा बली का सब कुछ दान में ले लिया, जिसके बाद माता लक्ष्मी ने उनकी परीक्षा लेने के लिए गरीब महिला बनकर रक्षा सूत्र बांधा था, जब राजा बलि ने कुछ ना होने की बात कह कर उन्हें कुछ भी ना दे पाने में असमर्थता जगाई थी, तब माता लक्ष्मी ने उन्हें अपने असली अवतार के दर्शन कर उन्हें आशीर्वाद दिया था. इसके अलावा भी कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं.