वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कला संकाय भवन में बुधवार को दो देशों और दो संस्कृतियों का मिलन देखने को मिला. संस्कार भारती के बैनर तले इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें लिथुआनिया देश और वहां से आए कुलग्रिंडा समूह ने यहां अपने देश की सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी. उन्होंने अपनी भाषा के गीतों को स्वरबद्ध किया. इस दौरान सभी श्रोता उनकी प्रस्तुति पर झूम उठे. उन लोगों ने हर हर शंभू और वंदे मातरम का गान भी किया. इसको सुनकर सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए.
लिथुआनिया देश की गुरु माता इंजिया ट्रेकनने ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत हमारी दूसरी मातृभूमि है. हमारे यहां सारे धार्मिक चिह्न और रीति-रिवाज भारतीय पद्धति से मेल खाते हैं. हमारे प्रमुख देवता सूर्य, कल्कि एवं इंद्र हैं. हमारे यहां 400000 गीतों का संग्रह है और वहां आज भी परंपरागत तरीके से वैवाहिक कार्यक्रम किए जाते हैं."
वहीं, बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. ज्ञानेश चंद्र पांडेय ने बताया कि लिथुआनिया देश और वहां से आए कुलग्रिंडा समूह ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी. इनकी प्रस्तुति शानदार रही. भारतीय सभ्यता की बहुत सी चीजें इनकी सभ्यताओं से मिलती हैं. पूरे देश में यह कई जगह कार्यक्रम कर रहे हैं. आज यह दल वाराणसी पहुंचा. वाराणसी से पहले यह देश में 5 स्थानों पर अपने कार्यक्रम कर चुके हैं. एक साथ दो सभ्यताओं को यहां पर देखना बहुत ही अच्छा रहा.
बीएचयू में आयोजित संस्कार भारती के इस कार्यक्रम में सभी कलाकारों को अतिथियों ने माल्यार्पण, अंगवस्त्रम और स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया. कार्यक्रम में प्रोफेसर प्रवेश कुमार, प्रो. प्रवेश श्रीवास्तव, डॉ. ज्ञानेश चंद्र पांडेय, नंदकिशोर ठरड, डॉक्टर सरिता त्रिपाठी, डॉक्टर अमिता भट्टाचार्य, डॉक्टर कुमार अम्बरीष चंचल, सुधीर पांडेय, दीपक शर्म, अर्पित सिधोरे, प्रमोद पाठक, अवधेश मिश्र, सुजीत कुमार उपस्थित रहे.
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