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वाराणसी: 61 साल पुराना संग्रहालय कराएगा आधुनिक पीढ़ी को भारतीय संस्कृति का बोध - वाराणसी के पुरातत्व संग्रहालय को मिलेगा नया रूप

यूपी के वाराणसी में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय के दिन अब बहुरने वाले हैं. काफी दयनीय और जर्जर स्थिति में पहुंच चुके इस संग्रहालय में मौजूद सैकड़ों हजारों साल पुरानी चीजों को अब संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए नए सिरे से कवायद शुरू की जा रही है.

वाराणसी के पुरातत्व संग्रहालय को मिलेगा नया रूप.
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Published : Jul 11, 2019, 3:22 PM IST

वाराणसी: मोक्षदायिनी काशी में मौजूद अपने आप में अनोखे और बेहद खास संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में मौजूद पुरातत्व संग्रहालय के दिन अब बदलने वाले हैं. जर्जर हो चुके इस संग्रहालय में मौजूद सैकड़ों हजारों साल पुरानी चीजों को अब संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए नए सिरे से शुरूआत की जा रही है. जिसके तहत इस संग्रहालय को संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी की ही एक अंग्रेजों के शासनकाल में बनाई गई. बिल्डिंग में शिफ्ट किए जाने की तैयारी चल रही है. इस बिल्डिंग का नवीनीकरण करवाकर नए रूप में तैयार किया जा रहा है.

वाराणसी के पुरातत्व संग्रहालय को मिलेगा नया रूप.

पुरातत्व संग्रहालय में होगा परंपरा और आधुनिकता का समन्वय

  • 1791 में बना यह विश्वविद्यालय मूलतः शासकीय संस्कृत महाविद्यालय था.
  • 22 मार्च 1958 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद के विशेष प्रयास से इसे विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया.
  • उस समय इसका नाम 'वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय' था जिसे सन् 1974 में बदलकर 'सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय' कर दिया गया.
  • संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ १२०० से अधिक संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय संबद्ध हैं.
  • इस विश्वविद्यालय में संस्कृत की शिक्षा-दीक्षा देने के साथ ही पुरातन समय की चीजों को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए एक पुरातत्व संग्रहालय भी बनाया गया था.
  • विश्वविद्यालय में 1950 के बाद बनाए गए इस संग्रहालय की स्थिति काफी खराब हो चुकी है.
  • लेकिन अब इसको नई बिल्डिंग में शिफ्ट कराये जाने की प्लानिंग तैयार कर विश्वविद्यालय प्रशासन को दी जा चुकी है.

डॉ. विमल त्रिपाठी ने बताया कि 1948 में संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी के जिस पुरातन प्रशासनिक भवन की नींव रखी गई थी और वह 1952 में बनकर तैयार हुआ था. उस भवन के नवीनीकरण का काम चल रहा है. अंग्रेजों ने इस भवन को बनाने के लिए पूर्वी भारत में सबसे ज्यादा पैसे खर्च किए थे. अपने आप में यह भवन बेहद खास है. इस भवन के तैयार हो जाने के बाद पुरातत्व संग्रहालय को इसी में शिफ्ट किया जाएगा.


वर्ष 1958 में हुई थी स्थापना

  • विश्वविद्यालय में संग्रहालय की स्थापना तत्कालीन कुलपति आदित्य नाथ झा के कार्यकाल में हुई थी.
  • इसका उद्घाटन छह अक्टूबर 1958 को तत्कालीन राज्यपाल वीवी गिरी ने किया था.
  • इस संग्रहालय में प्रागैतिहसिक काल से लेकर आधुनिक काल तक के सभी कालखंडों की कलाकृतियां संग्रहित हैं.

हिंदू वैदिक दर्शन की भी मिलेगी जानकारी

  • डॉ. विमल त्रिपाठी ने बताया कि इस पुरातन भवन में संग्रहालय के शिफ्ट होने के बाद इसे बेहद ही खास तरीके से तैयार कराया जाएगा.
  • इस संग्रहालय में लोगों को 16 संस्कारों के बारे में बताए जाने के लिए संस्कार वीथिका की मदद से चीजों को बताया जाएगा.
  • इसमें वैदिक दर्शन के साथ-साथ ज्योतिष दर्शन की जानकारी देने के लिए अलग-अलग वीथिकाएं भी बनाई जाएंगी.
  • लाइट एंड साउंड शो के जरिए चीजों को उसकी महत्ता के अनुसार बताए जाने के लिए इस संग्रहालय में हाईटेक तकनीकों का भी प्रयोग किया जाएगा.
  • इसके अलावा नक्षत्र वाटिका और कृषि वाटिका भी बनाए जाने की तैयारी है.

'पुरातात्विक संग्रहालय को ऐतिहासिक मुख्य भवन में स्थानांतरित करने के लिए प्रस्ताव बनाया गया है ताकि आधुनिक के साथ परंपरागत संग्रहालय स्थापित किया जा सके. इसके लिए इंटेक भी सहयोग करने के लिए तैयार है.
डॉ विमल त्रिपाठी, अध्य्क्ष, पुरातत्व संग्रहालय

वाराणसी: मोक्षदायिनी काशी में मौजूद अपने आप में अनोखे और बेहद खास संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में मौजूद पुरातत्व संग्रहालय के दिन अब बदलने वाले हैं. जर्जर हो चुके इस संग्रहालय में मौजूद सैकड़ों हजारों साल पुरानी चीजों को अब संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए नए सिरे से शुरूआत की जा रही है. जिसके तहत इस संग्रहालय को संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी की ही एक अंग्रेजों के शासनकाल में बनाई गई. बिल्डिंग में शिफ्ट किए जाने की तैयारी चल रही है. इस बिल्डिंग का नवीनीकरण करवाकर नए रूप में तैयार किया जा रहा है.

वाराणसी के पुरातत्व संग्रहालय को मिलेगा नया रूप.

पुरातत्व संग्रहालय में होगा परंपरा और आधुनिकता का समन्वय

  • 1791 में बना यह विश्वविद्यालय मूलतः शासकीय संस्कृत महाविद्यालय था.
  • 22 मार्च 1958 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद के विशेष प्रयास से इसे विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया.
  • उस समय इसका नाम 'वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय' था जिसे सन् 1974 में बदलकर 'सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय' कर दिया गया.
  • संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ १२०० से अधिक संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय संबद्ध हैं.
  • इस विश्वविद्यालय में संस्कृत की शिक्षा-दीक्षा देने के साथ ही पुरातन समय की चीजों को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए एक पुरातत्व संग्रहालय भी बनाया गया था.
  • विश्वविद्यालय में 1950 के बाद बनाए गए इस संग्रहालय की स्थिति काफी खराब हो चुकी है.
  • लेकिन अब इसको नई बिल्डिंग में शिफ्ट कराये जाने की प्लानिंग तैयार कर विश्वविद्यालय प्रशासन को दी जा चुकी है.

डॉ. विमल त्रिपाठी ने बताया कि 1948 में संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी के जिस पुरातन प्रशासनिक भवन की नींव रखी गई थी और वह 1952 में बनकर तैयार हुआ था. उस भवन के नवीनीकरण का काम चल रहा है. अंग्रेजों ने इस भवन को बनाने के लिए पूर्वी भारत में सबसे ज्यादा पैसे खर्च किए थे. अपने आप में यह भवन बेहद खास है. इस भवन के तैयार हो जाने के बाद पुरातत्व संग्रहालय को इसी में शिफ्ट किया जाएगा.


वर्ष 1958 में हुई थी स्थापना

  • विश्वविद्यालय में संग्रहालय की स्थापना तत्कालीन कुलपति आदित्य नाथ झा के कार्यकाल में हुई थी.
  • इसका उद्घाटन छह अक्टूबर 1958 को तत्कालीन राज्यपाल वीवी गिरी ने किया था.
  • इस संग्रहालय में प्रागैतिहसिक काल से लेकर आधुनिक काल तक के सभी कालखंडों की कलाकृतियां संग्रहित हैं.

हिंदू वैदिक दर्शन की भी मिलेगी जानकारी

  • डॉ. विमल त्रिपाठी ने बताया कि इस पुरातन भवन में संग्रहालय के शिफ्ट होने के बाद इसे बेहद ही खास तरीके से तैयार कराया जाएगा.
  • इस संग्रहालय में लोगों को 16 संस्कारों के बारे में बताए जाने के लिए संस्कार वीथिका की मदद से चीजों को बताया जाएगा.
  • इसमें वैदिक दर्शन के साथ-साथ ज्योतिष दर्शन की जानकारी देने के लिए अलग-अलग वीथिकाएं भी बनाई जाएंगी.
  • लाइट एंड साउंड शो के जरिए चीजों को उसकी महत्ता के अनुसार बताए जाने के लिए इस संग्रहालय में हाईटेक तकनीकों का भी प्रयोग किया जाएगा.
  • इसके अलावा नक्षत्र वाटिका और कृषि वाटिका भी बनाए जाने की तैयारी है.

'पुरातात्विक संग्रहालय को ऐतिहासिक मुख्य भवन में स्थानांतरित करने के लिए प्रस्ताव बनाया गया है ताकि आधुनिक के साथ परंपरागत संग्रहालय स्थापित किया जा सके. इसके लिए इंटेक भी सहयोग करने के लिए तैयार है.
डॉ विमल त्रिपाठी, अध्य्क्ष, पुरातत्व संग्रहालय

Intro:स्पेशल स्टोरी-

वाराणसी में मौजूद अपने आप में अनोखी और बेहद खास संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में मौजूद पुरातत्व संग्रहालय के दिन अब बदलने वाले हैं काफी दयनीय और जर्जर स्थिति में पहुंच चुके इस संग्रहालय में मौजूद सैकड़ों हजारों साल पुरानी चीजों को अब संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए नए सिरे से कवायद शुरू हो रही है. जिसके तहत इस संग्रहालय को संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी की ही एक पुरातन और अंग्रेजों के शासनकाल में बनाई गई उस बिल्डिंग में शिफ्ट किए जाने की तैयारी चल रही है जिसे रिनोवेशन करवाकर नए रूप में तैयार किया जा रहा है. इतना ही नहीं इस संग्रहालय में अब पुरातन और आधुनिकता का एक अनोखा संगम भी दिखाए जाने की प्लानिंग की गई है.


Body:वीओ-01 संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी में संस्कृत की शिक्षा दीक्षा देने के साथ ही पुरातन समय की चीजों को संरक्षित और सुरक्षित रखने की कवायद के तहत एक पुरातत्व संग्रहालय की भी नींव रखी गई थी 1950 के बाद बनाए गए इस संग्रहालय की स्थिति काफी खराब है लेकिन अब इस के दिन बहुत तेजी से बदलने वाले हैं पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ विमल कुमार त्रिपाठी का कहना है कि संग्रहालय को नया रूप दिए जाने और इसे नई बिल्डिंग में शिफ्ट कराये जाने ने की प्लानिंग तैयार कर यूनिवर्सिटी प्रशासन को दी जा चुकी है बस इंतजार उसको अप्रूवल मिलने का है डॉ विमल त्रिपाठी ने बताया कि 1948 में संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी के जिस पुरातन प्रशासनिक भवन की नींव रखी गई थी और 1952 में या बनकर तैयार हुआ था उस भवन के रेनोवेशन का काम चल रहा है उस वक्त अंग्रेजों ने इस भवन को बनाने के लिए पूर्वी भारत में सबसे ज्यादा पैसे खर्च किए थे अपने आपने यह भवन बेहद खास है और अब इस भवन के तैयार हो जाने के बाद इस पुरातत्व संग्रहालय को इसी में शिफ्ट किया जाएगा.

बाईट- डॉ विमल त्रिपाठी, अध्य्क्ष, पुरातत्व संग्रहालय, संम्पूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी


Conclusion:वीओ-02 उन्होंने बताया कि इस पुरातन भवन में संग्रहालय के शिफ्ट होने के बाद इसे बेहद ही खास तरीके से तैयार कराया जाएगा जिसकी पूरी रूपरेखा बन चुकी है इस संग्रहालय में लोगों को 16 संस्कारों के बारे में बताए जाने के लिए संस्कार रिप्लिका की मदद से चीजों को बताया जाएगा लाइट एंड साउंड शो के जरिए चीजों को उसकी महत्ता के अनुसार बताए जाने के लिए इस संग्रहालय में हाईटेक तरीके से चीजें रखी जाएंगी इसके अलावा नक्षत्र वाटिका और कृषि वाटिका भी मनाए जाने की तैयारी है यानी परंपरा और आधुनिकता का एक संगम इस पूरे संग्रहालय में देखने को मिलेगा जो अपने आप में भारत में इकलौता ऐसा संग्रहालय होगा जो इस रूप में काशी में लोगों तक चीजों को पहुचायेगा.

बाईट- डॉ विमल त्रिपाठी, अध्य्क्ष, पुरातत्व संग्रहालय, संम्पूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी

गोपाल मिश्र

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