वाराणसीः आजादी के अमृत महोत्सव के तहत वाराणसी के प्रसिद्ध अस्सी घाट के सुबह-ए-बनारस मंच पर तीन दिवसीय पुतुल उत्सव मनाया गया. उत्सव में राजस्थान, दिल्ली और यूपी के कठपुतली कलाकारों ने हिस्सा लिया. सबसे पहले राजस्थान के पारंपरिक गीतों और विजय गीतों को कठपुतली के माध्यम से दिखाया गया.
वाराणसी का अस्सी घाट भारत माता की जय और जय हिंद के नारों से गूंज उठा. यूपी के कलाकारों ने काकोरी कांड को कठपुतली के माध्यम से प्रदर्शित किया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर यूपी संगीत नाट्य अकादमी के अध्यक्ष व पद्मश्री राजेश्वर आचार्य मौजूद रहे.
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राजेश्वर आचार्य ने बताया कि यह बहुत पुरानी विधा है. इसमें कठिन से कठिन चीज को कठपुतली के माध्यम से आसान भाषाओं में लोगों तक पहुंचाया जाता है. दरअसल अपनी उंगलियों से कठपुतलियों में जीवन डाल देना अद्भुत कला है. कठपुतली का खेल बच्चों को बहुत ही पसंद आता है और बच्चे देश के भविष्य हैं, इसीलिए आजादी के 75 वर्ष के अवसर पर कठपुतली के माध्यम से देश की आजादी और विभिन्न प्रदेशों की कला को प्रदर्शित किया जा रहा है.
राजस्थानी कलाकार पूरन भाठ ने बताया कि कठपुतली राजस्थान की लोक संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है. आज हम लोगों ने जो प्रस्तुत किया उसमें हमारे दादा परदादा जब युद्ध जीतकर आते थे तो उनके विजय पर यह कार्यक्रम होता था. कठपुतली सैकड़ों वर्षो से चली आ रही है. आज अस्सी घाट पर कार्यक्रम करके बहुत अच्छा लगा. देश के अमृत महोत्सव में हम लोगों ने यह कार्यक्रम किया.
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