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वाराणसी: अक्षय नवमी के दिन धरती के प्रथम वृक्ष की हुई पूजा - वाराणसी समाचार

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में अक्षय नवमी के अवसर पर आंवले के वृक्ष की पूरे विधि-विधान से पूजा की गई. महिलाओं ने रक्षा सूत्र बांधकर, दीपक जलाकर, फल अर्पण कर भगवान विष्णु की आराधना की.

महिलाओं ने आंवले के वृक्ष की पूरे विधि विधान से पूजा पाठ किया.
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Published : Nov 10, 2019, 10:10 AM IST

वाराणसी: धर्मनगरी काशी में कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या धात्रीनवमी और "कुष्मांडा नवमी" कहा जाता है. इस दिन स्नान पूजन, तर्पण और दान से अक्षय फल प्राप्त होने की बात कही गई है. साथ ही इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने की भारतीय संस्कृति की मान्यता है. इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है और महिलाएं संतान की मंगलकामना के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं.

महिलाओं ने विधि-विधान से आंवले के पेड़ की पूजा की.

जिले के विभिन्न धार्मिक स्थलों सहित काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय अन्य स्थानों पर लोगों ने आंवले के वृक्ष की पूरे विधि विधान से पूजा पाठ किया. महिलाओं ने वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर दीपक जलाकर, फल अर्पण कर भगवान विष्णु आराधना किया. वहीं खीर, पूड़ी, सब्जी आंवले के वृक्ष के नीचे बनाकर आंवले को अर्पण कर उसके बाद प्रसाद रूप में उसे ग्रहण किया.

ये भी पढ़ें- BHU: पेंटिंग प्रदर्शनी में दिखी नारी की वेदना और साहस!

श्रद्धालु प्रतिमा पांडेय ने बताया कि आज अक्षय नवमी है. पूरे विधि-विधान से आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. फिर उसके नीचे बैठकर भोजन किया जाता. स्कंद पुराण की माने तो जब पूरा पृथ्वी समाप्त हो गया तो ब्रह्माजी तपस्या करने लगे. उनके आंखों से जो पानी गिरा उससे यह धरती पर पहला वृक्ष निकला. इसलिए इस वृक्ष की पूजा करने से आज के दिन हर प्रकार के चीजों का अंत होता है. संतान प्राप्ति के साथ ही संतान निरोग रहते हैं और आंवले के तो हमारे आयुर्वेद में भी बहुत महत्व है.

वाराणसी: धर्मनगरी काशी में कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या धात्रीनवमी और "कुष्मांडा नवमी" कहा जाता है. इस दिन स्नान पूजन, तर्पण और दान से अक्षय फल प्राप्त होने की बात कही गई है. साथ ही इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने की भारतीय संस्कृति की मान्यता है. इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है और महिलाएं संतान की मंगलकामना के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं.

महिलाओं ने विधि-विधान से आंवले के पेड़ की पूजा की.

जिले के विभिन्न धार्मिक स्थलों सहित काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय अन्य स्थानों पर लोगों ने आंवले के वृक्ष की पूरे विधि विधान से पूजा पाठ किया. महिलाओं ने वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर दीपक जलाकर, फल अर्पण कर भगवान विष्णु आराधना किया. वहीं खीर, पूड़ी, सब्जी आंवले के वृक्ष के नीचे बनाकर आंवले को अर्पण कर उसके बाद प्रसाद रूप में उसे ग्रहण किया.

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श्रद्धालु प्रतिमा पांडेय ने बताया कि आज अक्षय नवमी है. पूरे विधि-विधान से आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. फिर उसके नीचे बैठकर भोजन किया जाता. स्कंद पुराण की माने तो जब पूरा पृथ्वी समाप्त हो गया तो ब्रह्माजी तपस्या करने लगे. उनके आंखों से जो पानी गिरा उससे यह धरती पर पहला वृक्ष निकला. इसलिए इस वृक्ष की पूजा करने से आज के दिन हर प्रकार के चीजों का अंत होता है. संतान प्राप्ति के साथ ही संतान निरोग रहते हैं और आंवले के तो हमारे आयुर्वेद में भी बहुत महत्व है.

Intro:धर्म की नगरी काशी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी, या धात्रीनवमी तथा "कुष्मांडा नवमी" कहा जाता है इस दिन स्नान पूजन तर्पण तथा दान से अक्षय फल प्राप्त होने की बात कही गई।साथी आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भारतीय संस्कृति का मान्यता है। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है महिलाएं संतान के मंगल कामना के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करती है।


Body:जिले के विभिन्न धार्मिक स्थलों सहित काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय अन्य स्थानों जहां भी आंवले का वृक्ष लोगों ने पूरे विधि विधान से पूजन पाठ किया। महिलाओं ने वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर दीपक जलाकर फल अर्पण कर भगवान विष्णु आराधना किया। यथासंभव खीर पूड़ी सब्जी आंवले के वृक्ष के नीचे बनाकर आंवले को अर्पण कर आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन किया।


Conclusion:प्रतिमा पांडेय ने बताया आज अक्षय नवमी है। पूरे विधि-विधान से आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है फिर उसके नीचे बैठकर भोजन किया जाता। स्कंद पुराण की माने तो जब पूरा पृथ्वी समाप्त हो गया तो ब्रह्माजी तपस्या करने लगे उनके आंखों से जो पानी गिरा उससे यह धरती पर पहला वृक्ष निकला इसलिए इसे वृक्ष के पूजा करने से आज के दिन हर प्रकार के चीजों का छह होता है संतान प्राप्ति के साथ ही संतान निरोग रहते हैं और आंवले के तो हमारे आयुर्वेद में भी बहुत महत्व है प्लीज पुरानी परंपरा का हम लोगों ने निर्वाहन किया

बाईट :-- प्रतिमा पांडेय, श्रद्धालु

आशुतोष उपाध्याय

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