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शनि के साथ देवगुरु बृहस्पति भी 20 जून से हो जाएंगे वक्री, इन राशियों के लिए नहीं है शुभ - देव गुरु बृहस्पति का राशि परिवर्तन

देव गुरु बृहस्पति 20 जून से हो वक्री हो रहे हैं. वहीं शनि देव पहले से वक्री हैं. ऐसे में इन दोनों ग्रहों की यह वक्र दशा के कारण कुंभ समेत कई राशियों के लिए 18 अक्टूबर तक का समय शुभ नहीं है. ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार, शनि की वक्र दृष्टि भारत को शत्रु क्षेत्र में मजबूत बनाती जाएगी, तो वहीं भारतीय राजनीति में राजनीतिक स्तर पर भारी उथल-पुथल की स्थिति भी देखने को मिलेगी.

देवगुरु बृहस्पति भी 20 जून से हो जाएंगे वक्री
देवगुरु बृहस्पति भी 20 जून से हो जाएंगे वक्री
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Published : Jun 20, 2021, 4:00 AM IST

वाराणसी: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि देव और देव गुरु बृहस्पति का राशि परिवर्तन करना या फिर वक्री होना नवग्रह मंडल में बड़े असर को दर्शाता है. देव गुरु बृहस्पति 20 जून से वक्री होने जा रहे हैं जबकि सूर्यपुत्र शनिदेव पहले से ही वक्री हैं. शनि 10 अक्टूबर तक इसी स्थिति में रहेंगे. ऐसे में इन दो महत्वपूर्ण ग्रहों के वक्री होने से देश में कई परिवर्तन दिखाई देंगे.शनि देव को सूर्यपुत्र और यमराज के बड़े भाई और न्याय के देवता और बृहस्पति देवताओं के गुरू माने जाते हैं.

दो ग्रहों का वक्री होना इन राशियों के लिए अच्छा नहीं
ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी की मानें तो धनु, मकर, कुंभ पर शनि की साढ़ेसाती तो मिथुन, तुला पर शनि की ढैया चल रही है. देव गुरु बृहस्पति का कुंभ में संचरण कुंभ, मेष, मिथुन, सिंह, तुला राशि के जातकों के लिए अच्छा नहीं होने वाला है. इनके विशेष सतर्क रहने की जरूरत है.

शनि संग बृहस्पति का राशि परिवर्तन देगा यह फल
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि ग्रहों में शनि और बृहस्पति सबसे महत्वपूर्ण ग्रह माने जाते हैं. 12 राशियों पर संचरण सर्वाधिक समय तक इन दोनों ग्रहों का ही रहता है. जिसमें शनि देव एक राशि पर लगभग ढाई वर्ष तक और देवगुरु बृहस्पति एक राशि पर लगभग 13 महीने तक संचरण करते हैं. ये दोनों ग्रह जब एक राशि से दूसरी राशि पर संचरण करते हैं या यह जब कभी वक्री होते हैं तो इनका प्रभाव आम जनमानस के साथ पृथ्वी पर विशेष रूप से पड़ता है. शनि जब वक्री होते हैं तो इसका फल उन लोगों के लिए विशेषकर शुभ या अशुभ होता है, जिनके ऊपर शनि की साढ़ेसाती या अढैया होती है.

10 अक्टूबर तक शनि तो 18 अक्टूबर तक गुरु
फिलहाल शनिदेव वर्तमान समय में मकर राशि नक्षत्र पर वक्री हैं, जो आगामी 10 अक्टूबर तक श्रवण नक्षत्र पर ही मार्गी रहेगा. दूसरी तरफ 20 जून को बृहस्पति भी कुंभ राशि पर रात्रि 8:46 बजे से वक्री हो जाएंगे. 18 अक्टूबर को प्रातः 11:02 बजे पर मार्गी हो चुके बृहस्पति का भी वक्री होना ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कई प्रभाव डालेगा. 5 अप्रैल 2021 के पूर्व में देव गुरु बृहस्पति का संचरण मकर राशि से कुंभ राशि में चल रहा है. कुल मिलाकर 118 दिन देव गुरु बृहस्पति आकाश मंडल में वक्री रहेंगे. अर्थात आगामी 10 अक्टूबर को शनि देव मार्गी होंगे तो उनके 1 सप्ताह के बाद गुरु बृहस्पति मार्गी होंगे. जिसका देश के साथ लोगों पर भी गहरा असर पड़ेगा.

भारत होगा मजबूत लेकिन...
भारत की बात की जाए तो कुंडली के अनुसार, वृष लग्न कर्क राशि की कुंडली भारत की मानी जाती है. शनि की वक्र दृष्टि भारत की राशि कर्क पर पड़ रही है. वहीं कर्क राशि से बृहस्पति का वक्र संचरण अष्टम भाव कुंभ राशि पर होगा. वहीं भारत के शत्रु पड़ोसी देश चीन की कुंडली पर नजर डालने पर पता चलता है कि मकर लग्न मकर राशि की कुंडली की वजह से शनि और गुरु के वक्री होने का प्रभाव चीन को कमजोर करके भारत को मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा करेगा. दो बड़े ग्रहों के वक्री होने का यह योग भारत के शत्रुओं के लिए बेहद हानिप्रद और भारत के लिए लाभदायक होने जा रहा है. भारत को चारों तरफ से सफलता मिलती दिखाई दे रही है. ऐसे ग्रहों की स्थिति भारत की पूर्व वैश्विक नीति सफल करने में बड़ा कार्य करेगी, लेकिन अष्टमक बेहतरी के चलते भारत को फिर भी सतर्क रहने की आवश्यकता है. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भारत का विरोध जारी रखेगा, लेकिन शनि की वक्र दृष्टि भारत को शत्रु क्षेत्र में मजबूत बनाती जाएगी, तो वहीं भारतीय राजनीति में राजनीतिक स्तर पर भारी उथल-पुथल की स्थिति भी देखने को मिलेगी.

इसे भी पढ़ें- टूरिस्ट के लिए हेल्पलाइन है यह ज्योतिष, संस्कृत के बल पर ले डाला 8 भाषाओं का ज्ञान


यह है उपाय
उस काल में देव गुरु बृहस्पति और शनि देव की उपासना विशेष लाभप्रद होगी. जिन लोगों पर बृहस्पति या शनि अशुभ प्रभाव कुंडली में दे रहे हो, वह विशेष सतर्कता बरतें. इन दोनों से कुंभ व मिथुन राशि वालों को विशेष सावधान रहना होगा. जिन राशियों पर गुरु के वक्री होने का बुरा असर पड़ रहा है, उनको भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए. केले के पेड़ में जल और हल्दी अर्पण करें. इसके साथ ही भगवान विष्णु की आराधना आपको विशेष फल और शांति प्रदान करेगी.

इन मंत्रों का करें जाप

  • ॐ बृं बृहस्पतये नम:
  • ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
  • ॐ भगवते वासुदेवाय नम: का जाप करें.

यह है इन राशियों पर असर

  • मेष - गुरु की वक्री अवस्था आपके निवेश के मामलों पर असर डालेगी. इसके लिए विशेष सतर्कता बरतें लेनदेन में जल्दबाजी न करें नहीं तो नुकसान हो सकता है.
  • मिथुन- गुरु का वक्री होना घर परिवार में रिश्तों पर गहरा असर डालेगा. रिश्ते खराब होंगे. पठन-पाठन करने वाले लोगों को काफी मेहनत करनी होगी.
  • सिंह- सिंह राशि के लिए वक्री गुरु पानी लेकर आ रहा है. दांपत्य जीवन में स्थितियां खराब होंगी और काफी बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.
  • तुला- गुरु का राशि परिवर्तन राशि के जातकों के लिए अच्छा नहीं होने वाला है. बुरी आदतों को छोड़ना जरूरी होगा, नहीं तो आप किसी बड़ी मुसीबत में फंस सकते हैं.
  • कुंभ- गुरु का व्रकी होना आपको भ्रमित करेगा. हड़बड़ी में लिए गए फैसलों से नुकसान की आशंका है सोच समझकर कोई भी फैसला करें.

वाराणसी: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि देव और देव गुरु बृहस्पति का राशि परिवर्तन करना या फिर वक्री होना नवग्रह मंडल में बड़े असर को दर्शाता है. देव गुरु बृहस्पति 20 जून से वक्री होने जा रहे हैं जबकि सूर्यपुत्र शनिदेव पहले से ही वक्री हैं. शनि 10 अक्टूबर तक इसी स्थिति में रहेंगे. ऐसे में इन दो महत्वपूर्ण ग्रहों के वक्री होने से देश में कई परिवर्तन दिखाई देंगे.शनि देव को सूर्यपुत्र और यमराज के बड़े भाई और न्याय के देवता और बृहस्पति देवताओं के गुरू माने जाते हैं.

दो ग्रहों का वक्री होना इन राशियों के लिए अच्छा नहीं
ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी की मानें तो धनु, मकर, कुंभ पर शनि की साढ़ेसाती तो मिथुन, तुला पर शनि की ढैया चल रही है. देव गुरु बृहस्पति का कुंभ में संचरण कुंभ, मेष, मिथुन, सिंह, तुला राशि के जातकों के लिए अच्छा नहीं होने वाला है. इनके विशेष सतर्क रहने की जरूरत है.

शनि संग बृहस्पति का राशि परिवर्तन देगा यह फल
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि ग्रहों में शनि और बृहस्पति सबसे महत्वपूर्ण ग्रह माने जाते हैं. 12 राशियों पर संचरण सर्वाधिक समय तक इन दोनों ग्रहों का ही रहता है. जिसमें शनि देव एक राशि पर लगभग ढाई वर्ष तक और देवगुरु बृहस्पति एक राशि पर लगभग 13 महीने तक संचरण करते हैं. ये दोनों ग्रह जब एक राशि से दूसरी राशि पर संचरण करते हैं या यह जब कभी वक्री होते हैं तो इनका प्रभाव आम जनमानस के साथ पृथ्वी पर विशेष रूप से पड़ता है. शनि जब वक्री होते हैं तो इसका फल उन लोगों के लिए विशेषकर शुभ या अशुभ होता है, जिनके ऊपर शनि की साढ़ेसाती या अढैया होती है.

10 अक्टूबर तक शनि तो 18 अक्टूबर तक गुरु
फिलहाल शनिदेव वर्तमान समय में मकर राशि नक्षत्र पर वक्री हैं, जो आगामी 10 अक्टूबर तक श्रवण नक्षत्र पर ही मार्गी रहेगा. दूसरी तरफ 20 जून को बृहस्पति भी कुंभ राशि पर रात्रि 8:46 बजे से वक्री हो जाएंगे. 18 अक्टूबर को प्रातः 11:02 बजे पर मार्गी हो चुके बृहस्पति का भी वक्री होना ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कई प्रभाव डालेगा. 5 अप्रैल 2021 के पूर्व में देव गुरु बृहस्पति का संचरण मकर राशि से कुंभ राशि में चल रहा है. कुल मिलाकर 118 दिन देव गुरु बृहस्पति आकाश मंडल में वक्री रहेंगे. अर्थात आगामी 10 अक्टूबर को शनि देव मार्गी होंगे तो उनके 1 सप्ताह के बाद गुरु बृहस्पति मार्गी होंगे. जिसका देश के साथ लोगों पर भी गहरा असर पड़ेगा.

भारत होगा मजबूत लेकिन...
भारत की बात की जाए तो कुंडली के अनुसार, वृष लग्न कर्क राशि की कुंडली भारत की मानी जाती है. शनि की वक्र दृष्टि भारत की राशि कर्क पर पड़ रही है. वहीं कर्क राशि से बृहस्पति का वक्र संचरण अष्टम भाव कुंभ राशि पर होगा. वहीं भारत के शत्रु पड़ोसी देश चीन की कुंडली पर नजर डालने पर पता चलता है कि मकर लग्न मकर राशि की कुंडली की वजह से शनि और गुरु के वक्री होने का प्रभाव चीन को कमजोर करके भारत को मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा करेगा. दो बड़े ग्रहों के वक्री होने का यह योग भारत के शत्रुओं के लिए बेहद हानिप्रद और भारत के लिए लाभदायक होने जा रहा है. भारत को चारों तरफ से सफलता मिलती दिखाई दे रही है. ऐसे ग्रहों की स्थिति भारत की पूर्व वैश्विक नीति सफल करने में बड़ा कार्य करेगी, लेकिन अष्टमक बेहतरी के चलते भारत को फिर भी सतर्क रहने की आवश्यकता है. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भारत का विरोध जारी रखेगा, लेकिन शनि की वक्र दृष्टि भारत को शत्रु क्षेत्र में मजबूत बनाती जाएगी, तो वहीं भारतीय राजनीति में राजनीतिक स्तर पर भारी उथल-पुथल की स्थिति भी देखने को मिलेगी.

इसे भी पढ़ें- टूरिस्ट के लिए हेल्पलाइन है यह ज्योतिष, संस्कृत के बल पर ले डाला 8 भाषाओं का ज्ञान


यह है उपाय
उस काल में देव गुरु बृहस्पति और शनि देव की उपासना विशेष लाभप्रद होगी. जिन लोगों पर बृहस्पति या शनि अशुभ प्रभाव कुंडली में दे रहे हो, वह विशेष सतर्कता बरतें. इन दोनों से कुंभ व मिथुन राशि वालों को विशेष सावधान रहना होगा. जिन राशियों पर गुरु के वक्री होने का बुरा असर पड़ रहा है, उनको भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए. केले के पेड़ में जल और हल्दी अर्पण करें. इसके साथ ही भगवान विष्णु की आराधना आपको विशेष फल और शांति प्रदान करेगी.

इन मंत्रों का करें जाप

  • ॐ बृं बृहस्पतये नम:
  • ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
  • ॐ भगवते वासुदेवाय नम: का जाप करें.

यह है इन राशियों पर असर

  • मेष - गुरु की वक्री अवस्था आपके निवेश के मामलों पर असर डालेगी. इसके लिए विशेष सतर्कता बरतें लेनदेन में जल्दबाजी न करें नहीं तो नुकसान हो सकता है.
  • मिथुन- गुरु का वक्री होना घर परिवार में रिश्तों पर गहरा असर डालेगा. रिश्ते खराब होंगे. पठन-पाठन करने वाले लोगों को काफी मेहनत करनी होगी.
  • सिंह- सिंह राशि के लिए वक्री गुरु पानी लेकर आ रहा है. दांपत्य जीवन में स्थितियां खराब होंगी और काफी बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.
  • तुला- गुरु का राशि परिवर्तन राशि के जातकों के लिए अच्छा नहीं होने वाला है. बुरी आदतों को छोड़ना जरूरी होगा, नहीं तो आप किसी बड़ी मुसीबत में फंस सकते हैं.
  • कुंभ- गुरु का व्रकी होना आपको भ्रमित करेगा. हड़बड़ी में लिए गए फैसलों से नुकसान की आशंका है सोच समझकर कोई भी फैसला करें.
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