वाराणसी: कभी गंगा तो कभी गोमती और कभी कुछ ऐसी नदियां जिनका शायद किसी ने कभी नाम भी नहीं सुना होगा, धीरे-धीरे दम तोड़ रही हैं. इन नदियों को बचाने के लिए सरकारी तंत्र क्या-क्या नहीं करता और ऐसे ही प्रयास लगातार उस वरुणा नदी को लेकर भी हुए हैं, जिसकी पहचान बनारस से जुड़ी हुई है. ऐसी मान्यता है कि गंगा की सहायक नदी के बीच में बसे शहर को ही वाराणसी जाना जाता है. वरुणा नदी और अस्सी नदी के बीच में बसे शहर को ही वाराणसी कहा जाता है. लेकिन समय के साथ अब वरुणा भी अपने अस्तित्व को खो रही है. इसके उद्गम स्थल पर पानी की कमी के कारण नाले के रूप में तब्दील होती जा रही है. लेकिन एक बार फिर से इस नदी को पुनर्जीवित करने की उम्मीद जगी है. जिसके लिए डेनमार्क आगे आया है.
वरुणा कॉरिडोर बनाने की थी प्लानिंगः उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार रहते हुए अखिलेश ने गोमती रिवरफ्रंट की तर्ज पर बनारस में वरुणा का जीर्णोद्धार कर वरुणा कॉरिडोर बनवाने की प्लानिंग की थी, लेकिन सब ठंडे बस्ते में चला गया. लेकिन एक बार फिर से अखिलेश यादव के इस सपने को पूरा करने के लिए योगी सरकार डेनमार्क के साथ मिलकर काम करने जा रही है. जिसे लेकर यूपी सरकार और डेनमार्क के बीच एमओयू भी साइन हो चुका है.
डेनमार्क की टीम कर चुकी है सर्वेः इस बारे में जल निगम के परियोजना अभियंता और गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के लिए काम कर रहे विक्की कश्यप का कहना है कि वरुणा नदी को पुनर्जीवित करने के लिए अब डेनमार्क आगे आया है. अप्रैल के महीने में डेनमार्क की एक 8 सदस्यी टीम वाराणसी आई थी. उसने वरुणा नदी के उद्गम स्थल यानी फूलपुर और जौनपुर से होते हुए वाराणसी के रास्ते का ड्रोन सर्वे भी करवाया है. नदी के विलुप्त होने की वजह जानने की कोशिश शुरू कर दी है.
झीलों पर अतिक्रमण के कारण नहीं पहुंच रहा पानीः विक्की कश्यप का कहना है कि इतनी दूरी तय करके बनारस तक पहुंचने वाली नदी में पानी खत्म हो रहा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि फूलपुर में जिस मैलहन झील के जरिए इस नदी की उत्पत्ति होती है. वह पूरी झील ही अतिक्रमण के कब्जे में है. जिन अलग-अलग नदियों से इस झील में पानी आता था, उन सभी रास्तों पर अतिक्रमण होने की वजह से इस झील में पानी ही नहीं पहुंच रहा है. इसलिए सबसे पहले उस झील को अतिक्रमण मुक्त करना अनिवार्य है. इसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने फूलपुर में एक अलग कार योजना तैयार की है, जिससे सबसे पहले वह झील जीवित होगी और उसके बाद उससे आने वाला पानी वरुणा नदी में पुनः आना शुरू होगा.
वरुणा के पानी की नियमित टेस्टिंग करेगी डेनमार्क की टीमः विक्की कश्यप ने बताया कि डेनमार्क की टीम पूरा प्रयास कर रही है कि सबसे पहले नदी को जीवित करने के बाद इसके पानी की शुद्धता को बनाए रखा जाए. इसलिए एक टीम परमानेंट वाराणसी में डेरा डालने वाली है. इस प्लानिंग के तहत उत्तर प्रदेश सरकार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक प्रयोगशाला डेनमार्क की टीम को उपलब्ध करवाएगी. इसके अतिरिक्त डेनमार्क की टीम एक अपनी खुद की प्रयोगशाला भी काशी में स्थापित करने जा रही है. यह प्रयोगशाला नियमित रूप से वरुणा के पानी की टेस्टिंग करेगी और पानी की गुणवत्ता को मेंटेन करते हुए इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास करेगी. इस पूरे काम में अभी कितना खर्च आएगा, इसका कोई अनुमान नहीं है. क्योंकि सबसे पहला कार्य है नदी में पानी की व्यवस्था करना इस पानी की व्यवस्था के लिए तमाम प्रयास शुरू हो गए हैं और माना जा रहा है कि डेनमार्क की टीम बहुत जल्द काशी में आकर काम शुरू कर देगी.
कैसे पड़ा वरुणा नामः ज्योतिषाचार्य एवं विद्वान पंडित प्रसाद दीक्षित का कहना है कि गंगा पुराण और अन्य कथाओं के अनुसार सदियों पहले भीषण अकाल पड़ा था. उस वक्त पानी के लिए हर कोई त्राहि-त्राहि कर रहा था. तभी संतों ने भगवान भरोसे आह्वान किया था और उनका यज्ञ हवन किया गया था. जिसके बाद वरुण देवता ने इस स्थान पर ही अपने धनुष से प्रत्यंचा चढ़ा कर तीर को जमीन पर मारा था. भूमि पर जिस जगह तीर गिरा था. वहीं से एक बड़ा जल स्तोत्र फूटा था और उसने नदी का रूप ले लिया था. वरुण के द्वारा उत्पत्ति की वजह से ही इस नदी को वरुणा नाम दिया गया था.
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