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BHU के बॉयो-गोबर गैस प्लांट से बन सकेगा भोजन

बीएचयू के दुग्ध विज्ञान और खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग में सोमवार को बायोगैस और गोबर गैस प्लांट लगाया गया. काशी सेवा सदन द्वारा लगाए गए प्लांट का कृषि विज्ञान संस्थान निदेशक प्रो. रमेश चंद ने शुभारंभ किया.

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बायोगैस और गोबर गैस प्लांट का शुभारंभ.
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Published : Nov 10, 2020, 12:30 PM IST

वाराणसी : कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक रमेश चंद ने बीएचयू के दुग्ध विज्ञान और खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग में अजोला अमृत बायो गैस एवं गोबर गैस प्लांट का शुभारंभ किया. इस प्लांट से चार से पांच आदमी का खाना पकाने के लिए गैस प्राप्त की जा सकती है. इस प्लांट के द्वारा अपशिष्ट पदार्थों, गीला कचड़ा, बचा भोजन, माला-फूल और गोबर आदि को जैविक ईधन एवं खाद में बदला जा सकता है.

विभागाध्यक्ष, डॉ. दिनेश चन्द्र राय ने सभी अतिथियों का स्वागत किया. डाॅ राय ने बताया कि अपशिष्ट पदार्थ को उसके श्रोत पर ही निस्तारित करने में वेस्ट-टू- गैस प्लांट बहुत ही उपयोगी है. प्रोफेसर रमेश चन्द ने संस्था को धन्यवाद देते हुए कहा कि ऐसे मिनी प्लांट जो संचालन में अति आसान हैं, होटल, रेस्टोरेंट और छात्रावासों के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं. यहां बचे हुए भोजन से बाॅयो गैस बनाकर और अपशिष्ट से खाद बनाकर उसका समुचित निस्तारण किया जा सकता है. संकाय प्रमुख डॉ एपी सिंह ने बताया कि इस प्लांट की स्थापना से सभी लोग जागरूक एवं प्रेरित होंगे. वहीं काशी सेवा सदन समिति के अध्यक्ष के. एन. शर्मा ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत अजोला अमृत बाॅयो गैस और गोबर गैस प्लांट कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द केन्द्र के काशी सेवा सदन समिति ने बीएचयू के दुग्ध विज्ञान और खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान में यह दोनों प्लांट निःशुल्क स्थापित किया है.

उन्होंने बताया कि बायो गैस प्लांट के लिए प्रतिदिन 5 किलो ग्राम अपशिष्ट पदार्थ की जरूरत पड़ेगी. इसके अपघटन के पश्चात 500 ग्राम गैस का उत्सर्जन होगा. उसी अनुपात में जैविक खाद भी प्राप्त होगी. साथ ही दूसरे गोबर गैस प्लांट के लिए भी 20 किलोग्राम गोबर की प्रतिदिन जरूरत पड़ेगी. इसके अपघटन के बाद 430 ग्राम तक गैस का उत्सर्जन होगा. इसी अनुपात में जैविक खाद भी प्राप्त होगी. उन्होंने बताया कि यह प्लांट चार से पांच व्यक्तियों का भोजन बनाने के लिए पर्याप्त है. भविष्य में अपशिष्ट पदार्थ की मात्रा के अनुसार और भी बड़ा प्लांट लगाया जा सकता है.

उन्होंने यह भी अवगत कराया कि प्लांट से निकली जैविक खाद का उपयोग खेती के लिए उपयोग किया जा रहा है. चन्दौली, मिर्जापुर, गोरखपुर, सोनभद्र, भदोही और वाराणसी के गांवों में इस खाद का प्रयोग हो रहा है. साथ ही साथ संस्था ने यह भी बताया कि प्लांट द्वारा निकली हुई जैविक खाद को उचित मूल्य पर संस्था स्वंय खरीद भी लेती है. शहर में रोजाना करीब 617 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है. इसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा गीला कचड़ा होता है. संस्था की कोशिश है कि गीले कचड़े की मात्रा कम हो. वेस्ट टू गैस प्लांट से अपार्टमेंट, होटल, रेस्टूरेन्ट और कॉलोनियों में करीब 350 मीट्रिक टन गीला कचड़े का निस्तारण उसके श्रोत पर सम्भव है.

गैस बनाने की विधि

प्लांट में गोबर और पानी मिलाकर चार से पांच दिनों में गैस बनाई जाती है. इसे चलाने के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती है. क्षमता के अनुसार इसमें गीला कचड़ा डालना पड़ता है. गैस पहुंचाने के लिए एक पाइप रसोईघर में लगाई जाती है. लगभग 5 किलोग्राम क्षमता के प्लांट से 430 ग्राम गैस रोज मिलती है. साथ ही हर माह 90 किलो ग्राम तक जैविक खाद प्राप्त होती है. काशी सेवा सदन समिति के द्वारा अजोला हरा चारा जो पशु, भेड़-बकरियों, मुरगियों एवं मछलियों के लिए अत्यन्त लाभदायक है. यह अजोला हरित चारा विभिन्न प्रकार की बिमारियों से बचाता है तथा पशुओं को स्वस्थ रखता है. अजोला हरित चारा एक प्राकृतिक वरदान के रूप में है.

वाराणसी : कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक रमेश चंद ने बीएचयू के दुग्ध विज्ञान और खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग में अजोला अमृत बायो गैस एवं गोबर गैस प्लांट का शुभारंभ किया. इस प्लांट से चार से पांच आदमी का खाना पकाने के लिए गैस प्राप्त की जा सकती है. इस प्लांट के द्वारा अपशिष्ट पदार्थों, गीला कचड़ा, बचा भोजन, माला-फूल और गोबर आदि को जैविक ईधन एवं खाद में बदला जा सकता है.

विभागाध्यक्ष, डॉ. दिनेश चन्द्र राय ने सभी अतिथियों का स्वागत किया. डाॅ राय ने बताया कि अपशिष्ट पदार्थ को उसके श्रोत पर ही निस्तारित करने में वेस्ट-टू- गैस प्लांट बहुत ही उपयोगी है. प्रोफेसर रमेश चन्द ने संस्था को धन्यवाद देते हुए कहा कि ऐसे मिनी प्लांट जो संचालन में अति आसान हैं, होटल, रेस्टोरेंट और छात्रावासों के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं. यहां बचे हुए भोजन से बाॅयो गैस बनाकर और अपशिष्ट से खाद बनाकर उसका समुचित निस्तारण किया जा सकता है. संकाय प्रमुख डॉ एपी सिंह ने बताया कि इस प्लांट की स्थापना से सभी लोग जागरूक एवं प्रेरित होंगे. वहीं काशी सेवा सदन समिति के अध्यक्ष के. एन. शर्मा ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत अजोला अमृत बाॅयो गैस और गोबर गैस प्लांट कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द केन्द्र के काशी सेवा सदन समिति ने बीएचयू के दुग्ध विज्ञान और खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान में यह दोनों प्लांट निःशुल्क स्थापित किया है.

उन्होंने बताया कि बायो गैस प्लांट के लिए प्रतिदिन 5 किलो ग्राम अपशिष्ट पदार्थ की जरूरत पड़ेगी. इसके अपघटन के पश्चात 500 ग्राम गैस का उत्सर्जन होगा. उसी अनुपात में जैविक खाद भी प्राप्त होगी. साथ ही दूसरे गोबर गैस प्लांट के लिए भी 20 किलोग्राम गोबर की प्रतिदिन जरूरत पड़ेगी. इसके अपघटन के बाद 430 ग्राम तक गैस का उत्सर्जन होगा. इसी अनुपात में जैविक खाद भी प्राप्त होगी. उन्होंने बताया कि यह प्लांट चार से पांच व्यक्तियों का भोजन बनाने के लिए पर्याप्त है. भविष्य में अपशिष्ट पदार्थ की मात्रा के अनुसार और भी बड़ा प्लांट लगाया जा सकता है.

उन्होंने यह भी अवगत कराया कि प्लांट से निकली जैविक खाद का उपयोग खेती के लिए उपयोग किया जा रहा है. चन्दौली, मिर्जापुर, गोरखपुर, सोनभद्र, भदोही और वाराणसी के गांवों में इस खाद का प्रयोग हो रहा है. साथ ही साथ संस्था ने यह भी बताया कि प्लांट द्वारा निकली हुई जैविक खाद को उचित मूल्य पर संस्था स्वंय खरीद भी लेती है. शहर में रोजाना करीब 617 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है. इसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा गीला कचड़ा होता है. संस्था की कोशिश है कि गीले कचड़े की मात्रा कम हो. वेस्ट टू गैस प्लांट से अपार्टमेंट, होटल, रेस्टूरेन्ट और कॉलोनियों में करीब 350 मीट्रिक टन गीला कचड़े का निस्तारण उसके श्रोत पर सम्भव है.

गैस बनाने की विधि

प्लांट में गोबर और पानी मिलाकर चार से पांच दिनों में गैस बनाई जाती है. इसे चलाने के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती है. क्षमता के अनुसार इसमें गीला कचड़ा डालना पड़ता है. गैस पहुंचाने के लिए एक पाइप रसोईघर में लगाई जाती है. लगभग 5 किलोग्राम क्षमता के प्लांट से 430 ग्राम गैस रोज मिलती है. साथ ही हर माह 90 किलो ग्राम तक जैविक खाद प्राप्त होती है. काशी सेवा सदन समिति के द्वारा अजोला हरा चारा जो पशु, भेड़-बकरियों, मुरगियों एवं मछलियों के लिए अत्यन्त लाभदायक है. यह अजोला हरित चारा विभिन्न प्रकार की बिमारियों से बचाता है तथा पशुओं को स्वस्थ रखता है. अजोला हरित चारा एक प्राकृतिक वरदान के रूप में है.

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