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1669 से 1947 तक काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र की क्या रही स्थिति, जानें - वाराणसी में मंदिर मस्जिद विवाद

यूपी के वाराणसी में मंगलवार को काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले की सुनवाई हुई. इस दौरान काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर एवं स्थान को लेकर अधिवक्ताओं ने अपने पक्ष रखे. सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने 1669 से लेकर 1947 तक काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र के भूभाग के बारे में विस्तृत जानकारी दी.

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
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Published : Mar 10, 2021, 2:43 AM IST

वाराणसीः जनपद के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के कोर्ट में मंगलवार को काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में दाखिल दावे की पोषणीयता पर सुनवाई हुई. काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर स्थान, मां श्रृंगार गौरी, मां गंगा, भगवान हनुमान, भगवान गणेश व नंदी की पूजा-अर्चना और अधिकार को लेकर एडवोकेट हरिशंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री सहित अन्य ने 18 फरवरी को यह दावा दाखिल किया था. प्रभारी सिविल जज (सीनियर डिवीजन) ने इसे प्रकीर्णवाद के रूप में दर्ज करते हुए याचिका की पोषणीयता पर सुनवाई के लिए उसे पीठासीन अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दिया था.

सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने रखी मांग
सुनवाई के दौरान मंगलवार को हरिशंकर जैन ने मांग की कि श्रद्धालुओं को प्लॉट संख्या 9130 पर स्थित मां गौरी, भगवान विश्वेश्वर और देवताओं के मूल स्थान पर मंदिर निर्माण और दर्शन-पूजन का अधिकार मिले. उन्‍होंने कहा कि‍ काशी विश्वनाथ मंदिर के चारों ओर पांच कोस के दायरे में काशी अवमुक्तेश्वर क्षेत्र है, जहां देवी श्रृंगार गौरी स्वयंभू हैं.

मुगल शासक औरंगजेब ने ध्वस्त किया था मंदिर
एडवोकेट हरि‍शंकर जैन ने कहा कि‍ धार्मिक ग्रंथों में विश्वेश्वर मंदिर क्षेत्र में देवी श्रृंगार गौरी तथा अन्य देवों की पूजा निरंतर होने के प्रमाण मिलते हैं. मुगल शासक औरंगजेब ने वर्ष 1669 में ज्योर्तिलिंग और श्रृंगार गौरी के भव्य मंदिर के एक बड़े हिस्से को ध्वस्‍त करा दिया था. अन्य देवता उसी प्राचीन मंदिर में विराजते रहे, जिसे मुसलमान ज्ञानवापी मस्जिद का हिस्सा बताते हैं. हिंदू मंदिर के अवशेष आज भी ज्ञानवापी मस्जिद की दीवार पर देखे जा सकते है. प्राचीन पौराणिक देवता के पूरे भूभाग के एक हिस्से पर जबरन किए गए निर्माण को मस्जिद नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये निर्माण अधिकार से नहीं बल्कि अतिक्रमण से किया गया है.

1810 में डीएम ने प्रेसीडेंट काउंसिल को भेजा था पत्र
अधिवक्ता हरिशंकर ने कहा कि‍ वर्ष 1810 में तत्कालीन डीएम ने प्रेसीडेंट काउंसिल को पत्र भेजकर ज्ञानवापी परिक्षेत्र को हमेशा के लिए हिंदुओं को सौंपने की संस्तुति की थी. वर्ष 1936 के सिविल वाद का फैसला भी उच्च न्यायालय ने 1942 में ही किया था. उस मामले में भी तत्कालीन भारत सरकार ने विवादित प्रश्नगत संपत्ति पर मुस्लिमों के अधिकार को नकारते हुए लिखित बयान दिया था. उस मामले में 12 गवाहों ने अदालत के सामने उक्त धार्मिक स्थल पर लगातार पूजा पाठ होने की बात स्वीकारी थी.

अंजुमन 10 मार्च को रखेंगे अपना पक्ष
अधिवक्ता ने कहा कि 15 अगस्त 1947 तक भी उक्त श्रृंगार गौरी मंदिर और आसपास के क्षेत्र की स्थिति और चरित्र सनातन धार्मिक ही था. पूजा अधिनियम विशेष प्राविधान कानून 1991 के बारे में दलील देते हुए उन्होंने कहा कि अदालत को यह देखना चाहिए कि किसी भी धार्मिक स्थल की वही स्थिति मानी जाएगी जो 15 अगस्त 1947 को थी. देवता के धार्मिक स्थल वक्फ की संपत्ति नहीं हो सकता है. संविधान की विभिन्न प्राविधानों का हवाला देकर अदालत से मांग की कि पूरे ज्ञानवापी परिक्षेत्र को मंदिर घोषित किया जाए. हरिशंकर जैन का पक्ष सुनने के बाद अदालत ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को अपना पक्ष रखने के लिए 10 मार्च की तिथि तय कर दी है.

वाराणसीः जनपद के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के कोर्ट में मंगलवार को काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में दाखिल दावे की पोषणीयता पर सुनवाई हुई. काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर स्थान, मां श्रृंगार गौरी, मां गंगा, भगवान हनुमान, भगवान गणेश व नंदी की पूजा-अर्चना और अधिकार को लेकर एडवोकेट हरिशंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री सहित अन्य ने 18 फरवरी को यह दावा दाखिल किया था. प्रभारी सिविल जज (सीनियर डिवीजन) ने इसे प्रकीर्णवाद के रूप में दर्ज करते हुए याचिका की पोषणीयता पर सुनवाई के लिए उसे पीठासीन अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दिया था.

सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने रखी मांग
सुनवाई के दौरान मंगलवार को हरिशंकर जैन ने मांग की कि श्रद्धालुओं को प्लॉट संख्या 9130 पर स्थित मां गौरी, भगवान विश्वेश्वर और देवताओं के मूल स्थान पर मंदिर निर्माण और दर्शन-पूजन का अधिकार मिले. उन्‍होंने कहा कि‍ काशी विश्वनाथ मंदिर के चारों ओर पांच कोस के दायरे में काशी अवमुक्तेश्वर क्षेत्र है, जहां देवी श्रृंगार गौरी स्वयंभू हैं.

मुगल शासक औरंगजेब ने ध्वस्त किया था मंदिर
एडवोकेट हरि‍शंकर जैन ने कहा कि‍ धार्मिक ग्रंथों में विश्वेश्वर मंदिर क्षेत्र में देवी श्रृंगार गौरी तथा अन्य देवों की पूजा निरंतर होने के प्रमाण मिलते हैं. मुगल शासक औरंगजेब ने वर्ष 1669 में ज्योर्तिलिंग और श्रृंगार गौरी के भव्य मंदिर के एक बड़े हिस्से को ध्वस्‍त करा दिया था. अन्य देवता उसी प्राचीन मंदिर में विराजते रहे, जिसे मुसलमान ज्ञानवापी मस्जिद का हिस्सा बताते हैं. हिंदू मंदिर के अवशेष आज भी ज्ञानवापी मस्जिद की दीवार पर देखे जा सकते है. प्राचीन पौराणिक देवता के पूरे भूभाग के एक हिस्से पर जबरन किए गए निर्माण को मस्जिद नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये निर्माण अधिकार से नहीं बल्कि अतिक्रमण से किया गया है.

1810 में डीएम ने प्रेसीडेंट काउंसिल को भेजा था पत्र
अधिवक्ता हरिशंकर ने कहा कि‍ वर्ष 1810 में तत्कालीन डीएम ने प्रेसीडेंट काउंसिल को पत्र भेजकर ज्ञानवापी परिक्षेत्र को हमेशा के लिए हिंदुओं को सौंपने की संस्तुति की थी. वर्ष 1936 के सिविल वाद का फैसला भी उच्च न्यायालय ने 1942 में ही किया था. उस मामले में भी तत्कालीन भारत सरकार ने विवादित प्रश्नगत संपत्ति पर मुस्लिमों के अधिकार को नकारते हुए लिखित बयान दिया था. उस मामले में 12 गवाहों ने अदालत के सामने उक्त धार्मिक स्थल पर लगातार पूजा पाठ होने की बात स्वीकारी थी.

अंजुमन 10 मार्च को रखेंगे अपना पक्ष
अधिवक्ता ने कहा कि 15 अगस्त 1947 तक भी उक्त श्रृंगार गौरी मंदिर और आसपास के क्षेत्र की स्थिति और चरित्र सनातन धार्मिक ही था. पूजा अधिनियम विशेष प्राविधान कानून 1991 के बारे में दलील देते हुए उन्होंने कहा कि अदालत को यह देखना चाहिए कि किसी भी धार्मिक स्थल की वही स्थिति मानी जाएगी जो 15 अगस्त 1947 को थी. देवता के धार्मिक स्थल वक्फ की संपत्ति नहीं हो सकता है. संविधान की विभिन्न प्राविधानों का हवाला देकर अदालत से मांग की कि पूरे ज्ञानवापी परिक्षेत्र को मंदिर घोषित किया जाए. हरिशंकर जैन का पक्ष सुनने के बाद अदालत ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को अपना पक्ष रखने के लिए 10 मार्च की तिथि तय कर दी है.

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