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जल है तो कल है: गहरा सकता है वाराणसी में जल संकट

गहराता पेयजल संकट देश के सामने एक गंभीर समस्या है. अगर हालात ऐसे ही रहे तो वो दिन दूर नहीं जब गंगा नदी के किनारे बसा वाराणसी भी पेयजल के लिये मोहताज हो सकता है. शहर में पेयजल का संकट गहराता जा रहा है.

गहरा सकता है वाराणसी में जल संकट
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Published : Aug 17, 2019, 12:04 AM IST

वाराणसी: गंगा किनारे बसी मोक्षदायिनी काशी आने वाले दिनों में पानी के लिए तरस सकती है. देश के सबसे पुराने शहर में अप्रैल से लेकर जून-जुलाई तक पानी के लिए हाहाकार मचा रहा. गंगा के जलस्तर में लगातार कमी और तेजी से नीचे खिसकता ग्राउंड वाटर लेवल गंभीर समस्या है. पिछले 5 वर्षों में काशी का जलस्तर 4 से 5 मीटर नीचे खिसक चुका है. वाराणसी शहर की आबादी तकरीबन 20 लाख है. शहर में प्रति व्यक्ति औसतन 135 लीटर पानी की जरुरत पड़ती है जबकि शहर में प्रति व्यक्ति 92 लीटर पानी की सप्लाई ही हो पाती है. 20 लाख वाले शहर काशी को 27 करोड़ लीटर पानी चाहिए और शहर में 22 करोड़ लीटर पानी की ही आपूर्ति हो पाती है.

गहरा सकता है वाराणसी में जल संकट.

अब एक नजर डालते हैं कि शहर में कितना पानी बर्बाद हो जाता है.

रोकनी होगी पानी की बर्बादी-

  • पेयजल पाइपलाइन में लीकेज से करीब 11 करोड़ लीटर पानी की बर्बादी
  • सिटी के 90 वार्ड में से 40 में जरुरत के हिसाब से पानी नहीं
  • 90 वार्डों की करीब 45 फीसदी आबादी पानी के लिए तरसती है.
  • बनारस में 3200 कुएं और 470 तालाब सूखे
  • शहर में 6700 हैंडपंपों से पानी नहीं

गहराता जल संकट आने वाली पीढ़ी की बात छोड़िए, हमारे खुद के लिये भी एक गंभीर समस्या हो चुकी है. हम कई तरीकों को अपनाकर पानी बचा सकते हैं.

इन तरीकों से बचा सकते हैं जल-

  • नहाने के लिए शावर की जगह बाल्टी का इस्तेमाल करें
  • सेविंग करते समय नल बंद रखें
  • बर्तन धुलने के लिए नल की जगह टब का इस्तेमाल करें
  • जल संरक्षण के लिए अधिक से अधिक तालाब खोदे जाएं
  • सिंचाई के लिए पेयजल की बजाय गंदे पानी का इस्तेमाल करें
  • वर्षा का जल छतों पर भी संरक्षित करें
  • नदियों में फैक्ट्रियों का पानी नहीं बहाया जाए
  • जल संरक्षण के लिए रेनवाटर हार्वेस्टिंग अपनाएं

बारिश के पानी के संरक्षण के साथ ही घरों, बगीचों, कारखानों और दुकानों में भी पानी की बर्बादी रोकनी होगी. अगर हम आज नहीं जागे तो आने वाला वक्त हमें माफ नहीं करेगा. क्योंकि जल है तो कल है.

वाराणसी: गंगा किनारे बसी मोक्षदायिनी काशी आने वाले दिनों में पानी के लिए तरस सकती है. देश के सबसे पुराने शहर में अप्रैल से लेकर जून-जुलाई तक पानी के लिए हाहाकार मचा रहा. गंगा के जलस्तर में लगातार कमी और तेजी से नीचे खिसकता ग्राउंड वाटर लेवल गंभीर समस्या है. पिछले 5 वर्षों में काशी का जलस्तर 4 से 5 मीटर नीचे खिसक चुका है. वाराणसी शहर की आबादी तकरीबन 20 लाख है. शहर में प्रति व्यक्ति औसतन 135 लीटर पानी की जरुरत पड़ती है जबकि शहर में प्रति व्यक्ति 92 लीटर पानी की सप्लाई ही हो पाती है. 20 लाख वाले शहर काशी को 27 करोड़ लीटर पानी चाहिए और शहर में 22 करोड़ लीटर पानी की ही आपूर्ति हो पाती है.

गहरा सकता है वाराणसी में जल संकट.

अब एक नजर डालते हैं कि शहर में कितना पानी बर्बाद हो जाता है.

रोकनी होगी पानी की बर्बादी-

  • पेयजल पाइपलाइन में लीकेज से करीब 11 करोड़ लीटर पानी की बर्बादी
  • सिटी के 90 वार्ड में से 40 में जरुरत के हिसाब से पानी नहीं
  • 90 वार्डों की करीब 45 फीसदी आबादी पानी के लिए तरसती है.
  • बनारस में 3200 कुएं और 470 तालाब सूखे
  • शहर में 6700 हैंडपंपों से पानी नहीं

गहराता जल संकट आने वाली पीढ़ी की बात छोड़िए, हमारे खुद के लिये भी एक गंभीर समस्या हो चुकी है. हम कई तरीकों को अपनाकर पानी बचा सकते हैं.

इन तरीकों से बचा सकते हैं जल-

  • नहाने के लिए शावर की जगह बाल्टी का इस्तेमाल करें
  • सेविंग करते समय नल बंद रखें
  • बर्तन धुलने के लिए नल की जगह टब का इस्तेमाल करें
  • जल संरक्षण के लिए अधिक से अधिक तालाब खोदे जाएं
  • सिंचाई के लिए पेयजल की बजाय गंदे पानी का इस्तेमाल करें
  • वर्षा का जल छतों पर भी संरक्षित करें
  • नदियों में फैक्ट्रियों का पानी नहीं बहाया जाए
  • जल संरक्षण के लिए रेनवाटर हार्वेस्टिंग अपनाएं

बारिश के पानी के संरक्षण के साथ ही घरों, बगीचों, कारखानों और दुकानों में भी पानी की बर्बादी रोकनी होगी. अगर हम आज नहीं जागे तो आने वाला वक्त हमें माफ नहीं करेगा. क्योंकि जल है तो कल है.

Intro:प्रशांत जी के विशेष ध्यानार्थ। इससे जुड़ी अन्य खबरे रैप के जरिए भेजी जा रही हैं जो फाइल शॉर्ट हुआ डिटेल हैं।

वाराणसी: पानी की कमी आने वाले कल में बहुत गंभीर समस्या बन सकती है इसे लेकर पूरी दुनिया में मंथन चल रहा है लेकिन क्या हम पानी की इस आने वाली कमी को लेकर सतर्क है यह सवाल उठना लाजमी है और जब मामला देश के सबसे पुराने शहर बनारस का हो तो फिर यह सवाल और भी ज्यादा गंभीर हो जाता है धार्मिक और पुरातन नगरी होने के बाद राजनैतिक दृष्टि से भी यह शहर काफी महत्वपूर्ण बन चुका है लगातार दो बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में छोटी से छोटी समस्याएं भी विकराल रूप में नजर आने लगती है ऐसे में जिस तरह से हालात जल संकट के बनारस में बन रहे हैं वह संकट समय के साथ गहरा रहा है अप्रैल से लेकर जून-जुलाई गंगा के जलस्तर में होने वाली कमी और ग्राउंड वाटर लेवल का नीचे जाना इस शहर के लोगों की जिंदगी को कठिन करता जा रहा आंकड़ों की अगर बात की जाए तो मई और जून के महीने में गंगा अपने न्यूनतम स्तर से भी काफी नीचे चली जाती है जिसकी वजह से पीने के पानी की समस्या उत्पन्न होने लगती है और जलकल विभाग भी इसे लेकर हर साल अलर्ट जारी करने लगा है.


Body:वीओ-01 दरअसल पानी का संकट गहरा ना कहीं ना कहीं से इंसानी गलतियों का ही नतीजा है नदी वैज्ञानिक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महा मना पंडित मदन मोहन मालवीय गंगा शोध संस्थान के चेयरमैन प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी जल संकट को बहुत ही गंभीर मान रहा है उनका कहना है जिस तरह से बीते 5 सालों में वाराणसी का ग्राउंड वाटर लेवल घटा है उसने यह साफ कर दिया है कि जल संकट आने वाले दिनों में घर आने वाला है उनका कहना है कि मैं बीते 48 सालों से गंगा और अन्य नदियों पर रिसर्च कर रहा हूं ग्राउंडवाटर वाटर लेवल की स्थिति में हर दिन जा सकता हूं लेकिन बीते 5 सालों में बनारस में गंगा के साथ ग्राउंड वाटर लेवल की स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गई है गंगा जहां घाटों को छोड़कर अपने वास्तविक स्तर से भी नीचे जाती जा रही है, वहीं ग्राउंड वाटर लेवल भी 5 सालों में 4 से 5 मीटर नीचे जा चुका 5 साल पहले जहां बोरिंग कराने के लिए 40 से 50 फीट पर ही पानी मिल जाया करता था अब वह 90 फीट से ऊपर की स्थिति में मिलने लगा है और यह हालत और भी ज्यादा बिगड़ रही है गंगा किनारे रहने वाले लोगों को तो ग्राउंड वाटर लेवल 120 से 130 फिट पर मिलने लगा है यानी हालात बिगड़ रहे हैं और यदि हमने अपनी आदतों में बदलाव नहीं किया तो दिक्कत और भी ज्यादा बढ़ेगी.


Conclusion:वीओ-02 प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी का कहना है की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हम पानी की बर्बादी अलग-अलग स्तर पर करने लगे यहां पीने के पानी का इस्तेमाल हम खेती में कर रहे हैं वहीं पीने के पानी से ही अन्य घरेलू काम भी करने लगे हैं बोरिंग का पानी घरों में बहाया जा रहा है नदियों से पानी खींच कर उसका इस्तेमाल कृषि कार्यों में हो रहा है सबसे बड़े सोर्स जो ग्राउंड वाटर लेवल को बढ़ाने में मददगार होते थे तालाब और पोखरे अब खत्म होते जा रहे हैं शहरीकरण की वजह से पोखरे हो तालाबों पर लोग कब्जा कर इसे पाटकर यहां बिल्डिंग बनाने लगे हैं जिसकी वजह से बारिश का पानी जो इन पोखरेल तालाबों की मदद से ग्राउंड वाटर में जाता था वह अब नहीं पहुंच रहा है जिन जगहों पर ग्राउंड वाटर की स्थिति अच्छी है वहां प्रदूषित हो चुका है जिसके कारण आने वाला कल और भी ज्यादा खतरनाक होने वाला है. नदी वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्राउ वाटर लेवल घटने का नतीजा यह हो रहा है कि जो सरकारी हैंडपंप है वह भी सूखते जा रहे हैं बनारस में 80 से ज्यादा ऐसे सरकारी हैंडपंप है जो पूरी तरह से सूख चुके हैं इसके अलावा जलकल विभाग की तरफ से लगाए गए पंप भी सूख चुके हैं और अधिकांश री बोर होने की स्थिति में जो यह साफ इशारा कर रहा है कि आने वाला कल जल संकट को लेकर घर आने वाला है.
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