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वादों को पूरा कराने के लिए शहीद का परिवार खा रहा दर-दर की ठोकरें

24 जनवरी 2018 को शहीद हुए बीएसएफ के जवान अरविंद कुमार विमल के परिजनों से किए गए वादों को अभी तक पूरी नहीं किया गया है. बता दें कि अरविंद कुमार आतंकी हमले में शहीद हो गए थे.

बीएसएफ के जवान अरविंद कुमार विमल
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Published : Feb 17, 2019, 11:27 PM IST

उन्नाव : 24 जनवरी 2018 को शहीद हुए जिले के रसूलाबाद निवासी अरविंद कुमार विमल के परिजन दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है. उनकी सुनवाई को कोई भी अधिकारी और जनप्रतिनिधि तैयार नहीं है. परिजनों का कहना है कि वह लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के चक्कर काट चुके हैं लेकिन शहीद बेटे के लिए की गई घोषणाओं को पूरा कराने के लिए कोई भी अधिकारी व जनप्रतिनिधि उनकी बात नहीं सुन रहा है.

शहीद का परिवार किए गए वादों को पूरा कराने के लिए भटक रहा है.
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सरकार भले ही शहीदों के परिजनों को तमाम सुविधाएं देने का दावा करती हो लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं. जब भी कोई जवान सीमा पर शहीद होता है तो शहीद के परिजनों से मिलने के लिए मंत्रियों-संतरियों का तांता सा लग जाता है. मौके पर बड़े-बड़े वादे किए जाते है. लेकिन जब वादे पूरे करने का समय आता है तो फिर कोई दिखाई नहीं देता.

ऐसा ही एक मामला जिले के रसूलाबाद में सामने आया है जहां के निवासी बीएसएफ के जवान अरविंद कुमार विमल आतंकी हमले में बीते साल शहीद हो गए थे. अरविंद के शहीद होने के बाद उनके परिजनों से मिलने के लिए तमाम मंत्री और अधिकारी पहुंचे थे और परिजनों को ढांढ़स बधांते हुए उन्हें तमाम सुविधाएं देने का वादा किया था. काफी वक्त बीत जाने के बाद शहीद के परिजन वादों को पूरा कराने के लिए अधिकारियों और मंत्रियों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है.

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शहीद अरविंद की मां का कहना है कि जब मेरा बेटा शहीद हुआ था तो जिलाधिकारी और जनप्रतिनिधि उनके घर आए थे. साथ ही कह रहे थे कि आप बहुत ही खुद किस्मत हैं कि जिन्होंने एक ऐसे बच्चे को जन्म दिया है जिसने देश की सेवा में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया. वहीं सरकार की मंशा अनुरूप इन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने शहीद के परिवार को बड़े-बड़े सपने दिखाए लेकिन वह सपने अभी तक पूरे नहीं किए हैं.

अरविंद को शहीद हुए एक साल से अधिक हो गया है. उनका परिवार किए गए वादों को पूरा कराने के लिए दर-दर की ठोकरें खाता फिर रहा है लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. बता दें कि यह पहला ऐसा मामला नहीं है ऐसे कई मामले और हैं, जहां देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले जवानों की शहादत को भुलाकर उनके परिजनों से किए गए वादों को भुला दिया जाता है.

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उन्नाव : 24 जनवरी 2018 को शहीद हुए जिले के रसूलाबाद निवासी अरविंद कुमार विमल के परिजन दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है. उनकी सुनवाई को कोई भी अधिकारी और जनप्रतिनिधि तैयार नहीं है. परिजनों का कहना है कि वह लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के चक्कर काट चुके हैं लेकिन शहीद बेटे के लिए की गई घोषणाओं को पूरा कराने के लिए कोई भी अधिकारी व जनप्रतिनिधि उनकी बात नहीं सुन रहा है.

शहीद का परिवार किए गए वादों को पूरा कराने के लिए भटक रहा है.
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सरकार भले ही शहीदों के परिजनों को तमाम सुविधाएं देने का दावा करती हो लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं. जब भी कोई जवान सीमा पर शहीद होता है तो शहीद के परिजनों से मिलने के लिए मंत्रियों-संतरियों का तांता सा लग जाता है. मौके पर बड़े-बड़े वादे किए जाते है. लेकिन जब वादे पूरे करने का समय आता है तो फिर कोई दिखाई नहीं देता.

ऐसा ही एक मामला जिले के रसूलाबाद में सामने आया है जहां के निवासी बीएसएफ के जवान अरविंद कुमार विमल आतंकी हमले में बीते साल शहीद हो गए थे. अरविंद के शहीद होने के बाद उनके परिजनों से मिलने के लिए तमाम मंत्री और अधिकारी पहुंचे थे और परिजनों को ढांढ़स बधांते हुए उन्हें तमाम सुविधाएं देने का वादा किया था. काफी वक्त बीत जाने के बाद शहीद के परिजन वादों को पूरा कराने के लिए अधिकारियों और मंत्रियों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है.

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शहीद अरविंद की मां का कहना है कि जब मेरा बेटा शहीद हुआ था तो जिलाधिकारी और जनप्रतिनिधि उनके घर आए थे. साथ ही कह रहे थे कि आप बहुत ही खुद किस्मत हैं कि जिन्होंने एक ऐसे बच्चे को जन्म दिया है जिसने देश की सेवा में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया. वहीं सरकार की मंशा अनुरूप इन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने शहीद के परिवार को बड़े-बड़े सपने दिखाए लेकिन वह सपने अभी तक पूरे नहीं किए हैं.

अरविंद को शहीद हुए एक साल से अधिक हो गया है. उनका परिवार किए गए वादों को पूरा कराने के लिए दर-दर की ठोकरें खाता फिर रहा है लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. बता दें कि यह पहला ऐसा मामला नहीं है ऐसे कई मामले और हैं, जहां देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले जवानों की शहादत को भुलाकर उनके परिजनों से किए गए वादों को भुला दिया जाता है.

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Intro:24 जनवरी 2018 को शहीद हुए उन्नाव के रसूलाबाद निवासी अरविंद कुमार विमल के परिवार वाले आज दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर है उनकी सुनवाई को कोई भी अधिकारी व जनप्रतिनिधि तैयार नहीं है जहां परिवार वालों का कहना है कि वह लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के चक्कर काट चुके हैं लेकिन अपने बेटे की शहादत की याद में की गई घोषणाओं को पूरा कराने के लिए कोई भी अधिकारी व जनप्रतिनिधि उनकी बात नहीं सुन रहा है।


Body:वैसे तो हमारे देश में जब कोई सैनिक शहीद होता है तो लोगों की आस्था है कहीं ना कहीं शहीद के परिवार से जुड़ी रहती हैं चाहे वह अधिकारी हो या जनप्रतिनिधि सभी उससे मिलने आते हैं और बड़ी-बड़ी बातें करके चले जाते हैं वही जब कुछ दिन गुजरते हैं तो शहीद के परिजन उन बड़ी बातों को अमल में लाने के लिए उन अधिकारी व कर्मचारियों सहित उन जनप्रतिनिधियों के घर के चक्कर लगाते हैं ऑफिस के चक्कर लगाते हैं लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं इसी क्रम में आज उन्नाव के रसूलाबाद निवासी अरविंद कुमार विमल जो 24 जनवरी 2018 को शहीद हो गए थे वहीं उनके परिवार वालों को सरकार की तरफ से अपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है सरकार के जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों द्वारा की गई घोषणाओं को पूरा कराने के लिए परिवार दर-दर की ठोकरें खाता फिर रहा है लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हो रही है।


Conclusion:वही आज परिवार उन्नाव जिला अधिकारी की चौखट पर अपनी मांग पूरी ना होने का दुखड़ा रोने आया वही जब मांग पूरी न हुई तो उसने राष्ट्रपति संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को देने को सोचा लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई ना ही अधिकारी मिले और ना ही वह ज्ञापन दे सके वही परिवार वालों का कहना है कि जब मेरा बेटा शहीद हुआ था उसका शौक घर आया था तो यहां के जिला अधिकारी व जनप्रतिनिधि मेरे घर आकर यह कह रहे थे कि आप बहुत ही खुद किस्मती हैं जिन्होंने एक ऐसे बच्चों को जन्म दिया है जिसने देश की सेवा में अपना जीवन निछावर कर दिया वहीं सरकार की मंशा अनुरूप इन अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों ने को सहित परिवार को बड़े-बड़े सपने दिखाए लेकिन वह सपने अभी तक पूरे नहीं हुए 1 साल हो गया है परिवार दर-दर की ठोकरें खाता फिर रहा है क्या एक शहीद परिवार की प्रति लोगों की आस्था इतनी खराब हो गई हैं की उसकी कोई नहीं सुन रहा।

बाइट:-- शहीद की मां ।

बाइट :--शहीद का भाई।
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