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जहन्नुम से निजात दिलाता है रमजान का तीसरा अशरा: मुफ्ती इरफान मियां

राजधानी लखनऊ में इदारा-ए-शर‌इया फरंगी महल के अध्यक्ष मुफ्ती अबुल इरफान मियां फरंगी महली ने रमजान के पाक महीने का महत्व बताया है. उन्होंने सभी से अपील की कि सब लोग कोरोना वायरस से निजात और हिंदुस्तान की तरक्की और अमन के लिए दुआ करें.

मुफ्ती अबुल इरफान मियां फिरंगी महली
मुफ्ती अबुल इरफान मियां फिरंगी महली
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Published : May 6, 2021, 8:47 PM IST

लखनऊ: इदारा-ए-शर‌इया फरंगी महल के अध्यक्ष मुफ्ती अबुल इरफान मियां फरंगी महली ने रमजान के तीसरे अशरे की फजीलत बयान करते हुए बताया कि यह बड़े ही रहमतों का महीना है. रमजान को तीन अशरे में बांटा गया है. पहला अशरा रहमत का है. इस अशरे में अल्लाह तआला अपने रहमत से अपने बंदों को नवाजता है. दूसरा अशरा मगफिरत का है यानी रब्बुल आलमीन से अपने गुनाहों की माफी मांगने का. इस अशरे में अल्लाह का कोई भी बंदा अगर दिल से अपने गुनाहों की माफी मांगता है, तो रब्बुल आलमीन उसे माफ कर देता है. तीसरा अशरा निजात का है. इस अशरे में खुदा की इबादत करने वालों को जहन्नुम की आग से मुक्ति मिलती है.

रमजान का तीसरा अशरा सबसे महत्वपूर्ण
काजी-ए-शहर ने अपने बयान में कहा कि वैसे तो रमजान का पूरा महीना ही रहमतों का महीना है, लेकिन सबसे अहम है तीसरा अशरा, क्योंकि इसी अशरे की पाक रातों में यानी 21, 23, 25, 27, 29 रमजान की रातों में शब-ए-कद्र हो सकती है और शब-ए-कद्र की इबादत का सवाब 1000 साल की इबादतों के बराबर होता है. 27 रमजान की रात को कुरआन शरीफ नाजिल हुआ, इसलिए इन रातों की अहमियत काफी बढ़ जाती है. रोजेदार इन पांचों रात को जागकर खुदावंदे करीम की इबादत करते हैं.

आखिरी शुक्रवार को अदा होती है अलविदा की नमाज
जुमेतुल विदा रमजानुल मुबारक महीने का आखिरी जुमा (शुक्रवार) है और इस्लाम में जुमे की नमाज की फजीलत बहुत जयादा है. जुमेतुल विदा उर्फ जुमे की आखिरी नमाज अलविदा की अलग से कोई अहमियत नहीं है. काजी-ए-शहर ने कहा कि तीसरे अशरे में ही हम फितरा और जकात भी निकालते हैं, जिससे ईद की नमाज गरीब लोग भी खुशी से पढ़ सकें. वैसे ईद के बाद भी फितरा और जकात निकाला जा सकता है, लेकिन रमजान में ही यह निकालना बेहतर होता है, क्योंकि रमजान में हर नेकी का सवाब सत्तर गुना बढ़कर मिलता है. रमजान हमें बताता है कि हर किसी के साथ मिलकर रहें, बुराइयों से बचें. सिर्फ भूखे न रहें, हर नफ्स का रोजा रखें, मतलब एक इंसान को इंसानियत के राह पर ले जाने वाला होता है.

घरों पर ही पढ़ें अलविदा की नमाज
काजी-ए-शहर ने आवाम से अपील की कि जिस तरह हर जुम्मे को लोग अपने घर में ही जोहर की नमाज पढ़ते हैं, उसी तरह इस जुम्मे को भी लोग अपने घरों में ही नमाज अदा करेंगे. उन्होंने अपील में यह भी कहा है कि सभी हजरात से गुजारिश है कि लोग अपनी-अपनी बातों में अल्लाह की बारगाह में इस वबा कोरोना वायरस से निजात और हिंदुस्तान की तरक्की और अमन के लिए खूसूसी दुआ करें.

इसे भी पढ़ें- अब अदालतों में 10 मई से 4 जून तक रहेगा ग्रीष्मकालीन अवकाश

लखनऊ: इदारा-ए-शर‌इया फरंगी महल के अध्यक्ष मुफ्ती अबुल इरफान मियां फरंगी महली ने रमजान के तीसरे अशरे की फजीलत बयान करते हुए बताया कि यह बड़े ही रहमतों का महीना है. रमजान को तीन अशरे में बांटा गया है. पहला अशरा रहमत का है. इस अशरे में अल्लाह तआला अपने रहमत से अपने बंदों को नवाजता है. दूसरा अशरा मगफिरत का है यानी रब्बुल आलमीन से अपने गुनाहों की माफी मांगने का. इस अशरे में अल्लाह का कोई भी बंदा अगर दिल से अपने गुनाहों की माफी मांगता है, तो रब्बुल आलमीन उसे माफ कर देता है. तीसरा अशरा निजात का है. इस अशरे में खुदा की इबादत करने वालों को जहन्नुम की आग से मुक्ति मिलती है.

रमजान का तीसरा अशरा सबसे महत्वपूर्ण
काजी-ए-शहर ने अपने बयान में कहा कि वैसे तो रमजान का पूरा महीना ही रहमतों का महीना है, लेकिन सबसे अहम है तीसरा अशरा, क्योंकि इसी अशरे की पाक रातों में यानी 21, 23, 25, 27, 29 रमजान की रातों में शब-ए-कद्र हो सकती है और शब-ए-कद्र की इबादत का सवाब 1000 साल की इबादतों के बराबर होता है. 27 रमजान की रात को कुरआन शरीफ नाजिल हुआ, इसलिए इन रातों की अहमियत काफी बढ़ जाती है. रोजेदार इन पांचों रात को जागकर खुदावंदे करीम की इबादत करते हैं.

आखिरी शुक्रवार को अदा होती है अलविदा की नमाज
जुमेतुल विदा रमजानुल मुबारक महीने का आखिरी जुमा (शुक्रवार) है और इस्लाम में जुमे की नमाज की फजीलत बहुत जयादा है. जुमेतुल विदा उर्फ जुमे की आखिरी नमाज अलविदा की अलग से कोई अहमियत नहीं है. काजी-ए-शहर ने कहा कि तीसरे अशरे में ही हम फितरा और जकात भी निकालते हैं, जिससे ईद की नमाज गरीब लोग भी खुशी से पढ़ सकें. वैसे ईद के बाद भी फितरा और जकात निकाला जा सकता है, लेकिन रमजान में ही यह निकालना बेहतर होता है, क्योंकि रमजान में हर नेकी का सवाब सत्तर गुना बढ़कर मिलता है. रमजान हमें बताता है कि हर किसी के साथ मिलकर रहें, बुराइयों से बचें. सिर्फ भूखे न रहें, हर नफ्स का रोजा रखें, मतलब एक इंसान को इंसानियत के राह पर ले जाने वाला होता है.

घरों पर ही पढ़ें अलविदा की नमाज
काजी-ए-शहर ने आवाम से अपील की कि जिस तरह हर जुम्मे को लोग अपने घर में ही जोहर की नमाज पढ़ते हैं, उसी तरह इस जुम्मे को भी लोग अपने घरों में ही नमाज अदा करेंगे. उन्होंने अपील में यह भी कहा है कि सभी हजरात से गुजारिश है कि लोग अपनी-अपनी बातों में अल्लाह की बारगाह में इस वबा कोरोना वायरस से निजात और हिंदुस्तान की तरक्की और अमन के लिए खूसूसी दुआ करें.

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