सुलतानपुरः महाभारत काल के देव वृक्ष पारिजात को बचाने के लिए वन विभाग ने रक्षा सूत्र में बांधने की पहल की है. नागरिकों से आवाहन किया है कि वे पुरातन वृक्षों के संरक्षण के लिए आगे आएं, ताकि वन माफियाओं और सामान्यता संरक्षण के प्रति होने वाली लापरवाही से ऐसे पौराणिक वृक्षों का संरक्षण किया जा सके. लोग इसके संरक्षण की भावना से इसे रक्षा सूत्र में बांधकर इसके साथ जुड़ने का प्रयास करें.
पारिजता वृक्ष को उत्तर प्रदेश सरकार ने विरासत वृक्ष के रूप में घोषित किया है. सरकार इसके संरक्षण के लिए अपने स्तर से काम कर रही है, लेकिन स्थानीय स्तर पर ऐसे वृक्षों के संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों को जुड़ा जरूरी है. पारिजात जैसे वृक्ष बहुत कम बचे हैं. औषधीय गुणों से परिपूर्ण इस वृक्ष के संरक्षण के लिए वन विभाग जिले के लोगों से आगे आने का आवाहन किया है.
पारिजात वृक्ष के पीछे की पौराणिक कहानी
मान्यता है कि एक बार देवऋषि नारद धरती पर श्रीकृष्ण से मिलने आए तो अपने साथ पारिजात के सुंदर पुष्प लेकर आए. उन्होंने वे श्रीकृष्ण को भेंज कर दिया. श्रीकृष्ण ने पुष्प को साथ बैठी अपनी पत्नी रिक्मणी को दे दिए. जब श्री कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्य भामा को पता चला कि स्वर्ग से आए पारिजात के साथ पुष्प श्रीकृष्ण ने रुक्मणी को दे दिए तब उन्हें बड़ा क्रोध आया और उन्होंने सृष्ण के सामने जिद पकड़ ली कि उन्हें अपनी वाटिका में परिजात का वृक्ष चाहिए. श्री कृष्ण के लाख समझाने के बाद भी सत्य भामा नहीं मानी.
सत्यभामा के आगे झुकते हुए श्री कृष्ण ने अपने दूत को स्वर्ग भेजकर पारिजात के वृक्ष ले आने को कहा. लेकिन देवराज इंद्र ने पारिजात के वृक्ष के देने से साफ मना कर दिया. दूत से जब यह बात श्री कृष्ण को बताई तो उन्होंने स्वयं इंद्र पर आक्रमण कर दिया. दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ. देवमाता अदिति ने बीच बचाव करते हुए पारिजात को भगवान कृष्ण को सौंपा दिया.
इससे रुष्ट होकर इंद्र ने पारिजात को फल से वंचित रहने का श्राप दे दिया, तब से पारिजात वृक्ष फल से विहीन हो गया. श्री कृष्ण ने परिजात को लाकर सत्य भामा की वाटिका में रोपित कर दिया. लेकिन सत्य भामा को सबक सिखाने के लिए ऐसा कर दिया कि पारिजात के वृक्ष पर पुष्प आते तो गिरते रुक्मणी की वाटिका में. माना जाता है कि तभी से पारिजात का पुष्ण पेड़ के नीचे न गिरकर उससे दूर जाकर गिरता है. पारिजात वृक्ष के ऐतिहासिक महत्तव और इसकी दुर्लभता को देखते हुए सरकार ने इसे संरक्षित गोषित किया है. भारत सरकार ने इस पर डाक टिकट भी जारी किया है.
पारिजात को आयुर्वेद में हरसिंगार भी कहा जाता है. इसके फूल, पत्ते और चाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है. इसके पत्ते का सबसे अच्छा उपयोग साटिका रोग को दूर करने में किया जाता है. इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम औषधि माना जाता है. वर्ष में एक माह पारिजात पर फूल आने पर अगर इन फूलों का फिर फूलों के रस का सेवन किया जाय तो हृदय रोग से बचा जा सकता है. इसके अलावा त्वचा रोग और सूखी खांसी जैसी गंभीर बिमारियों के इलाज में पारिजात की पत्ती बहुत उत्तम मानी जाती है.
सुलतानपुर के प्रभागीय निदेशक आनंदकेश्वर प्रसाद कहते हैं कि जिला उद्योग केंद्र में पारिजात वृक्ष मौजूद है. जिसे विरासत वृक्ष का नाम दिया गया है. इसके संरक्षण के लिए इसे रक्षा सूत्र में बांधने का संकल्प और एक कार्यक्रम वन विभाग की तरफ से किया गया है. इसका उद्देश्य नागरिकों में एक जागरूकता पैदा करना है. जिन वृक्षों को विरासत वृक्ष के रूप में लिया गया है. उन्हें बचाने के लिए नागरिकों का सहयोग लेने का निर्णय लिया गया है. विरासत वृक्ष में दो पुरातन वृक्षों को शामिल किया गया है. पहला जिला उद्योग केंद्र में स्थित पारिजात और दूसरा पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे स्थित पुराना बरगद का वृक्ष.
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