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पूरा हिंदुस्तान मांगने वाले शायर अजमल सुल्तानपुरी को विदा देने उमड़ा शहर

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Published : Jan 30, 2020, 3:04 PM IST

Updated : Jan 30, 2020, 3:24 PM IST

मशहूर शायर अजमल सुल्तानपुरी का निधन हो गया. उनके निधन पर पूरा सुलतानपुर रो रहा है. कैबिनेट मंत्री मेनका गांधी उनके आवास पर पहुंची और उन्हें श्रद्धांजलि दी.

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मशहूर शायर अजमल सुल्तानपुरी का निधन.

सुलतानपुर: मेरे बचपन का हिंदुस्तान, न बांग्लादेश न पाकिस्तान, वो पूरा-पूरा हिंदुस्तान, जिसे मैं ढूंढ रहा हूं. मशहूर शायर अजमल सुल्तानपुरी भले ही आज वतन में न हों, लेकिन उनकी पंक्तियां लोगों के दिमाग में गूंज रही हैं. समरसता के महानायक और पथ-प्रदर्शक अजमल सुल्तानपुरी अपने जीवन भर हिंदू-मुस्लिम एकता के गीत गाते रहे. आज उनके निधन पर पूरा सुलतानपुर रो रहा है.

मशहूर शायर अजमल सुल्तानपुरी का निधन.

कैबिनेट मंत्री मेनका गांधी ने दी श्रद्धांजलि
कुड़वार ब्लाक अंतर्गत हरखपुर गांव निवासी अजमल सुल्तानपुरी की बचपन की शिक्षा अंग्रेजों के जमाने में हुई. उस समय न बांग्लादेश का वजूद था और न ही पाकिस्तान का. वे उसी पुराने पूरे हिंदुस्तान की बात किया करते थे. ताजमहल और हिंदुस्तान रचनाओं के जरिए चर्चित हुए शायर अजमल सुल्तानपुरी का बुधवार की रात निधन हो गया. उनके निधन पर जैसे काव्य धारा ठहर सी गई. कैबिनेट मंत्री मेनका गांधी उनके आवास पर पहुंचीं और उन्हें श्रद्धांजलि दी.

जीवन के 95 साल मां सरस्वती की पूजा में लगाए
वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र विक्रम सिंह ने कहा कि ये वह अजमल हैं, जिनको पढ़कर मुकम्मल हिंदुस्तान की तस्वीर दिखाई देती है. उनके दो प्रमुख नज्म ताजमहल और हिंदुस्तान से ही पूरे हिंदुस्तान को जाना जा सकता है. उन्होंने कभी कोई काव्य संग्रह नहीं लिखा. कोई नज्म की किताब नहीं लिखी, क्योंकि उनकी माली हालत बेहद खराब थी. किताबों के प्रकाशन न होने के पीछे उनकी आर्थिक तंगी थी. उन्होंने राजसाही के आगे अपना माथा कभी नहीं टेका. अपने जीवन के 95 साल मां सरस्वती की पूजा में ही गुजार दिए. गंगा-जमुनी तहजीब की बात की जाए तो उनकी हर नज्म में वह झलकती रही. उनमें कभी कोई वाद नहीं रहा. न दक्षिणवाद और न वामपंथ का. उन्होंने एक आम आदमी के साथ खड़े होकर अपनी रचनाएं की है. दक्षिण पंथ का काव्य सम्मेलन हो या मुशायरा हर तरफ अजमल ही छाए रहते थे.

सुलतानपुर: मेरे बचपन का हिंदुस्तान, न बांग्लादेश न पाकिस्तान, वो पूरा-पूरा हिंदुस्तान, जिसे मैं ढूंढ रहा हूं. मशहूर शायर अजमल सुल्तानपुरी भले ही आज वतन में न हों, लेकिन उनकी पंक्तियां लोगों के दिमाग में गूंज रही हैं. समरसता के महानायक और पथ-प्रदर्शक अजमल सुल्तानपुरी अपने जीवन भर हिंदू-मुस्लिम एकता के गीत गाते रहे. आज उनके निधन पर पूरा सुलतानपुर रो रहा है.

मशहूर शायर अजमल सुल्तानपुरी का निधन.

कैबिनेट मंत्री मेनका गांधी ने दी श्रद्धांजलि
कुड़वार ब्लाक अंतर्गत हरखपुर गांव निवासी अजमल सुल्तानपुरी की बचपन की शिक्षा अंग्रेजों के जमाने में हुई. उस समय न बांग्लादेश का वजूद था और न ही पाकिस्तान का. वे उसी पुराने पूरे हिंदुस्तान की बात किया करते थे. ताजमहल और हिंदुस्तान रचनाओं के जरिए चर्चित हुए शायर अजमल सुल्तानपुरी का बुधवार की रात निधन हो गया. उनके निधन पर जैसे काव्य धारा ठहर सी गई. कैबिनेट मंत्री मेनका गांधी उनके आवास पर पहुंचीं और उन्हें श्रद्धांजलि दी.

जीवन के 95 साल मां सरस्वती की पूजा में लगाए
वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र विक्रम सिंह ने कहा कि ये वह अजमल हैं, जिनको पढ़कर मुकम्मल हिंदुस्तान की तस्वीर दिखाई देती है. उनके दो प्रमुख नज्म ताजमहल और हिंदुस्तान से ही पूरे हिंदुस्तान को जाना जा सकता है. उन्होंने कभी कोई काव्य संग्रह नहीं लिखा. कोई नज्म की किताब नहीं लिखी, क्योंकि उनकी माली हालत बेहद खराब थी. किताबों के प्रकाशन न होने के पीछे उनकी आर्थिक तंगी थी. उन्होंने राजसाही के आगे अपना माथा कभी नहीं टेका. अपने जीवन के 95 साल मां सरस्वती की पूजा में ही गुजार दिए. गंगा-जमुनी तहजीब की बात की जाए तो उनकी हर नज्म में वह झलकती रही. उनमें कभी कोई वाद नहीं रहा. न दक्षिणवाद और न वामपंथ का. उन्होंने एक आम आदमी के साथ खड़े होकर अपनी रचनाएं की है. दक्षिण पंथ का काव्य सम्मेलन हो या मुशायरा हर तरफ अजमल ही छाए रहते थे.

Intro:स्पेशल स्टोरी ईटीवी भारत
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शीर्षक : अजमल सुल्तानपुरी ; कहां है मेरा हिंदुस्तान जिसे मैं ढूंढ रहा हूं।



एंकर : मेरे बचपन का हिंदुस्तान, न बांग्लादेश न पाकिस्तान, वो पूरा पूरा हिंदुस्तान, जिसे में ढूंढ रहा हूं.....। मशहूर शायर अजमल सुल्तानपुरी भले ही आज वतन में ना हो , लेकिन उनकी पंक्तियां लोगों के दिलो दिमाग में गूंज रही है। समरसता के महानायक और पथ प्रदर्शक अजमल सुल्तानपुरी अपने जीवन भर हिंदू मुस्लिम एकता के गीत गाते रहे। उनके निधन पर आज सुल्तानपुर रो रहा है।


Body:वीओ : सुल्तानपुर जिले के कुड़वार ब्लाक अंतर्गत हरखपुर गांव निवासी अजमल सुल्तानपुरी की बचपन की शिक्षा दीक्षा अंग्रेजों के जमाने में हुई। उस समय ना बांग्लादेश का वजूद था और ना ही पाकिस्तान का। वह उसी पुराने पूरे के पूरे हिंदुस्तान की बात किया करते थे। ताजमहल और हिंदुस्तान रचनाओं के जरिए चर्चित हुए शायर अजमल सुल्तानपुरी का बुधवार की रात निधन हुआ । उनके निधन पर जैसे काव्य धारा ठहर सी गई। कैबिनेट मंत्री मेनका गांधी उनके आवास पर पहुंची और श्रद्धांजलि दी।



बाइट : साहित्यकार डॉक्टर नियाज अहमद कहते हैं कि यही उनकी एक ग़ज़ल ऐसी थी। जिसके बाद अजमल साहब कुछ भी ना कहते तो भी उनके अमर होने के लिए यह काफी है। वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र विक्रम सिंह कहते हैं कि यह वह अजमल है। जिन को पढ़कर मुकम्मल हिंदुस्तान की तस्वीर दिखाई देती है। उनकी दो प्रमुख नज्म ताजमहल और हिंदुस्तान से ही पूरे हिंदुस्तान को जाना जा सकता है। उन्होंने कभी कोई काव्य संग्रह नहीं लिखा। कोई नज़्म की किताब नहीं लिखी। क्योंकि उनकी माली हालत बेहद खराब थी। किताबों के प्रकाशन के नहीं पीछे उनकी आर्थिक तंगी थी। लेकिन उन्होंने राजसाही के आगे अपना माथा कभी नहीं टेका। जैसा कि आज के परिवेश में दिखाई देता है। उन्होंने अपने जीवन के 95 साल मां सरस्वती की पूजा में ही गुजार दिए। गंगा जमुनी तहजीब की बात की जाए तो उनकी हर नज़्म में वह झलकती रही। उनमें कभी कोई वाद नहीं रहा। ना दक्षिण वाद ना वामपंथ का वाद। उन्होंने एक आम आदमी के साथ खड़े होकर अपनी रचनाएं की है। दक्षिण पंथ का काव्य सम्मेलन हो या मुशायरा हर तरफ अजमल ही छाए रहते थे।


Conclusion:आशुतोष मिश्रा, सुल्तानपुर, 94 150 49 256
Last Updated : Jan 30, 2020, 3:24 PM IST
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