सुलातनपुरः कार्यकाल बीत जाने के बावजूद नगर पालिका परिषद के कार्य में हस्तक्षेप करने के मुद्दे पर निवर्तमान चेयरमैन बबीता जायसवाल को करारा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने चेयरमैन को आपत्ति करने का अधिकार नहीं होने का हवाला देते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया है. शौचालय निर्माण और नगर पालिका परिषद सौंदर्यीकरण के लिए आमंत्रित टेंडर पर निवर्तमान चेयरमैन ने उच्च न्यायालय में आपत्ति दर्ज कराई गई थी.
नगर पालिका परिषद की तरफ से 80 लाख रुपये का प्रोजेक्ट तैयार किया गया था. इसमें शहर के 5 पार्किंग स्थलों पर शौचालय के निर्माण और शेड का निर्माण किया जाना था, जिससे पार्किंग स्थल से होकर जाने वाले नागरिकों को शौचालय की सुविधा दी जा सके. इसके अलावा गर्मी में शेड की व्यवस्था की जानी थी, ताकि यात्री वाहन मिलने तक सुविधा के अनुसार शेड के नीचे प्रतीक्षा कर सकें. बारिश में भी यात्रियों को खड़े होने का स्थान मिले. इसके लिए नगर पालिका परिषद द्वारा यह प्रबंधन किया जा रहा था.
25 मार्च को नगर पालिका परिषद की त्रिस्तरीय समिति द्वारा टेंडर आमंत्रित किया गया था, जिसके विरोध में चेयरमैन बबीता जायसवाल के पति हाईकोर्ट न्यायालय पहुंचे थे और दरवाजा खटखटा कर धन के दुरुपयोग को रोकने की मांग की थी. अब तक चेयरमैन रही बबीता जायसवाल के पति पूर्व जिला पंचायत सदस्य अजय जायसवाल ने इसे मुद्दा बनाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इसमें उन्होंने यह मांग की थी कि नगरपालिका की तरफ से जो शर्ट और शौचालय बनाए जा रहे हैं.
इसको लेकर अभी तक पार्किंग स्थलों का चयन भी सुनिश्चित नहीं किया जा सका है. ऐसे में धन का दुरुपयोग होगा. इसके अलावा नगर पालिका की तरफ से नगर पालिका भवन के के दुरुस्तीकरण और सुंदरीकरण का कार्य भी कराया जाना सुनिश्चित किया गया था, जिसको लेकर भी चेयरमैन के पति ने हाईकोर्ट में आपत्ति दाखिल की थी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश राजन राय और मनीष कुमार की पीठ ने चेयरमैन पति अजय जयसवाल की याचिका को खारिज करते हुए नगरपालिका को अपने कार्य करने की अनुमति प्रदान की है.
कोर्ट ने यह माना है कि चेयरमैन को कार्यकाल खत्म होने के बाद अब हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है. याचिका को खारिज करते हुए नगर पालिका को कार्य करने की अनुमति प्रदान की गई है. नगर पालिका के चेयरमैन पद पर रही बबीता जायसवाल को यह अधिकार नहीं था कि वह नगर पालिका के कार्य में हस्तक्षेप करें.
बबीता जायसवाल ने कहा कि यह नगरपालिका के धन का दुरुपयोग जैसा था, जिसे लेकर हम हाईकोर्ट गए थे. कोर्ट ने हमें पक्षकार नहीं माना और याचिका खारिज कर दी है. अभी तक नगर पालिका क्षेत्र में पार्किंग स्थलों का चिन्ह आंगन तक नहीं किया जा सका है. ऐसे में शौचालय निर्माण कैसे किया जाएगा. इस पर संशय की स्थिति बनी हुई है. धन का दुरुपयोग न हो इसलिए हम उच्च न्यायालय गए थे.
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