सुलतानपुर: जिला मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जलाशय आज अपना अस्तित्व खोता नजर आ रहा है. इसी मुख्य वजह पुरातत्व विभाग द्वारा इस ओर कभी इसकी तरफ ध्यान तक नहीं दिया. पुराने बड़े स्नानागार जो पौराणिक मान्यताओं से भरे हुए हैं, इनको सहेजने के लिए कोई पहल नहीं की गई. मनरेगा योजना के तहत भी कभी इस जलाशय को लाभ नहीं मिला.
कभी पर्यटन केंद्र था जलाशय
कभी ईश्वरी दास की पहल पर तैयार हुआ यह जलाशय आकर्षण और पर्यटन का केंद्र हुआ करता था. यहां मेला लगता था, जिसमें शामिल होने लोग दूर-दूर से आते थे. जलाशय के किनारे कजरी और पारंपरिक गीत-संगीत के कार्यक्रम महिलाओं की तरफ से आयोजित किए जाते थे. गंगा-जमुनी तहजीब की प्रेरणा रहा सगरा जलाशय आज अपना अस्तित्व खोता जा रहा है.
250 साल पहले मिला था मूल स्वरूप
महासागर से तुलना करते हुए 250 साल पहले सैकड़ों स्थानीय आबादी ने जुटकर सगरा को मूल स्वरूप दिया था. कितनी भी भीषण गर्मी का समय हो या फिर सूखे की आपदा, यहां कभी पानी की किल्लत नहीं होती थी. इंसानों के लिए यहां अलग स्नानागार और पशुओं के पीने के लिए पक्के घाट भी बनाए गए थे. मगर सरकारों ने कभी इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया, जिसके चलते इन जलाशयों का अस्तित्व धीरे-धीरे गायब होता जा रहा है.
प्रशासन ने कभी नहीं दिया ध्यान
पास में बने मंदिर के पुजारी बाबा राम कुमार कहते हैं कि यह ढाई सौ साल पुराना जलाशय है. ईश्वरी दास अग्रवाल की तरफ से इसे बनवाया गया था, जिसमें स्थानीय लोगों की मदद से पशुओं के पीने की भी व्यवस्था की गई थी. बड़ी संख्या में लोग यहां स्नान करने आया करते थे. प्रशासन की तरफ से आज तक इस 'सगरा' के जीर्णोद्धार के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया.
उप जिलाधिकारियों की मदद से ऐसे झील और जलाशयों का चिन्हांकन कराया गया है. चिन्ह आवंटन प्रक्रिया पूरी होने के साथ वहां कार्य कराने की तैयारी की जा रही है. कुछ स्थानों पर चिन्हांगन की प्रक्रिया भी चल रही है.
सी इंदुमती, जिलाधिकारी