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संतकबीर नगर: खतरे में ऐतिहासिक किला, अस्तित्व से मिटता ऐतिहासिक सुरंग

उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर का खलीलाबाद का किला अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है. सरकार भी इस ऐतिहासिक किले पर ध्यान नहीं दे रही है.

ऐतिहासिक किला खो रहा अपना अस्तित्व.
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Published : Nov 23, 2019, 5:16 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:22 PM IST

संतकबीर नगर: "हजारों साल रोती है नरगिस अपनी बेनूरी पर, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा". किसी शायर की लिखी हुई यह पंक्तियां संत कबीर नगर जिले के ऐतिहासिक किले पर सटीक बैठती हैं. इतिहास के पन्नों से गुम होता 350 साल पुराना खलीलाबाद के चकले दार खलीलुर्रहमान द्वारा बनाया गया किला और सुरंग अपना अस्तित्व खोता हुआ नजर आ रहा है. इस किले की सुरंग तो वर्षों पहले बंद हो चुकी है. वहीं उनके द्वारा बनवाया गया यह किला जर्जर हो चुका है. इस पर सरकार की बेरुखी इस ऐतिहासिक किले को और कमजोर बनाती है.

ऐतिहासिक किला खो रहा अपना अस्तित्व.
औरंगजेब के समय का है यह किला
औरंगजेब के शासन काल में 1680 ईसवीं में काजी खलीलुर्रहमान को खलीलाबाद का चकलेदार बनाया गया था. इस कालखंड में काजी खलीलुर्रहमान ने किला और सुरंग का निर्माण करवाया था. इस किले से सुरंग के रास्ते घोड़े पर सवार होकर मगहर शाही जामा मस्जिद नमाज पढ़ने जाया करते थे, जिसकी दूरी लगभग 9 किलोमीटर थी.

गुम हो रहा किला का अस्तित्व
जमाना बदलता गया और साथ ही खलीलुर्रहमान की सुरंग भी गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गई. किला भी बदहाली के कगार पर पहुंच चुका है, जिसकी मरम्मत जल्द नहीं हुई तो यह कभी भी भरभरा कर गिर सकता है. इसके गिरने से सैकड़ों लोगों की जिंदगी एक साथ खत्म हो सकती है.

खलीलुर्रहमान ने अंग्रजों के छुड़ाए थे छक्के
जानकारों की मानें तो खलीलुर्रहमान के नाम पर ही खलीलाबाद का नाम पड़ा था जो जिला मुख्यालय पर स्थित है. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काजी खलीलुर्रहमान ने अंग्रेजों के दांत भी खट्टे किए थे. जिले के लोगों की मानें तो अगर इस किला का जीर्णोद्धार करवाया जाए तो अपने आप में पर्यटन की दृष्टि से पर्यटकों के लिए यह देखने लायक होगा और जिले में सैलानियों की संख्या भी बढ़ेगी.

संतकबीर नगर: "हजारों साल रोती है नरगिस अपनी बेनूरी पर, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा". किसी शायर की लिखी हुई यह पंक्तियां संत कबीर नगर जिले के ऐतिहासिक किले पर सटीक बैठती हैं. इतिहास के पन्नों से गुम होता 350 साल पुराना खलीलाबाद के चकले दार खलीलुर्रहमान द्वारा बनाया गया किला और सुरंग अपना अस्तित्व खोता हुआ नजर आ रहा है. इस किले की सुरंग तो वर्षों पहले बंद हो चुकी है. वहीं उनके द्वारा बनवाया गया यह किला जर्जर हो चुका है. इस पर सरकार की बेरुखी इस ऐतिहासिक किले को और कमजोर बनाती है.

ऐतिहासिक किला खो रहा अपना अस्तित्व.
औरंगजेब के समय का है यह किला
औरंगजेब के शासन काल में 1680 ईसवीं में काजी खलीलुर्रहमान को खलीलाबाद का चकलेदार बनाया गया था. इस कालखंड में काजी खलीलुर्रहमान ने किला और सुरंग का निर्माण करवाया था. इस किले से सुरंग के रास्ते घोड़े पर सवार होकर मगहर शाही जामा मस्जिद नमाज पढ़ने जाया करते थे, जिसकी दूरी लगभग 9 किलोमीटर थी.

गुम हो रहा किला का अस्तित्व
जमाना बदलता गया और साथ ही खलीलुर्रहमान की सुरंग भी गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गई. किला भी बदहाली के कगार पर पहुंच चुका है, जिसकी मरम्मत जल्द नहीं हुई तो यह कभी भी भरभरा कर गिर सकता है. इसके गिरने से सैकड़ों लोगों की जिंदगी एक साथ खत्म हो सकती है.

खलीलुर्रहमान ने अंग्रजों के छुड़ाए थे छक्के
जानकारों की मानें तो खलीलुर्रहमान के नाम पर ही खलीलाबाद का नाम पड़ा था जो जिला मुख्यालय पर स्थित है. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काजी खलीलुर्रहमान ने अंग्रेजों के दांत भी खट्टे किए थे. जिले के लोगों की मानें तो अगर इस किला का जीर्णोद्धार करवाया जाए तो अपने आप में पर्यटन की दृष्टि से पर्यटकों के लिए यह देखने लायक होगा और जिले में सैलानियों की संख्या भी बढ़ेगी.

Intro:संतकबीरनगर- खतरे में ऐतिहासिक किला, अस्तित्व से मिटता ऐतिहासिक सुरंग


Body:एंकर- "हजारों साल रोती है नरगिस अपनी बेनूरी पर"
बड़ी मुश्किल से पैदा होता है चमन में दीदवर कौन

किसी शायर की लिखी हुई यह पंक्तियां संत कबीर नगर जिले के ऐतिहासिक किले पर सटीक बैठती है इतिहास के पन्नों से गुम होती 350 साल पुरानी खलीलाबाद के चकले दार खलीलुर्रहमान के द्वारा बनाई गई किला और सुरंग अपना अस्तित्व होता हुआ नजर आ रहा है सुरंग तो वर्षों पहले बंद हो चुकी है जबकि उनके द्वारा बनवाया गया किला जर्जर अवस्था में आ चुका है जिस पर सरकार का ध्यान नहीं दिया जा रहा है।


Conclusion:वीओ- आपको बता दें कि पूरा मामला संत कबीर नगर जिले के खलीलुर्रहमान रहमान द्वारा बनवाया गया ऐतिहासिक किले का है जो पूरी तरीके से जर्जर हो चुका है लेकिन सरकार द्वारा इसे ऐतिहासिक किले पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिससे ऐतिहासिक किला इतिहास के पन्नों से गुम होने के कगार पर है। औरंगजेब के शासन काल के वक्त 1680 ईसवी में काजी खलीलुर्रहमान को खलीलाबाद का चकले दार बनाया गया था इसी खंड काल में काजी खलीलुर्रहमान ने किला और सुरंग का निर्माण करवाया था और इसी किले से सुरंग के रास्ते घोड़े पर सवार होकर मगहर शाही जामा मस्जिद नमाज पढ़ने जाया करते थे। जिसकी दूरी लगभग 9 किलोमीटर है। जमाना बदलता गया और साथ ही खलीलुर्रहमान की सुरंग भी गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गई, किला भी बदहाली के कगार पर पहुंच चुका है जिसका मरम्मत जल्द नहीं हुआ तो यह कभी भी भरभरा कर गिर सकता है, जिसके गिरने से सैकड़ों लोगों की जिंदगी एक साथ खत्म हो सकती है। जानकारों की मानें तो खलीलुर्रहमान रहमान के नाम पर ही खलीलाबाद का नाम पड़ा था जो जिला मुख्यालय पर स्थित है। आपको बता दें कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काजी खलीलुर्रहमान ने अंग्रेजों के दांत भी खट्टे किए थे। जिले के लोगों की मानें तो अगर इस किला का जीर्णोद्धार करवाया जाए तो अपने आप में पर्यटन की दृष्टि से पर्यटकों के लिए देखने लायक होगा और जिले में सैलानियों की संख्या भी बढ़ेगी।

बाइट- अवधेश दास जानकार

बाइट- सूरज सिंह स्थानीय

बाइट- p2c -अमित कुमार पाण्डेय

बाइट-रवीश गुप्ता डीएम
Last Updated : Sep 10, 2020, 12:22 PM IST
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