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पीएम मोदी के आत्मनिर्भर मंत्र ने युवा किसान को बनाया लखपति, बोले- मछली पालन ने बदल दी जिंदगी

Fish Farming : पीएम मोदी के आत्मनिर्भर मंत्र से युवा किसान अमित यादव काफी मुनाफा कमा रहे हैं. पारंपरिक खेती से इतर मत्स्य पालन के जरिए रॉबर्ट्सगंज ब्लाक के लखनवार गांव निवासी अमित यादव न सिर्फ आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि क्षेत्र में उन्होंने युवाओं के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 26, 2023, 1:13 PM IST

मछली पालन पर सोनभद्र से संवाददाता अनूप कुमार की खास रिपोर्ट.

सोनभद्र: प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के आत्मनिर्भर मंत्र ने देश के करोड़ों लोगों को फायदा पहुंचाया है. इन्हीं में से एक हैं उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद के युवा किसान अमित यादव, जिन्होंने पीएम मोदी के आत्मनिर्भर मंत्र को अपनाया और आज लाखों का लाभ कमा रहे हैं. साथ ही आत्मनिर्भर भी हो गए हैं. दरअसल, युवा किसान मत्स्य पालन से लाखों का मुनाफा अर्जित कर रहे हैं. पारंपरिक खेती से इतर मत्स्य पालन के जरिए रॉबर्ट्सगंज ब्लाक के लखनवार गांव निवासी अमित यादव न सिर्फ आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि क्षेत्र में उन्होंने युवाओं के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया है.

शुरुआत में मत्स्य विभाग ने नीली क्रांति योजना के तहत उन्हें मछली के बीज पालन के लिए सहायता दी थी. बाद में वह मछली के बीज को छोड़कर पूरी तरह से मछली पालन का व्यवसाय करने लगे. इस व्यवसाय से प्रत्येक वर्ष किसान अमित यादव को 4 से 5 लाख रुपए की आय हो रही है. रॉबर्ट्सगंज ब्लॉक के लखनवार गांव के निवासी अमित यादव मछली पालन करके न सिर्फ आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि लाखों का मुनाफा भी कमा रहे हैं.

Aatmanirbhar Mantra
इस तरह की मछलियों का करते हैं उत्पादन.

अमित यादव ने बताया कि उन्होंने मत्स्य विभाग की नीली क्रांति योजना के तहत वर्ष 2017-18 से मछली के बीज का पालन शुरू किया था. इसके लिए मत्स्य विभाग द्वारा उन्हें तालाब खोदने के लिए 60% का अनुदान दिया गया था और 40% की लागत उन्होंने खुद लगाई थी. शुरुआत में वह मछली के बीज तैयार करते थे. करीब दो साल बाद वह कोलकाता से फंगास/प्यासी मछली का बीज बनाकर मछली पालन करने लगे.

इसके लिए मत्स्य विभाग से उन्हें समय-समय पर तकनीकी सहायता दी गई. मछली पालन करने वाले किसान अमित यादव का कहना है कि इस कार्य में तालाब बनाने के बाद लगभग दो से ढाई लाख की लागत लगाने पर 8 महीने बाद उन्हें लगभग 4 लाख रुपये की बचत हो जाती है. युवा किसान अमित यादव का कहना है, गांव के बेरोजगार युवा मछली पालन के माध्यम से रोजगार प्राप्त कर सकते हैं. उन्हें गांव से बाहर जाकर नौकरी करने की आवश्यकता नहीं है.

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इसी तालाब में किसान अमित यादव मछली पालन करते हैं.

मछली पालन से लाखों की आय प्राप्त कर रहे अमित यादव ने बताया कि उन्होंने गांव के ही एक अन्य व्यक्ति से जानकारी लेकर मत्स्य पालन शुरू किया था. वर्तमान में उनके पास ढाई बीघा जमीन में चार तालाब हैं. प्रत्येक वर्ष एक लाख 20 हजार मूल्य की प्यासी मछली का बीज कोलकाता से मंगवाते हैं और एक लाख रुपये मजदूरी पर खर्च हो जाते हैं. इसके अलावा 80 हजार रुपए के अन्य खर्चे भी होते हैं. इस तरह लगभग तीन लाख की लागत आती है.

फरवरी-मार्च में बीज डालने के बाद अक्टूबर तक मछली तैयार हो जाती है. इसके बाद अक्टूबर से दिसम्बर के बीच लगभग 150 से 200 रुपए कुंतल मछली का उत्पादन होता है. उनके तालाब पर आकर ही बाजार के आढ़ती उनकी मछलियां खरीद लेते हैं. पूरी प्रक्रिया के दौरान लगभग 4 से 5 लाख रुपये की उनकी बचत हो जाती है.

ऐसे ही एक अन्य किसान को मत्स्य विभाग द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मदद दी गई है. रॉबर्ट्सगंज ब्लाक के सिद्धिकलां गांव निवासी किसान रामेश्वर सिंह मौर्य का कहना है कि उन्होंने मछली पालन के लिए मत्स्य विभाग की मदद से 20 लाख का प्रोजेक्ट लगाया है, जिसमें से 12 लाख रुपए का अनुदान उन्हें विभाग द्वारा दिया गया है. आठ बिस्वा में उन्होंने मछली पालन के लिए तालाब बनाया है और 1500 वर्ग फीट में मछली बेचने के लिए स्थान (आउटलेट) बनाया है. घर से ही मछली की बिक्री करते हैं. उन्हें इस कार्य से अच्छा मुनाफा हो रहा है और वह अब आत्मनिर्भर भी हैं.

मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक पारस सिंह ने बताया कि नीली क्रांति योजना के तहत पहले से ही किसान मत्स्य पालन कर रहे हैं. अब प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का लाभ भी जिले के लगभग 15 किसान ले रहे हैं. मत्स्य विभाग उन्हें अनुदान और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराता है. मछली के अंडों से बीज विकसित करने और तालाब बनाकर मछली पालन दोनों ही योजनाओं को विभाग प्रोत्साहित करता है.

60 प्रतिशत अनुदान देकर महिलाओं को इस कार्य के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जबकि 40 प्रतिशत अनुदान पुरुषों को दिया जाता है. प्रत्येक वर्ष जनवरी में ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से मत्स्य विभाग लाभार्थियों का चयन करता है. इसके बाद लाभार्थियों के पास जाकर विभाग सत्यापन करता है. फिर निदेशालय के माध्यम से उनका आवेदन भारत सरकार के पास भेजा जाता है. इसके बाद मत्स्य विभाग अंतिम तौर पर उन्हें अनुदान का लाभ उपलब्ध कराता है.

ये भी पढ़ेंः यहां के हम टाइगर! किसान के घर की दीवार पर 8 घंटे बैठा रहा बाघ, धूप में आराम फरमाया; VIDEO

मछली पालन पर सोनभद्र से संवाददाता अनूप कुमार की खास रिपोर्ट.

सोनभद्र: प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के आत्मनिर्भर मंत्र ने देश के करोड़ों लोगों को फायदा पहुंचाया है. इन्हीं में से एक हैं उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद के युवा किसान अमित यादव, जिन्होंने पीएम मोदी के आत्मनिर्भर मंत्र को अपनाया और आज लाखों का लाभ कमा रहे हैं. साथ ही आत्मनिर्भर भी हो गए हैं. दरअसल, युवा किसान मत्स्य पालन से लाखों का मुनाफा अर्जित कर रहे हैं. पारंपरिक खेती से इतर मत्स्य पालन के जरिए रॉबर्ट्सगंज ब्लाक के लखनवार गांव निवासी अमित यादव न सिर्फ आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि क्षेत्र में उन्होंने युवाओं के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया है.

शुरुआत में मत्स्य विभाग ने नीली क्रांति योजना के तहत उन्हें मछली के बीज पालन के लिए सहायता दी थी. बाद में वह मछली के बीज को छोड़कर पूरी तरह से मछली पालन का व्यवसाय करने लगे. इस व्यवसाय से प्रत्येक वर्ष किसान अमित यादव को 4 से 5 लाख रुपए की आय हो रही है. रॉबर्ट्सगंज ब्लॉक के लखनवार गांव के निवासी अमित यादव मछली पालन करके न सिर्फ आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि लाखों का मुनाफा भी कमा रहे हैं.

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इस तरह की मछलियों का करते हैं उत्पादन.

अमित यादव ने बताया कि उन्होंने मत्स्य विभाग की नीली क्रांति योजना के तहत वर्ष 2017-18 से मछली के बीज का पालन शुरू किया था. इसके लिए मत्स्य विभाग द्वारा उन्हें तालाब खोदने के लिए 60% का अनुदान दिया गया था और 40% की लागत उन्होंने खुद लगाई थी. शुरुआत में वह मछली के बीज तैयार करते थे. करीब दो साल बाद वह कोलकाता से फंगास/प्यासी मछली का बीज बनाकर मछली पालन करने लगे.

इसके लिए मत्स्य विभाग से उन्हें समय-समय पर तकनीकी सहायता दी गई. मछली पालन करने वाले किसान अमित यादव का कहना है कि इस कार्य में तालाब बनाने के बाद लगभग दो से ढाई लाख की लागत लगाने पर 8 महीने बाद उन्हें लगभग 4 लाख रुपये की बचत हो जाती है. युवा किसान अमित यादव का कहना है, गांव के बेरोजगार युवा मछली पालन के माध्यम से रोजगार प्राप्त कर सकते हैं. उन्हें गांव से बाहर जाकर नौकरी करने की आवश्यकता नहीं है.

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इसी तालाब में किसान अमित यादव मछली पालन करते हैं.

मछली पालन से लाखों की आय प्राप्त कर रहे अमित यादव ने बताया कि उन्होंने गांव के ही एक अन्य व्यक्ति से जानकारी लेकर मत्स्य पालन शुरू किया था. वर्तमान में उनके पास ढाई बीघा जमीन में चार तालाब हैं. प्रत्येक वर्ष एक लाख 20 हजार मूल्य की प्यासी मछली का बीज कोलकाता से मंगवाते हैं और एक लाख रुपये मजदूरी पर खर्च हो जाते हैं. इसके अलावा 80 हजार रुपए के अन्य खर्चे भी होते हैं. इस तरह लगभग तीन लाख की लागत आती है.

फरवरी-मार्च में बीज डालने के बाद अक्टूबर तक मछली तैयार हो जाती है. इसके बाद अक्टूबर से दिसम्बर के बीच लगभग 150 से 200 रुपए कुंतल मछली का उत्पादन होता है. उनके तालाब पर आकर ही बाजार के आढ़ती उनकी मछलियां खरीद लेते हैं. पूरी प्रक्रिया के दौरान लगभग 4 से 5 लाख रुपये की उनकी बचत हो जाती है.

ऐसे ही एक अन्य किसान को मत्स्य विभाग द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मदद दी गई है. रॉबर्ट्सगंज ब्लाक के सिद्धिकलां गांव निवासी किसान रामेश्वर सिंह मौर्य का कहना है कि उन्होंने मछली पालन के लिए मत्स्य विभाग की मदद से 20 लाख का प्रोजेक्ट लगाया है, जिसमें से 12 लाख रुपए का अनुदान उन्हें विभाग द्वारा दिया गया है. आठ बिस्वा में उन्होंने मछली पालन के लिए तालाब बनाया है और 1500 वर्ग फीट में मछली बेचने के लिए स्थान (आउटलेट) बनाया है. घर से ही मछली की बिक्री करते हैं. उन्हें इस कार्य से अच्छा मुनाफा हो रहा है और वह अब आत्मनिर्भर भी हैं.

मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक पारस सिंह ने बताया कि नीली क्रांति योजना के तहत पहले से ही किसान मत्स्य पालन कर रहे हैं. अब प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का लाभ भी जिले के लगभग 15 किसान ले रहे हैं. मत्स्य विभाग उन्हें अनुदान और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराता है. मछली के अंडों से बीज विकसित करने और तालाब बनाकर मछली पालन दोनों ही योजनाओं को विभाग प्रोत्साहित करता है.

60 प्रतिशत अनुदान देकर महिलाओं को इस कार्य के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जबकि 40 प्रतिशत अनुदान पुरुषों को दिया जाता है. प्रत्येक वर्ष जनवरी में ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से मत्स्य विभाग लाभार्थियों का चयन करता है. इसके बाद लाभार्थियों के पास जाकर विभाग सत्यापन करता है. फिर निदेशालय के माध्यम से उनका आवेदन भारत सरकार के पास भेजा जाता है. इसके बाद मत्स्य विभाग अंतिम तौर पर उन्हें अनुदान का लाभ उपलब्ध कराता है.

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