सोनभद्र: शाहगंज क्षेत्र में स्थित 1880 में बनाई गई जेल अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को दी गई यातनाओं की गवाह है. शाहगंज क्षेत्र में स्थित यह जेल आजादी के बाद बच्चों का स्कूल बना दी गई और एक स्वतंत्रता सेनानी को ही प्रधानाचार्य बनाया गया था. लगभग 143 वर्ष बीतने के बाद भी इस जेल में सरकारी स्कूल संचालित होता है. जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी का कहना है कि आज भी प्राथमिक स्कूल इसी जेल में संचालित हो रहा है और इस विद्यालय में लगभग 200 बच्चे पढ़ते हैं. इस विद्यालय का इतिहास हमारे लिए गौरव का विषय है.
विद्यालय के प्रांगण में एक नीम का पेड़ भी है, जिससे बांधकर अंग्रेज स्वतंत्रता सेनानियों को यातना देते थे. प्राथमिक विद्यालय शाहगंज के प्रधानाचार्य कांता प्रसाद बताते हैं कि उनके बाबा स्वतंत्रता सेनानी थे और आजादी के बाद उन्हीं की प्रेरणा से इस जेल को विद्यालय बनाया गया था. आजादी के बाद क्षेत्र का विकास तो हुआ. लेकिन, इस जेल के संरक्षण के पर्याप्त प्रयास नहीं हुए.
इस क्षेत्र के स्थानीय निवासी और बुजुर्ग लक्ष्मण प्रसाद पांडे ने बताया कि वर्ष 1962 में वह कक्षा दो में पढ़ते थे और यह विद्यालय आजादी के बाद से लगातार संचालित हो रहा है. लेकिन, विद्यालय बनने के बाद अब इस जेल का स्वरूप लगातार बदलता जा रहा है. प्राचीन विरासत को संरक्षित किए जाने की जरूरत है. स्थानीय निवासी मनीष श्रीवास्तव ने बताया कि पंडित सिद्धनाथ मिश्र इस विद्यालय के पहले प्रधानाचार्य थे. इस जेल से स्वतंत्रता सेनानियों की यादें जुड़ी हुई हैं. इसे पर्यटन स्थल और विरासत के तौर पर संरक्षित करने की जरूरत है.
इतिहासकार दीपक केसरवानी बताते हैं कि इस क्षेत्र की पुरानी तहसील शाहगंज में ही थी. तत्कालीन मिर्जापुर जिले के अंतर्गत यह क्षेत्र आता था. इस क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए इस जेल की स्थापना की गई थी. वर्तमान में इस प्राचीन विरासत को संरक्षित किए जाने की जरूरत है. जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी नवीन पाठक ने बताया कि आजादी के बाद से इस जेल की इमारत में सरकारी स्कूल का संचालन हो रहा है. 1880 में इस जेल का निर्माण किया गया था. इसको लेकर हमारा विभाग बहुत ही गौरवान्वित महसूस करता है.
यह भी पढ़ें: 15 अगस्त को लखनऊ के सभी मल्टीप्लेक्स में देशभक्ति फिल्में दिखाई जाएंगी, देख सकेंगे मुफ्त