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सीतापुर में प्रवासी कामगारों को नहीं मिल रहा रोजगार

यूपी के सीतापुर जिले में दूसरे प्रदेशों से लौटे प्रवासी कामगारों को अभी तक रोजगार नहीं मिला है, जिससे उनके सामने परिवार चलाने का गंभीर संकट खड़ा हो गया है.

सीतापुर में प्रवासी कामगारों को नहीं मिल रहा रोजगार
सीतापुर में प्रवासी कामगारों को नहीं मिल रहा रोजगार
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Published : Aug 11, 2020, 10:38 AM IST

सीतापुर: कोरोना संक्रमण के चलते बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार अपने घर तो वापस लौट आये हैं, लेकिन उन्हें अब तक रोजगार नहीं मिल सका है. बेरोजगारी की हालत में उन्हें अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाना मुश्किल हो रहा है.

वैश्विक महामारी कोरोना ने लोगों की जिंदगी में तूफान खड़ा कर दिया है. लोग दूसरे प्रदेशों में अपने हुनर की बदौलत कमाते और खाते थे. कोरोना का संक्रमण शुरू होने के बाद लॉकडाउन लागू कर दिया गया. कुछ दिन तो लोग घरों में कैद रहे फिर अनिश्चितता के हालात के कारण अपने वतन वापस लौटने लगे. ऐसे ही इस जिले के रहने वाले तमाम प्रवासी कामगार भी लौट कर आये हैं. उन्हें आये हुए कई महीने बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक रोजगार का इंतजाम नहीं हुआ है.

प्रवासी कामगारों ने बयां की अपनी दास्तां.
ईटीवी भारत की टीम ने शहर के कुछ मोहल्लों का भ्रमण कर प्रवासी कामगारों से बातचीत की तो उनका दर्द सामने आ गया. शहर के मोहल्ला शेख सराय में रहने वाले शकील अहमद से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वह दिल्ली में रहकर जूते-चप्पल की फैक्ट्री में काम करते थे. लॉकडाउन लागू होने के बाद पहले वे बेरोजगार हुए और फिर मजबूरन घर वापसी करनी पड़ी, लेकिन यहां आने के बाद पेट पालने को कोई रोजगार नहीं मिल रहा. इसी मोहल्ले में रहने वाली कहकशां का दर्द भी कुछ इसी तरह का दिखाई दिया. उन्होंने भी प्रवासी कामगारों को रोजगार उपलब्ध कराने के सरकार के दावों पर गम्भीर सवाल खड़े किये.मोहल्ला पटिया में रहने वाले मोहम्मद राशिद ने बताया कि वह इलाहाबाद में बेडशीट बेचने का काम करते थे. लॉकडाउन लागू होने के बाद अपने गृह जनपद सीतापुर लौटे तो रोजगार ही नहीं मिला. किसी तरह अपने रिश्तेदारों आदि से मदद लेकर परिवार का पेट भर रहे हैं. दिल्ली में रहकर सिलाई का काम करने वाले मोहम्मद शाबान ने बताया कि यहां आने के बाद से आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. परिवार का पेट पालने के लिए रोजगार का कोई साधन नहीं है. बिहार से घर वापस लौटे गुलाम दस्तगीर शहर के कज़ियारा मोहल्ले में रहते हैं. उनके परिवार के सामने भी खाने-कमाने का संकट है. किसी तरह लोगों की मदद से परिवार का गुजारा हो रहा है, लेकिन यह कब तक ऐसे ही चलेगा इसे लेकर पूरा परिवार चिंतित है.

सीतापुर: कोरोना संक्रमण के चलते बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार अपने घर तो वापस लौट आये हैं, लेकिन उन्हें अब तक रोजगार नहीं मिल सका है. बेरोजगारी की हालत में उन्हें अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाना मुश्किल हो रहा है.

वैश्विक महामारी कोरोना ने लोगों की जिंदगी में तूफान खड़ा कर दिया है. लोग दूसरे प्रदेशों में अपने हुनर की बदौलत कमाते और खाते थे. कोरोना का संक्रमण शुरू होने के बाद लॉकडाउन लागू कर दिया गया. कुछ दिन तो लोग घरों में कैद रहे फिर अनिश्चितता के हालात के कारण अपने वतन वापस लौटने लगे. ऐसे ही इस जिले के रहने वाले तमाम प्रवासी कामगार भी लौट कर आये हैं. उन्हें आये हुए कई महीने बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक रोजगार का इंतजाम नहीं हुआ है.

प्रवासी कामगारों ने बयां की अपनी दास्तां.
ईटीवी भारत की टीम ने शहर के कुछ मोहल्लों का भ्रमण कर प्रवासी कामगारों से बातचीत की तो उनका दर्द सामने आ गया. शहर के मोहल्ला शेख सराय में रहने वाले शकील अहमद से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वह दिल्ली में रहकर जूते-चप्पल की फैक्ट्री में काम करते थे. लॉकडाउन लागू होने के बाद पहले वे बेरोजगार हुए और फिर मजबूरन घर वापसी करनी पड़ी, लेकिन यहां आने के बाद पेट पालने को कोई रोजगार नहीं मिल रहा. इसी मोहल्ले में रहने वाली कहकशां का दर्द भी कुछ इसी तरह का दिखाई दिया. उन्होंने भी प्रवासी कामगारों को रोजगार उपलब्ध कराने के सरकार के दावों पर गम्भीर सवाल खड़े किये.मोहल्ला पटिया में रहने वाले मोहम्मद राशिद ने बताया कि वह इलाहाबाद में बेडशीट बेचने का काम करते थे. लॉकडाउन लागू होने के बाद अपने गृह जनपद सीतापुर लौटे तो रोजगार ही नहीं मिला. किसी तरह अपने रिश्तेदारों आदि से मदद लेकर परिवार का पेट भर रहे हैं. दिल्ली में रहकर सिलाई का काम करने वाले मोहम्मद शाबान ने बताया कि यहां आने के बाद से आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. परिवार का पेट पालने के लिए रोजगार का कोई साधन नहीं है. बिहार से घर वापस लौटे गुलाम दस्तगीर शहर के कज़ियारा मोहल्ले में रहते हैं. उनके परिवार के सामने भी खाने-कमाने का संकट है. किसी तरह लोगों की मदद से परिवार का गुजारा हो रहा है, लेकिन यह कब तक ऐसे ही चलेगा इसे लेकर पूरा परिवार चिंतित है.
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