सीतापुरः कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन ने लाखों लोगों की रोजी-रोटी छीन ली. इस दौरान जो प्रवासी मजदूर अपने घर आए हैं, उनका पुस्तैनी काम ही उनका सहारा बन रहा है. कई सारे ऐसे मजदूर हैं जो अब अपने पुस्तैनी काम में हाथ बंटा रहे हैं और मनरेगा के तहत भी काम कर रहे हैं, जिससे उनका खर्च चल रहा है.
ग्रामीण क्षेत्र में अधिकांश मजदूरों का यही हाल
सांडा निवासी गोलू बाल्मीकि का परिवार थोड़ी सी खेती-बाड़ी के साथ सूप ( सूपा ) बनाकर रोजी-रोटी चलाता है. 2 वर्ष पहले गोलू बेहतर जीवन यापन के लिए लखनऊ के एक रेस्टोरेंट में 10,000 मासिक की पगार पर काम करने लगा था. जब लॉकडॉउन के दौरान रेस्टोरेंट बंद हुआ और नौकरी छूट गई तो घर वापस लौट आया और घर में सूप बनाने वाले पुश्तैनी काम में परिवार का हाथ बटाने लगा. वहीं गांव में चल रहे मनरेगा के काम से भी परिवार को आर्थिक सहारा मिल रहा है. जिले में गांव लौटे अधिकांश प्रवासी मजदूर परिवारों का इस समय यही हाल है.
पुस्तैनी काम से चल रही जिंदगी
गोलू के परिवार में 7 सदस्य हैं. माता-पिता एक बहन और चार भाई हैं. बहन पढ़ाई कर रही है, भाई पढ़ाई के साथ-साथ परिवार के काम में हाथ बटाते हैं. परिवार के पास मात्र 1 बीघा जमीन है, जिस पर धान और गेहूं की खेती होती है. गांव में उतनी कमाई नहीं हो पाती है, ऐसे में गोलू लॉकडाउन के उपरांत पुनः काम पर वापस जाना चाहता है. फिलहाल इस विषम परिस्थिति में भी पुस्तैनी काम सहारा बना हुआ है. गोलू ने बताया कि सूपा बनाने का काम उसके दादा-परदादा के जमाने से हो रहा है. अगर यह काम नहीं होता तो और स्थिति खराब हो जाती.