सीतापुर: मान्यता के अनुसार जिले में एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान श्रीराम की ओर से अश्वमेध यज्ञ कराया गया था. कहते हैं कि इस स्थान पर श्रीराम ने शिवलिंग की स्थापना की थी, जो आज भी मंदिर के रूप में स्थित है. वहीं साक्ष्य के तौर पर आज भी यहां यज्ञ बाराह कूप, अरून्धती कूप और अहिल्या भूमि देखी जा सकती है. इस स्थान पर भगवान श्रीराम द्वारा कराए गए अश्वमेध यज्ञ का उल्लेख बाल्मीकि रामायण और स्कन्द पुराण सहित कई ग्रन्थों में मिलता है.
श्रीराम ने लक्ष्मण के कहने पर किया था अश्वमेध यज्ञ
लोगों का मानना है कि त्रेतायुग में लक्ष्मण ने श्रीराम को अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी थी, जिसके बाद श्रीराम ने यहां यज्ञ किया था. इसके बाद श्रीराम ने अपने कुल पुरोहित वशिष्ठ से यज्ञ करने का सबसे उपयुक्त स्थान पूछा था, जिस पर वशिष्ठ ने नैमिष क्षेत्र में यज्ञ कराने का स्थान बताया था. इसके बाद नैमिष क्षेत्र कारण्डव वन में यज्ञ किया गया, जिसका उल्लेख बाल्मीकि रामायण के पृष्ठ संख्या 800 और स्कन्द पुराण के प्रथम अध्याय के श्लोक संख्या 103 में मिलता है. इसके अतिरिक्त अन्य कई ग्रन्थों में मिलता है.
कारण्डव वन में किया था यज्ञ
गंगा गोमती नदी के उत्तर की ओर का स्थान कारण्डव वन था जो आज कोरौना के नाम से जाना जाता है. इस स्थान पर भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया था, जिसका प्रमाण भगवान श्रीराम के द्वारा शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग है. इस मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार लोगों द्वारा कराया जाता रहा है. वहीं इस मंदिर के अतिरिक्त यहां पर यज्ञ बाराह कूप भी मौजूद है. इसी यज्ञ बाराह कूप में अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न किया गया था. इस कूप का जीर्णोद्धार 1984 में स्वामी अभितानद ट्रस्ट द्वारा कराया गया था. इस कूप में आज भी जले हुए चावल व जौ मिलते हैं.
अरून्धती कूप से जुड़ी कहानी
कहा जाता है कि जिस स्थान पर भगवान श्रीराम के कुल पुरोहित वशिष्ठ ने अपना डेरा बनाया था. वहां पर आज भी अरून्धती कूप मौजूद है. इसी स्थान पर वशिष्ठ जी पूजा करने बैठे थे और उन्हें प्यास लगी तो उन्होंने अपनी अर्धांगिनी अरून्धती की ओर जल पीने का संकेत किया. पास में कोई जल श्रोत नहीं था, जिससे सती अरून्धती ने अपने दाहिने हाथ की सबसे छोटी उगली प्रथ्वी पर गडा दी थी. इससे उस स्थान पर जल की धारा फूट पड़ी. इसी जल धारा को अरून्धती ने वशिष्ठ जी को दिया था. इसी कारण से इस कूप को अरून्धती कूप के नाम से जाना जाता है.
अहिल्या भूमि और नैमिष क्षेत्र की कथा
वहीं अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न होने से पहले भूमि छोड़ी जाती है, जिस पर कभी हल नहीं चलता है. इस स्थान पर आज भी कई एकड़ भूमि ऐसी पड़ी हुई है, जिस पर आज तक हल नहीं चला है. उसे अहिल्या भूमि के नाम से जाना जाता है. भगवान श्रीराम ने खुद अपने कुटुंबियों के साथ नैमिष क्षेत्र की परिक्रमा की थी, जिसे नैमिष क्षेत्र में प्रतिवर्ष होने वाली 84 कोसी परिक्रमा को रामादल के नाम से जाना जाता है.
सोमवार को नैमिष तीर्थ में स्नान करके हजारों की संख्या में देश-विदेश से साधु-संत 84 कोसी परिक्रमा के प्रथम पड़ाव कोरौना पहुंचे. यहां साधु-संत के साथ लोगों ने रात्रि विश्राम करने के उपरांत मंगवार सुबह कोरौना पड़ाव स्थित तीर्थ में स्नान करके भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हुए अगले पड़ाव हर्रैया के लिए कूच किया.
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