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15 वर्षों से खराब पड़ा नलकूप, किसानों के सामने सिंचाई का संकट

सीतापुर जिले में कई सरकारी नलकूप तकनीकी खराबी के चलते वर्षों से खराब पड़े हैं. इसके कारण किसान निजी नलकूपों और अन्य संसाधनों का प्रयोग कर सिंचाई करने के लिए विवश हैं. लगातार किसानों द्वारा शिकायतें करने के बावजूद समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है. देखिए ये रिपोर्ट-

नलकूप के पास खड़े ग्रामीण.
नलकूप के पास खड़े ग्रामीण.
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Published : Dec 12, 2020, 3:03 PM IST

सीतापुर: वर्तमान सरकार किसानों के हितों के दावे भले ही कर रही हो, लेकिन किसान संसाधनों की कमी से परेशान हैं. सीतापुर में वर्षों से खराब राजकीय नलकूपों की कोई सुध लेने वाला नहीं है. इसके चलते किसानों को मौजूदा समय में गेहूं की बुवाई और सिंचाई करने में समस्या हो रही है.

राजकीय नलकूप खराब पड़ा.
अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों के कई बार की शिकायत

विकास खंड कसमंडा क्षेत्र के सरौरा गांव में बना सरकारी नलकूप पिछले 15 वर्षों से खराब पड़ा हुआ है. इस नलकूप पर आने वाली विद्युत लाइन के तार वर्षों पूर्व चोरी हो चुके है. वहीं नलकूप के पास लगे ट्रांसफार्मर का भी कोई अता-पता नहीं है. नलकूप में प्रयोग में आने वाले लोहे के पाइप और किसानों के खेतों तक पहुंचाई गई पाइपलाइन का भी कोई नामों निशान नहीं है. किसान इस नलकूप को सही कराने को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन 15 वर्ष बाद भी राजकीय नलकूप को सही नहीं कराया जा सका है. सरौरा गांव और उसके आसपास के गांवों के किसानों की सैकड़ों बीघे फसल निजी ट्यूबवेल के सहारे ही बची हुई है. ऐसे में किसानों की लागत काफी बढ़ जाती है. यदि किसानों को निजी ट्यूबवेल से समय पर पानी न मिले, तो फसल खराब हो जाती है. इसके कारण किसानों का भारी नुकसान भी होता है.



किसान अनुज मिश्रा, हरद्वारी, महेश, केशन, सोनू आदि ने बताया कि सरकारी नलकूप लगभग 15 वर्षों से खराब पड़ा हुआ. इसके चलते फसल की बुवाई और सिचाई में काफी समय लगता है. फसल की बुवाई से लेकर सिंचाई तक प्रति बीघे हजारों रुपये का खर्च बढ़ जाता है. कई बार जिम्मेदार अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से शिकायतें की गई, लेकिन नलकूप सही नहीं कराया जा सका.

सरकार के दावों और हकीकत में जो अंतर है, वो यह नलकूप बता रहा है. यहां ट्रांसफार्मर भी नहीं है. नलकूप की बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है. जब किसान निजी नलकूप से सिंचाई करता है तो डीजल के कारण उसकी फसल उत्पादन की लागत बढ़ती है. यदि खराब पड़े नलकूप सही हो जाएं तो किसानों को राहत मिले, लेकिन न तो जन प्रतिनिधि, जिला प्रशासन और न ही सरकार किसानों की सुध लेने को तैयार है.
-आरपी सिंह, किसान नेता

सीतापुर: वर्तमान सरकार किसानों के हितों के दावे भले ही कर रही हो, लेकिन किसान संसाधनों की कमी से परेशान हैं. सीतापुर में वर्षों से खराब राजकीय नलकूपों की कोई सुध लेने वाला नहीं है. इसके चलते किसानों को मौजूदा समय में गेहूं की बुवाई और सिंचाई करने में समस्या हो रही है.

राजकीय नलकूप खराब पड़ा.
अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों के कई बार की शिकायत

विकास खंड कसमंडा क्षेत्र के सरौरा गांव में बना सरकारी नलकूप पिछले 15 वर्षों से खराब पड़ा हुआ है. इस नलकूप पर आने वाली विद्युत लाइन के तार वर्षों पूर्व चोरी हो चुके है. वहीं नलकूप के पास लगे ट्रांसफार्मर का भी कोई अता-पता नहीं है. नलकूप में प्रयोग में आने वाले लोहे के पाइप और किसानों के खेतों तक पहुंचाई गई पाइपलाइन का भी कोई नामों निशान नहीं है. किसान इस नलकूप को सही कराने को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन 15 वर्ष बाद भी राजकीय नलकूप को सही नहीं कराया जा सका है. सरौरा गांव और उसके आसपास के गांवों के किसानों की सैकड़ों बीघे फसल निजी ट्यूबवेल के सहारे ही बची हुई है. ऐसे में किसानों की लागत काफी बढ़ जाती है. यदि किसानों को निजी ट्यूबवेल से समय पर पानी न मिले, तो फसल खराब हो जाती है. इसके कारण किसानों का भारी नुकसान भी होता है.



किसान अनुज मिश्रा, हरद्वारी, महेश, केशन, सोनू आदि ने बताया कि सरकारी नलकूप लगभग 15 वर्षों से खराब पड़ा हुआ. इसके चलते फसल की बुवाई और सिचाई में काफी समय लगता है. फसल की बुवाई से लेकर सिंचाई तक प्रति बीघे हजारों रुपये का खर्च बढ़ जाता है. कई बार जिम्मेदार अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से शिकायतें की गई, लेकिन नलकूप सही नहीं कराया जा सका.

सरकार के दावों और हकीकत में जो अंतर है, वो यह नलकूप बता रहा है. यहां ट्रांसफार्मर भी नहीं है. नलकूप की बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है. जब किसान निजी नलकूप से सिंचाई करता है तो डीजल के कारण उसकी फसल उत्पादन की लागत बढ़ती है. यदि खराब पड़े नलकूप सही हो जाएं तो किसानों को राहत मिले, लेकिन न तो जन प्रतिनिधि, जिला प्रशासन और न ही सरकार किसानों की सुध लेने को तैयार है.
-आरपी सिंह, किसान नेता

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