सहारनपुर: एक ओर जहां केंद्र की मोदी सरकार मनरेगा योजना के तहत गांव-देहात के श्रमिक परिवारों को 100 दिन का रोजगार देने के दावे कर रही है. वहीं सरकार के नुमाइंदे ग्राम प्रधान और ग्राम सचिव के साथ मिलकर न सिर्फ सरकारी दावों की हवा निकालने में लगे हैं, बल्कि मनरेगा योजना के पैसे की बंदरबाट कर रहे हैं.
श्रमिकों को नहीं मिल रहा 100 दिन का काम
ग्राम प्रधान और ठेकेदारों की मनमानी से श्रमिकों को 100 दिन का काम मिलना तो दूर जॉब कार्ड भी नहीं मिला है. कुछ श्रमिक तो ऐसे भी है जो पिछले 4-5 साल से मनरेगा में काम करते आ रहे हैं, लेकिन उन्हें आज तक उनका जॉब कार्ड ही नहीं बना है. इतना ही नहीं 100 दिन के बजाए 15-20 दिन का ही रोजगार मिल रहा है. उसके लिए भी ग्राम प्रधान और सचिव श्रमिकों से कमीशन ले रहे हैं.
मनरेगा योजना को लेकर अधिकारियों की धांधली
ईटीवी भारत की टीम ने जनपद सहारनपुर के कई गांवों में पहुंच कर मनरेगा योजना का जायजा लिया तो चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत सांसद की ओर से गोद लिया गांव खुशहालीपुर हो या फिर कपूरी गांव सब श्रमिक प्रधानों पर सरकारी पैसे की बंदरबाट का आरोप लगा रहे हैं. विभागीय अधिकारी जहां श्रमिकों की शिकायतें आने की बात स्वीकार कर रहे हैं, वहीं 2020 में अब तक 17 करोड़ से ज्यादा भुगतान करने की बात कहकर कारनामे पर पर्दा डालने में लगे हैं.
श्रमिकों को नहीं मिल पैसा
बता दें कि केंद्र सरकार ने गरीब असाहय परिवारों को रोजगार देने के लिए मनरेगा योजना की शुरुआत की थी ताकि श्रमिक परिवारों को साल में 100 दिन का तुरंत काम और तुरंत दाम दिया जा सके. वहीं गरीब श्रमिकों की इस योजना पर भ्रष्टाचारियों की ऐसी नजर लगी कि श्रमिकों के लिए आए पैसे को ये भ्रष्टाचारी डकारने लगे हैं. ग्राम प्रधान से लेकर उच्च अधिकारियों तक मनरेगा के पैसे की खूब बंदरबाट हो रही है, जिसके चलते गरीब दिहाड़ी मजदूर मनरेगा में काम करके पैसे लिए अधिकारियों के चक्कर काटने को मजबूर हैं.
4 साल में एक दिन का पैसा नहीं मिला
गांव कपूरी में घास फूंस की झोपड़ी में बीमार पति और 6 बच्चों के साथ रह रही संजोगिता ने बताया कि पिछले चार साल से मनरेगा में मजदूरी करती आ रही है. ग्राम प्रधान साल में 100 दिन न सिर्फ सड़क, तालाब, और चकरोड़ की सफाई कराई बल्कि अपने खेत में गन्ने की फसल भी छिलवाई है. फावड़ा चलाकर हाथों में छाले पड़ गए तो वहीं सिर पर मिट्टी से भरे तसले ढोते-ढोते दिन ढल गया, लेकिन 4 साल में एक दिन का पैसा भी उनके खाते में नहीं आया है. खास बात तो ये भी है कि सभी श्रमिकों के जॉब कार्डों में भी कोई एंट्री नहीं की गई.
प्रधानों की मनमानी
संजोगिता ने बताया कि जब भी उसने ग्राम प्रधान से पैसों की मांग की तो उसने प्रधानमंत्री आवास योजना में मिलने वाले मकान को लिस्ट में नाम कटवाने की धमकी दे दी. वह जैसे-तैसे किसानों के खेत में मजदूरी कर अपने बच्चों का पेट पाल रही है. ग्राम प्रधानों की मनमानी एक दो गांवों में नहीं बल्कि 80 फीसदी से ज्यादा गांवों में देखी जा रही है. मनरेगा योजना में श्रमिक परिवारों के नाम पर ग्राम प्रधानों ने अपने चहेते और रिश्तेदारों के जॉब कार्ड बनवाए हुए हैं. बिना मजदूरी किए ही उनके जॉब कार्ड पर उपस्तिथि चढ़ाकर उनके खाते में 202 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी के पैसे भेजे जा रहे हैं.
प्रधानों की मनमानी से हताश श्रमिकों का कहना है कि प्रधान मनरेगा के नाम पर काम तो श्रमिकों से करा रहे हैं. मगर उनके नाम का पैसा अपने परिजनों और चहेतों के बैंक खाते में डलवा रहे हैं. यही हाल सांसद की ओर से गोद लिए गांव खुशहालीपुर का भी है, जहां श्रमिकों को पिछले 4 साल से मनरेगा के जॉब कार्ड भी नहीं मिले हैं.
100 दिन की बजाए 15-20 दिन का काम
ग्राम प्रधान और ठेकेदार 100 दिन की बजाए 15-20 दिन का रोजगार देकर नगद पैसे दे रहे हैं, जबकि सरकारी दस्तावेजों में 60 से 80 दिन का रोजगार दर्ज कर सरकारी पैसे को डकारने में लगे हुए हैं. सड़क पर काम कर रहे श्रमिकों ने बताया कि ये लोग 4 साल से मनरेगा में काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें 100 दिन का रोजगार मिलना तो दूर उनके जॉब कार्ड भी नहीं बने हैं और न ही उनके खाते में मजदूरी के पैसे आ रहे हैं.
ग्राम प्रधानों की मनमानी के चलते जहां श्रमिक परिवारों के सामने आर्थिक संकट मंडरा रहा है तो वहीं कुछ श्रमिक भूखमरी के कगार पर भी पहुंच रहे हैं. मनरेगा में हो रहे कारनामे के बारे जब स्वत रोजगार उपायुक्त ए. के. उपाध्याय से बात की तो उन्होंने न सिर्फ मनरेगा योजना की शिकायतें स्वीकार की हैं बल्कि 17 करोड़ रुपये श्रमिकों को भुगतान करने का दावा कर रहे हैं.
उनका कहना है कि योजना के तहत साल में 100 दिन का रोजगार दिया जाता है. इस वर्ष भी विभाग की ओर से प्रयास किया जा रहा है कि ज्यादा से ज्यादा श्रमिकों को 100 दिन का रोजगार दिया जाए. मनरेगा में हो रही धांधली की शिकायतें मिलने पर उनकी जांच कराई जा रही है. अगर शिकायतों के मुताबिक योजना में कोई धांधली पाई जाती है तो आरोपियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी ताकि भविष्य में ऐसे कृत्यों की पुनरावृति हो सके. उन्होंने बताया कि 2020 के पहले 6 महीनों में 17 करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान श्रमिकों को किया जा चुका है.
ईटीवी भारत ने ग्राउंड जीरो पर पहुंच कर मनरेगा योजना में हो रही धांधली की पड़ताल की तो कई बड़े खुलासे सामने आए हैं. कई ग्राम प्रधानों ने मनरेगा के नाम पर अपने गन्ने की फसल को कटवाया है तो कई गांवों में मकान बनाने के काम कराए गए. इतना ही नहीं श्रमिकों ने यह भी बताया कि ग्राम प्रधान 50-60 लोगों से मजदूरी कराकर 200-300 लोगों के नाम के पैसे मंगवा रहे हैं. चौंकाने वाली बात तो ये है कि इस कारनामे में ग्राम सचिव के साथ उच्च स्तरीय अधिकारी भी मिले हुए हैं. शायद यही वजह है कि करोड़ों के इस खेल में कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही. हालांकि दिहाड़ी मजदूर अपने हक के लिए अधिकाकरियों को भी गुहार लगा चुके हैं.