शामली: जनपद के थानाभवन थाना क्षेत्र में विवादित जर्जर इमारत में अजान पढ़ने का मामला सामने आया है. विवादित स्थल से मुस्लिम युवक की नमाज पढ़ने की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद ग्राम प्रधान प्रतिनिधि ने थाने में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए नमाज पढ़ने वाले युवक को गिरफ्तार लिया. बता दें कि इस विवादित स्थल को कुछ लोग मनहार राजाओं से जोड़ते हैं तो कुछ लोग यहां मस्जिद होने का दावा करते हैं.
जानें पूरा मामला
दरअसल, शामली जिले के गांव अहाता गौसगढ में 4 बीघा जमीन में एक जर्जर इमारत मौजूद है. कुछ लोग सैंकड़ों वर्ष पुरानी इस इमारत के मस्जिद होने का दावा करते हैं तो कई लोग इसे मनहार राजाओं के दुर्ग का हिस्सा बताते हैं. बीते शुक्रवार को जलालाबाद कस्बे के रहने वाले उमर कुरैशी नाम के युवक ने इस विवादित स्थल पर पहुंचकर नमाज अदा की और मौके पर एक वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. वीडियो और फोटो वायरल होने के बाद स्थानीय लोगों में रोष फैल गया, जिसके बाद ग्राम प्रधान प्रतिनिधि नीरज कुमार द्वारा थानाभवन थाने पर आरोपी युवक के खिलाफ पुलिस को तहरीर दी.
पुलिस ने आरोपी को किया गिरफ्तार
थानाध्यक्ष थानाभवन नेत्रपाल सिंह ने बताया कि ग्राम प्रधान प्रतिनधि की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी युवक के खिलाफ आईपीसी की धारा 505(2) व आईटी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था, जिसे शनिवार को गिरफ्तार कर लिया. स्थानीय लोगों के मुताबिक मौके पर मौजूद संरचना आंशिक रूप से खंडहर हो चुकी है, जिसे कुछ लोग मनहार राजाओं से जोड़ते हैं तो कई लोग इसके मस्जिद होने का दावा करते हैं.
ब्रिटिश कॉल में हुआ था समझौता
इस मामले में सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन मनहार खेड़ा दुर्ग कल्याण समिति के सचिव भानु प्रताप सिंह ने बताया कि यह क्षेत्र 1350 से मनहार दुर्ग का हिस्सा रहा है, जहां मनहार खेड़ा के हिंदू राजाओं ने शासन किया था. उन्होंने बताया कि बाद में यह क्षेत्र मुगलों के नियंत्रण में आ गया था. इसके बाद विवादित संरचना को एक मस्जिद में बदल दिया गया. उन्होंने बताया कि बाद में मराठों के सहयोग से यह क्षेत्र फिर से हिंदुओं के कब्जे में आ गया था, जिसके कारण आज यहां कोई मुस्लिम परिवार नहीं रहता है.
भानु प्रताप सिंह ने बताया कि ब्रिटिश शासन के दौरान इस स्थल पर प्रार्थना फिर से शुरू करने को लेकर विवाद हुआ था, जिससे तनाव बढ़ गया था. इसके बाद 1940 में ब्रिटिश शासन के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट और जसमौर रियासत के महाराजा की मौजूदगी में एक पंचायत हुई थी, जिसमें सहमति बनी थी कि इस संरचना को हिंदुओं द्वारा ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए और मुसलमान यहां पर नमाज व दुआ नहीं करेंगे. उन्होंने बताया कि यह फैसला तभी से चला आ रहा है.
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