भदोही: जिले का कालीन उद्योग जो अपनी मखमली कालीनों के लिए देश-विदेश में पहचाना जाता है. इस उद्योग से लाखों बुनकरों की आजीविका चलती है. सालाना इस उद्योग से दस हजार करोड़ का एक्सपोर्ट किया जाता रहा है, लेकिन इस समय इस उद्योग की मुश्किलें मंदी ने बढ़ा दी है. ऐसे में अगर आगे भी इसी तरह के हालात रहे तो बड़ी संख्या में बुनकरों का पलायन होगा. उद्योग के सामने तमाम चुनौतियां है उद्योग अब सरकार की तरफ तमाम उम्मीदे लगाए बैठा है.
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मंदी के कारण कम मिल रहे ऑर्डर
भदोही की निर्मित खूबसूरत कालीन, जो विदेशी बाजारों में सबसे अधिक पसंद की जाती रही है. इन मखमली कालीनों को विदेशो में लग्जरी आइटम माना जाता है. बीते वर्ष की बात करे तो कालीन उद्योग ने 10 हजार करोड़ से ज्यादा का एक्सपोर्ट किया था. जिसमें अकेले भदोही परिक्षेत्र की 60 फीसदी से ज्यादा की भागेदारी रही थी. एक्सपोर्ट ज्यादा होने के चलते स्थानीय बुनकरों के अलावा प्रदेश के कई जिलों से आए बुनकरों को इस उद्योग ने रोजगार दिया, लेकिन अब उद्योग वैश्विक मंदी की चपेट में है. विदेशी बाजारों से भदोही के उद्योग को ऑर्डर कम मिल रहे हैं, जिससे सबसे बड़ा असर यहां के बुनकरों पर पड़ेगा.
पलायन को मजबूर बुनकर
यही हाल रहा तो उद्योग से बुनकरों का पलायन होगा, जो इस उद्योग के लिए ठीक नहीं होगा. एक कालीन की लागत में 30 प्रतिशत मैटेरियल और 70 प्रतिशत लेवर चार्ज होता है. ऐसे में अगर बुनकरों ने आने वाले समय में पलायन किया तो, यह उद्योग के लिए सबसे बड़ी समस्या होगी. उद्योग से जुड़े लोग सरकार से तमाम उम्मीदें लगाए बैठे है कि सरकार इस उद्योग की मदद करे. कालीन निर्यातकों की मांग है की सरकार को इस उद्योग को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है.
मशीनमेड कालीन की बढ़ रही मांग
वैश्विक मंदी की वजह से हस्त निर्मित कालीनों की डिमांड सबसे अधिक कम हुई है क्योकि हस्त निर्मित कालीन महंगी होती है, लेकिन इस बीच मशीनमेड कालीनों की डिमांड लगातार बढ़ रही है. मशीनमेड कालीन सस्ती होने की वजह से तमाम कालीन निर्माता देशों से मशीनमेड कालीन की मांग बढ़ी है.
एक समय टर्की भारत से खरीदता था कालीन
आपको बता दें कि एक समय टर्की भारत से कालीन खरीददता था, लेकिन अब वह खुद एक्सपोर्ट कर रहा है. ऐसे ही बहुत से देश है जो अब मशीनमेड कालीनों का निर्माण कर रहे हैं. जिस तेजी से हस्तनिर्मित कालीनों की डिमांड कम हो रही है. वह रोजगार पर सबसे अधिक असर डालेगा. एक अनुमान के मुताबिक कालीन उद्योग से 20 लाख बुनकर जुड़े है. ऐसे में अगर काम कम होगा, तो लाखों बुनकर बेरोजगार हो जाएंगे. कुछ साल पहले इसी तरह के हालात बने थे तब सरकार ने कालीन उद्योग की मदद की थी. मौजूदा हालात में भी उद्योग सरकार से मदद की उम्मीदें लगाए हुए है.