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बदहाल होता संतकबीरनगर का बर्तन उद्योग, पलायन को मजबूर हुनरमंद

उत्तर प्रदेश के संतकबीरनगर जिले का बर्तन उद्योग अब बंद होने की कगार पर है. यहां के बखिरा इलाके से कई कारीगरों ने पलायन भी कर लिया है. तो वहीं कुछ कारीगर जो यहां अभी तक सरकारी मदद और कारखाना खुलने की आस में रुके हुए थे, वो भी पलायन करने को मजबूर हैं.

पलायन को मजबूर हैं कारीगर.
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Published : Nov 20, 2019, 2:43 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:22 PM IST

संतकबीरनगर: कभी पीतल की खनक से आबाद रहने वाला बखिरा का बर्तन उद्योग बढ़ती हुई महंगाई और आर्थिक मंदी की वजह से बंद होने के कगार पर है. यहां के बर्तन बनाने वाले बहुत से हुनरमंद कारीगर अब अपना उद्योग बंद कर चुके हैं. जो कारीगर अभी जिले में बचे हैं वो भी नये रोजगार की तलाश में पलायन की तैयारी में जुट गए हैं.

पलायन को मजबूर हैं कारीगर.

जिले के बखिरा कस्बा को कभी पीतल की नगरी कहा जाता था, जो अपने आप में करीब 100 साल पुराना इतिहास संजोये हुए है. बखिरा के बर्तन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इसे यूपी सरकार ने 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' योजना के तहत रखा है. इसके बाद भी प्रशासनिक उपेक्षा और सुविधाओं के अभाव में यहां का बर्तन उद्योग बदहाल है और यहां के हुनरमंद कारीगर पलायन के लिए मजबूर हैं.

इसे भी पढ़ें- आगरा: दो मंत्रियों के 'चिठ्ठी बम' ने खोली निगम के भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की पोल

कारीगरों की मानें तो यहां पर बर्तन बनाने के कारखाने लगभग बंद हो चुके हैं और बहुत से कारीगर गैर जनपद या गैर प्रांत में अपनी रोजी-रोटी के लिए पलायन कर चुके हैं. आज आलम यह है कि बर्तन उद्योग के बचे हुए कारीगर भी रोजी-रोटी की तलाश में पलायन करने को मजबूर हैं. वहीं मुख्य विकास अधिकारी बब्बन उपाध्याय ने बताया कि सरकार की 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' योजना लागू होने के साथ-साथ कारीगरों को लोन भी दिया जा रहा है, ताकि वह अपने उद्योग को आगे बढ़ा सकें. वही बर्तन उद्योग के लिए भूमि अधिग्रहित कर ली गई है, जिसमें जल्द ही आधुनिक मशीनें लगाकर कामगारों को रोजगार दिया जाएगा.

संतकबीरनगर: कभी पीतल की खनक से आबाद रहने वाला बखिरा का बर्तन उद्योग बढ़ती हुई महंगाई और आर्थिक मंदी की वजह से बंद होने के कगार पर है. यहां के बर्तन बनाने वाले बहुत से हुनरमंद कारीगर अब अपना उद्योग बंद कर चुके हैं. जो कारीगर अभी जिले में बचे हैं वो भी नये रोजगार की तलाश में पलायन की तैयारी में जुट गए हैं.

पलायन को मजबूर हैं कारीगर.

जिले के बखिरा कस्बा को कभी पीतल की नगरी कहा जाता था, जो अपने आप में करीब 100 साल पुराना इतिहास संजोये हुए है. बखिरा के बर्तन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इसे यूपी सरकार ने 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' योजना के तहत रखा है. इसके बाद भी प्रशासनिक उपेक्षा और सुविधाओं के अभाव में यहां का बर्तन उद्योग बदहाल है और यहां के हुनरमंद कारीगर पलायन के लिए मजबूर हैं.

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कारीगरों की मानें तो यहां पर बर्तन बनाने के कारखाने लगभग बंद हो चुके हैं और बहुत से कारीगर गैर जनपद या गैर प्रांत में अपनी रोजी-रोटी के लिए पलायन कर चुके हैं. आज आलम यह है कि बर्तन उद्योग के बचे हुए कारीगर भी रोजी-रोटी की तलाश में पलायन करने को मजबूर हैं. वहीं मुख्य विकास अधिकारी बब्बन उपाध्याय ने बताया कि सरकार की 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' योजना लागू होने के साथ-साथ कारीगरों को लोन भी दिया जा रहा है, ताकि वह अपने उद्योग को आगे बढ़ा सकें. वही बर्तन उद्योग के लिए भूमि अधिग्रहित कर ली गई है, जिसमें जल्द ही आधुनिक मशीनें लगाकर कामगारों को रोजगार दिया जाएगा.

Intro:संतकबीरनगर- बदहाल बर्तन उद्योग, पलायन को मजबूर है पीतल नगरी की हुनरमंद हाथ


Body:एंकर- कभी पीतल की खनक से आबाद रहने वाला बखिरा का बर्तन उद्योग बढ़ती हुई महंगाई और आर्थिक मंदी की वजह से यहां का वर्तन उद्योग बंद होने के कगार पर है जिसको लेकर यहां के बर्तन बनाने वाले बहुत से हुनरमंद कारीगर अपना उद्योग बंद कर चुके हैं या फिर अभी जिले से अपने रोजगार की तलाश में पलायन की तैयारी में लगे हुए।


Conclusion:वीओ- संत कबीर नगर जिले का बकरा कस्बा जिसे कभी पीतल की नगरी कहा जाता है जो करीब 100 साल पुराना इतिहास अपने आप में संजोये हुए है। बखीरा का बर्तन उद्योग मुरादाबाद की तर्ज पर ही बर्तन की कारीगरी में प्रदेश में दूसरा स्थान भी रखता है। आपको बता दें कि संत कबीर नगर जिले के बखिरा बर्तन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यूपी सरकार ने वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट योजना भी, बखिरा मे लागू की है इसके बाद भी प्रशासनिक उपेक्षा और सुविधाओं के अभाव में यहां कब बर्तन उद्योग बदहाल है और यहां के हुनरमंद कारीगर पलायन के लिए मजबूर है। आपको बता दें कि बखीरा कस्बे में करीब 100 साल पहले से पीतल और फूल के बर्तन यहां बनाए जाते थे यहां के पीतल के बर्तनों की खनक से पूरा जिला आबाद रहता था लेकिन आज बढ़ती महंगाई और आर्थिक मंदी की वजह से यहां का बर्तन उद्योग पूरी तरह से बंद होने की कगार पर है वही बखिरा बर्तन उद्योग से जुड़े कारीगरों की मानें तो यहां पर बर्तन बनाने के कारखाने लगभग बंद हो चुके हैं और बहुत से कारीगर गैर जनपद या गैर प्रांत में अपनी रोजी रोटी के लिए बहुत पहले ही यहां से पलायन कर चुके हैं और आज आलम यह है कि बर्तन उद्योग के बचे हुए कारीगर भी रोजी रोटी की तलाश में गोवा, दमनदीप के साथ ही गैर प्रांत की तरफ पलायन करने के लिए मजबूर हैं। वहीं पूरे मामले पर ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए मुख्य विकास अधिकारी बब्बन उपाध्याय ने बताया कि सरकार की वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट योजना लागू होने कि साथ-साथ कारीगरों को लोन भी दिया जा रहा है ताकि वह अपने आगे बढ़ा सके वही बर्तन उद्योग के लिए भूमि अधिग्रहण कर दी गई है जिसमें जल्द ही आधुनिक मशीनें लगाकर कामगारों को रोजगार दिया जाएगा।

फिलहाल सरकार की वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट योजना लागू होने और सरकार की इस मुहिम से आज जगने के बाद कुछ कामगार लौट कर आए तो आए जिससे बर्तन नगरी में चाल पाल देखने को मिल रही है लेकिन ज्यादातर बर्तन उद्योग अभी भी बेहाल है जिन्हें सरकार की मदद मिले तो पीतल की नगरी बखिरा में दोबारा चमक लौट सकती है लेकिन अब देखने वाली बात होगी कि बखीरा का बर्तन उद्योग इस बदहाली से कब भरेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

बाइट- ध्रुव नारायण बर्तन कारीगर

बाइट- राधेश्याम बर्तन कारीगर

बाइट- बब्बन उपाध्याय मुख्य विकास अधिकारी

p2c -अमित कुमार पाण्डेय

( स्पेशल स्टोरी अमित कुमार पांडे संत कबीर नगर)
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Last Updated : Sep 10, 2020, 12:22 PM IST
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