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संभल में अनोखी आस्था, यहां दो मुट्ठी मिट्टी चढ़ाने से होती हैं पुत्र रत्न की प्राप्ति - संत जोगा सिंह के बलिदान दिवस पर मिट्टी

संभल में एक स्थान ऐसा है, जहां अगर दो मुट्ठी मिट्टी चढ़ाने से लोगों को पुत्र की प्राप्ति होती है. जी हां मान्यता ये भी है कि जिन महिलाओं को औलाद नहीं होती है. वे पहले यहां आकर दो मुट्ठी मिट्टी चढ़ाती है और जब संतान पैदा होती है तो उसे लेकर अगले वर्ष संत जोगा सिंह के बलिदान दिवस पर मिट्टी चढ़ाने लाती हैं.

Soil on the sacrifice day of Saint Joga Singh
Soil on the sacrifice day of Saint Joga Singh
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Published : Mar 9, 2023, 7:06 PM IST

संभल में अनोखी आस्था

संभल: यूं तो देश में आस्था से जुड़े अनेकों मामले आपने देखें और सुने होंगे. पूजा अर्चना के तमाम तौर-तरीके भी देखे होंगे. कहीं किसी मंदिर में पूजा के दौरान 56 भोग तो कहीं कोई प्रसाद भी चढ़ाते देखा होगा. लेकिन यूपी के जनपद संभल से आस्था से जुड़ी एक अनोखी दास्तान सामने आई है. यहां एक ऐसा स्थान भी है, जहां पूजा के दौरान न 56 भोग लगाए जाते हैं और न ही विशेष तरह का प्रसाद चढ़ाया जाता है. बल्कि यहां पूजा अर्चना के दौरान कुलगुरू को दो मुट्ठी मिट्टी चढ़ाई जाती है. आस्था है कि मिट्टी चढ़ाने से कुलगुरू प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

दरअसल, संभल के नखासा थाना इलाके के भारतल सिरसी गांव स्थित चाहल गोत्रीय जाटों के कुल गुरु संत जोगा सिंह की समाधि स्थल है. यहां के बड़े बुजुर्गों का कहना है कि सिख समाज के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ कर धर्म की रक्षा के लिए अपने सेनापति संत जोगा सिंह को संभल भेजा था. आज ही के दिन संत जोगा सिंह ने बलिदान दिया था, जहां उनकी समाधि भारतल सिरसी गांव में ही बनी हुई है. संत जोगा सिंह के बलिदान दिवस पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड समेत तमाम राज्य के लोग यहां पूजा अर्चना करने आते हैं. प्रत्येक वर्ष कुल गुरु संत जोगा सिंह की समाधि स्थल पर मेला लगता है.

देशभर से चाहल गोत्रीय जाट परिवार की नवविवाहिताएं यहां आती है और संत जोगा सिंह की समाधि स्थल पर मत्था टेकती हैं. यहां की परंपरा यह है कि चाहल गोत्र के जिन युवकों की शादी 1 साल के भीतर हुई होती है. वह अपनी पत्नी को शादी वाले लाल जोड़े में लेकर यहां आते हैं और नववधू से दो मुट्ठी मिट्टी संत जोगा सिंह की समाधि पर चढ़वाकर मत्था टिकवाते हैं. यहां की परंपरा यह है कि चाहल गोत्र के लड़के की जब शादी होती है. तब उसकी पत्नी को चाहल समाज में शामिल होने के लिए उस खास दिन का इंतजार करना होता है, जिस दिन कुल गुरु संत जोगा सिंह की समाधि पर मेला लगता है. चाहल गोत्र के कुल गुरु के बलिदान दिवस पर समाधि पर मिट्टी चढ़ाकर नवविवाहिता विधिवत रूप से चाहल गोत्र में शामिल हो जाती है.

यहां की मान्यता यह भी है कि यहां दो मुट्ठी मिट्टी चढ़ाकर संत जोगा सिंह की समाधि पर मत्था टेकने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. मान्यता ये भी है कि जिन महिलाओं को औलाद नहीं होती है तो पहले यहां आकर दो मुट्ठी मिट्टी चढ़ाती है और जब संतान पैदा होती है तो उसे लेकर अगले वर्ष संत जोगा सिंह के बलिदान दिवस पर मिट्टी चढ़ाने लाती हैं. संत जोगा सिंह की समाधि स्थल की एक और मान्यता यह है कि जो जानवर दूध नहीं देते हैं. यहां की भभूत से वह जानवर दूध देने लग जाते हैं.

यह भी पढ़ें- संभल में लापता मजदूर का शव श्मशान घाट में गड़ा मिला, पुलिस ने चार के खिलाफ दर्ज किया हत्या का मुकदमा

संभल में अनोखी आस्था

संभल: यूं तो देश में आस्था से जुड़े अनेकों मामले आपने देखें और सुने होंगे. पूजा अर्चना के तमाम तौर-तरीके भी देखे होंगे. कहीं किसी मंदिर में पूजा के दौरान 56 भोग तो कहीं कोई प्रसाद भी चढ़ाते देखा होगा. लेकिन यूपी के जनपद संभल से आस्था से जुड़ी एक अनोखी दास्तान सामने आई है. यहां एक ऐसा स्थान भी है, जहां पूजा के दौरान न 56 भोग लगाए जाते हैं और न ही विशेष तरह का प्रसाद चढ़ाया जाता है. बल्कि यहां पूजा अर्चना के दौरान कुलगुरू को दो मुट्ठी मिट्टी चढ़ाई जाती है. आस्था है कि मिट्टी चढ़ाने से कुलगुरू प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

दरअसल, संभल के नखासा थाना इलाके के भारतल सिरसी गांव स्थित चाहल गोत्रीय जाटों के कुल गुरु संत जोगा सिंह की समाधि स्थल है. यहां के बड़े बुजुर्गों का कहना है कि सिख समाज के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ कर धर्म की रक्षा के लिए अपने सेनापति संत जोगा सिंह को संभल भेजा था. आज ही के दिन संत जोगा सिंह ने बलिदान दिया था, जहां उनकी समाधि भारतल सिरसी गांव में ही बनी हुई है. संत जोगा सिंह के बलिदान दिवस पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड समेत तमाम राज्य के लोग यहां पूजा अर्चना करने आते हैं. प्रत्येक वर्ष कुल गुरु संत जोगा सिंह की समाधि स्थल पर मेला लगता है.

देशभर से चाहल गोत्रीय जाट परिवार की नवविवाहिताएं यहां आती है और संत जोगा सिंह की समाधि स्थल पर मत्था टेकती हैं. यहां की परंपरा यह है कि चाहल गोत्र के जिन युवकों की शादी 1 साल के भीतर हुई होती है. वह अपनी पत्नी को शादी वाले लाल जोड़े में लेकर यहां आते हैं और नववधू से दो मुट्ठी मिट्टी संत जोगा सिंह की समाधि पर चढ़वाकर मत्था टिकवाते हैं. यहां की परंपरा यह है कि चाहल गोत्र के लड़के की जब शादी होती है. तब उसकी पत्नी को चाहल समाज में शामिल होने के लिए उस खास दिन का इंतजार करना होता है, जिस दिन कुल गुरु संत जोगा सिंह की समाधि पर मेला लगता है. चाहल गोत्र के कुल गुरु के बलिदान दिवस पर समाधि पर मिट्टी चढ़ाकर नवविवाहिता विधिवत रूप से चाहल गोत्र में शामिल हो जाती है.

यहां की मान्यता यह भी है कि यहां दो मुट्ठी मिट्टी चढ़ाकर संत जोगा सिंह की समाधि पर मत्था टेकने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. मान्यता ये भी है कि जिन महिलाओं को औलाद नहीं होती है तो पहले यहां आकर दो मुट्ठी मिट्टी चढ़ाती है और जब संतान पैदा होती है तो उसे लेकर अगले वर्ष संत जोगा सिंह के बलिदान दिवस पर मिट्टी चढ़ाने लाती हैं. संत जोगा सिंह की समाधि स्थल की एक और मान्यता यह है कि जो जानवर दूध नहीं देते हैं. यहां की भभूत से वह जानवर दूध देने लग जाते हैं.

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