सहारनपुर: कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसे जावन पर रिसर्च किया है, जो न सिर्फ खेतों में पराली और फसल अवशेष का निस्तारण करेगा. बल्कि अवशेष को जैविक खाद के रूप में भी बदल देगा. कृषि वैज्ञानिक डॉ. आईके कुशवाह ने ईटीवी भारत से बताया कि इसको 'पूसा डिकम्पोजर' नाम दिया गया है. इस डिकम्पोजर का छिड़काव खेत की फसल अवशेष पर करने से खाद बनती है. ये प्रक्रिया कुछ दिनों में होती है. दूसरा फायदा यह है कि ये खाद बनकर खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में भी मदद करती है.
किसानों को मुफ्त दिया जा रहा 'जावन'
कृषि वैज्ञानिक डॉ.आई.के.कुशवाह ने बताया कि किसान खेत की पराली, गन्ने की पत्ती सहित फसल अवशेषों को जला देते थे. लेकिन उन्हें अब जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. किसान सिर्फ पूसा डिकंपोजर का इस्तेमाल करें. इसका जावन किसानों को मुफ्त दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि खेत में फसल अवशेष (पराली) पर पूसा डिकम्पोजर के घोल का छिड़काव किया जाता है. इससे पराली या फसल के अवशेष सड़ जाता है. ये धीरे-धीरे जैविक खाद में तब्दील हो जाती है. इस से खेत की उर्वरकता भी बढ़ेगी. वहीं पराली जलने का सिलसिला थमेगा और प्रदूषण कम होगा.
किसान ऐसे बनाएं पूसा डिकम्पोजर
डॉ. आई.के. कुशवाह ने बताया कि छोटे किसानों को 100- 200ml और बड़े किसान को आधा लीटर जावन निशुल्क दिया जा रहा है. किसान 200 लीटर पानी, 2 किलो गुड़ और 1 किलो बेसन में जावन को मिलाएं. ये घोल 10 दिनों बाद पूसा डिकम्पोजर के रूप में बनकर तैयार हो जाएगा. इस घोल को सिंचाई के पानी के साथ एक एकड़ खेत में भर सकते हैं. इसके अलावा फसल अवशेष के ऊपर स्प्रे या छिड़काव भी कर सकते हैं. एक महीने बाद खेतों का अवशेष खाद में तब्दील हो जाएगा. इससे न सिर्फ खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है, बल्कि फसल की पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है. डिकम्पोजर के प्रयोग से खेतों का अवशेष सड़कर मिट्टी में मिल जाता है. वहीं आगामी फसल को जैविक खाद मिल जाती है.
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कृषि वैज्ञानिक का दावा है कि पूसा डिकम्पोजर के प्रयोग से पराली और फसल अवशेष जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे हमारे देश का पर्यावरण प्रदूषित होने से बचेगा. साथ ही किसान भी कानूनबाजी से बचेंगे.