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सहारनपुरः किसानों के लिए खुशखबरी, इसके उपयोग से पराली बन जाएगी खाद

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में कृषि वैज्ञानिक डॉ.आई.के.कुशवाह ने दावा किया है कि उन्होंने ऐसा जावन बनाया है, जो फसल के अवशेष को खाद बना देगा. कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इसका नाम पूसा डिकम्पोजर रखा गया है. इसका जावन किसानों को मुफ्त में दिया जा रहा है.

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कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर आईके कुशवाह.
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Published : Dec 14, 2019, 6:34 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

सहारनपुर: कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसे जावन पर रिसर्च किया है, जो न सिर्फ खेतों में पराली और फसल अवशेष का निस्तारण करेगा. बल्कि अवशेष को जैविक खाद के रूप में भी बदल देगा. कृषि वैज्ञानिक डॉ. आईके कुशवाह ने ईटीवी भारत से बताया कि इसको 'पूसा डिकम्पोजर' नाम दिया गया है. इस डिकम्पोजर का छिड़काव खेत की फसल अवशेष पर करने से खाद बनती है. ये प्रक्रिया कुछ दिनों में होती है. दूसरा फायदा यह है कि ये खाद बनकर खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में भी मदद करती है.

कृषि वैज्ञानिक ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत.

किसानों को मुफ्त दिया जा रहा 'जावन'
कृषि वैज्ञानिक डॉ.आई.के.कुशवाह ने बताया कि किसान खेत की पराली, गन्ने की पत्ती सहित फसल अवशेषों को जला देते थे. लेकिन उन्हें अब जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. किसान सिर्फ पूसा डिकंपोजर का इस्तेमाल करें. इसका जावन किसानों को मुफ्त दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि खेत में फसल अवशेष (पराली) पर पूसा डिकम्पोजर के घोल का छिड़काव किया जाता है. इससे पराली या फसल के अवशेष सड़ जाता है. ये धीरे-धीरे जैविक खाद में तब्दील हो जाती है. इस से खेत की उर्वरकता भी बढ़ेगी. वहीं पराली जलने का सिलसिला थमेगा और प्रदूषण कम होगा.

किसान ऐसे बनाएं पूसा डिकम्पोजर
डॉ. आई.के. कुशवाह ने बताया कि छोटे किसानों को 100- 200ml और बड़े किसान को आधा लीटर जावन निशुल्क दिया जा रहा है. किसान 200 लीटर पानी, 2 किलो गुड़ और 1 किलो बेसन में जावन को मिलाएं. ये घोल 10 दिनों बाद पूसा डिकम्पोजर के रूप में बनकर तैयार हो जाएगा. इस घोल को सिंचाई के पानी के साथ एक एकड़ खेत में भर सकते हैं. इसके अलावा फसल अवशेष के ऊपर स्प्रे या छिड़काव भी कर सकते हैं. एक महीने बाद खेतों का अवशेष खाद में तब्दील हो जाएगा. इससे न सिर्फ खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है, बल्कि फसल की पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है. डिकम्पोजर के प्रयोग से खेतों का अवशेष सड़कर मिट्टी में मिल जाता है. वहीं आगामी फसल को जैविक खाद मिल जाती है.

ये भी पढ़ें: सहारनपुर: जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने नागरिकता संशोधन बिल का किया विरोध

कृषि वैज्ञानिक का दावा है कि पूसा डिकम्पोजर के प्रयोग से पराली और फसल अवशेष जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे हमारे देश का पर्यावरण प्रदूषित होने से बचेगा. साथ ही किसान भी कानूनबाजी से बचेंगे.

सहारनपुर: कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसे जावन पर रिसर्च किया है, जो न सिर्फ खेतों में पराली और फसल अवशेष का निस्तारण करेगा. बल्कि अवशेष को जैविक खाद के रूप में भी बदल देगा. कृषि वैज्ञानिक डॉ. आईके कुशवाह ने ईटीवी भारत से बताया कि इसको 'पूसा डिकम्पोजर' नाम दिया गया है. इस डिकम्पोजर का छिड़काव खेत की फसल अवशेष पर करने से खाद बनती है. ये प्रक्रिया कुछ दिनों में होती है. दूसरा फायदा यह है कि ये खाद बनकर खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में भी मदद करती है.

कृषि वैज्ञानिक ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत.

किसानों को मुफ्त दिया जा रहा 'जावन'
कृषि वैज्ञानिक डॉ.आई.के.कुशवाह ने बताया कि किसान खेत की पराली, गन्ने की पत्ती सहित फसल अवशेषों को जला देते थे. लेकिन उन्हें अब जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. किसान सिर्फ पूसा डिकंपोजर का इस्तेमाल करें. इसका जावन किसानों को मुफ्त दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि खेत में फसल अवशेष (पराली) पर पूसा डिकम्पोजर के घोल का छिड़काव किया जाता है. इससे पराली या फसल के अवशेष सड़ जाता है. ये धीरे-धीरे जैविक खाद में तब्दील हो जाती है. इस से खेत की उर्वरकता भी बढ़ेगी. वहीं पराली जलने का सिलसिला थमेगा और प्रदूषण कम होगा.

किसान ऐसे बनाएं पूसा डिकम्पोजर
डॉ. आई.के. कुशवाह ने बताया कि छोटे किसानों को 100- 200ml और बड़े किसान को आधा लीटर जावन निशुल्क दिया जा रहा है. किसान 200 लीटर पानी, 2 किलो गुड़ और 1 किलो बेसन में जावन को मिलाएं. ये घोल 10 दिनों बाद पूसा डिकम्पोजर के रूप में बनकर तैयार हो जाएगा. इस घोल को सिंचाई के पानी के साथ एक एकड़ खेत में भर सकते हैं. इसके अलावा फसल अवशेष के ऊपर स्प्रे या छिड़काव भी कर सकते हैं. एक महीने बाद खेतों का अवशेष खाद में तब्दील हो जाएगा. इससे न सिर्फ खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है, बल्कि फसल की पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है. डिकम्पोजर के प्रयोग से खेतों का अवशेष सड़कर मिट्टी में मिल जाता है. वहीं आगामी फसल को जैविक खाद मिल जाती है.

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कृषि वैज्ञानिक का दावा है कि पूसा डिकम्पोजर के प्रयोग से पराली और फसल अवशेष जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे हमारे देश का पर्यावरण प्रदूषित होने से बचेगा. साथ ही किसान भी कानूनबाजी से बचेंगे.

Intro:सहारनपुर : एक ओर जहां पिछले दिनों पराली एवं फसल अवशेष को जलाए जाने पर न सिर्फ दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण बढ़ गया था वहीं सेकड़ो किसानों के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज कर जुर्माना भी वसूला गया। लगातार फसल अवशेष जलाए जानी की शिकायतों को देखते हुए सहारनपुर में कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसे जावन पर रिसर्च किया है जो न सिर्फ खेतो में पराली और फसल अवशेष का निस्तारण कर देगा बल्कि अवशेष को जैविक खाद के रूप में बदल देगा। कृषि वैज्ञानिक डॉ आईके कुशवाह ने ईटीवी से EXCLUSIVE बातचीत में बताया कि इसका नाम पूसा डीकम्पोजर दिया गया है। इसका छिड़काव खेत मे पड़े फसल अवशेष पर करने की वह खेत मे सड़ कर कुछ दिन बाद खाद बन जाता है। जिससे एक तो फसल अवशेष जलाने की जरूरत नही पड़ती दूसरा खाद बनकर खेतो की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।


Body:VO 1 - कृषि वैज्ञानिक डॉ आई के कुशवाह ने ईटीवी से बातचीत में बताया कि इन दिनों एक समस्या बनती चली आ रही है क्योंकि यंत्रीकरण का जमाना है। खेतो में फसल पैदा करने के बाद अवशेष निकल रहे है। जबकि किसान अनाज को घर और बाजार में पहुंचा देते है। किसान भाई खेत मे पड़े पराली, गन्ने की पत्ती आदि फसल अवशेषों को जला देते थे। लेकिन अब उन्हें जलाने मि जरूरत नही पड़ेगी। फसल अवशेष का निस्तारण करने लिए कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों को न सिर्फ पूसा डी कम्पोजर का प्रयोग करने की सलाह दी है बल्कि पूसा डी कम्पोजर का जावन मुफ्त वितरित किया जा रहा है। खेत मे फसल अवशेष पर पूसा डी कम्पोजर के घोल का छिड़कने से वह सड़ जाता है। धीरे धीरे कुछ दिनों में पराली एवं फसल अवशेष सड़ कर जैविक खाद बन जाते है। उन्होंने बताया कि फसल अवशेष को जलाना सरकार की ओर से प्रतिबधित किया गया है।

सहारनपुर कृषि विज्ञान केंद्र में पूसा डी कम्पोजर उसमें गवर्नमेंट की तरफ सरकार की तरफ से धनिया प्लान है उसको जलाया नहीं चाहिए किसान भाइयों को हमारे कृषि विज्ञान केंद्र में आईसीआर से कैप्सूल के रूप में लाए हैं। जिसके बाद उन कैप्सूल को हमने यहां के जावन के रूप में बनाया हुआ है। जहां विज्ञान केंद्र की ओर से पूसा कम्पोजर जावन किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। डॉ आईके कुशवाह ने बताया कि 100ml- 200ml या फ़ॉर बड़े किसान को आधा लीटर निशुल्क दिया जा रहा है। इस जावन को किसान भाई अपने खेतों में ले जाकर के जो पानी के बड़े हौद या ड्रम मे 200 लीटर पानी में 2 किलो गुड़ और 1 किलो बेसन डालकर के इस जामुन को मिला दें। लगभग 10 दिन में बाद यह घोल पूसा डी कम्पोजर बन जाता है। तैयार पूसा डी कम्पोजर के इस घोल को एक एकड़ में सिंचाई के पानी के साथ खेतों में चला सकते हैं। या फिर फसल अवशेषों के ऊपर स्प्रे या छिड़काव कर देते है तो एक महीने बाद खेतो में पड़े अवशेष खाद बन जाते है। इससे न सिर्फ खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ जाती है बल्कि फसल पैदावार में भी बढोतरी होती है। डी कम्पोजर के प्रयोग से खेतो में पड़े अवशेष सड़ कर मिट्टी में मिल जाता है। वही आगामी फसल को जैविक खाद मिल जाती है।

बाईट - डॉ आई के कुशवाह ( कृषि वैज्ञानिक सहारनपुर )


Conclusion:FVO - कृषि वैज्ञानिक का दावा है कि पूसा डी कम्पोजर के प्रयोग से पराली और फसल अवशेष बचाने की जरूरत नही पड़ेगी। जिससे हमारे देश का पर्यावरण प्रदूषित होने से बचेगा ही साथ किसान भाई भी फालतू के मुकदमे बाजी से बचेंगे। इसके अलावा खेतो में फसल की पैदावार में वृध्दि होगी जिससे किसानों की आय भी बढ़ना लाज़मी है।

रोशन लाल सैनी
सहारनपुर
9121293042
9759945153
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST
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