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कारगिल युद्ध में शहीद राजेश की मां को है कैंसर, सरकार नहीं कर रही कोई मदद

कारगिल युद्ध में शहीद हुए लांस नायक शहीद राजेश बैरागी के माता-पिता गरीबी हालत में जीवन गुजारने को मजबूर हैं. पैसे के अभाव से शहीद की मां कैंसर की बीमारी से जूझ रही हैं, लेकिन सरकार शहीद के परिवार और अपने वादे को भूल चुकी है.

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Published : Jul 27, 2019, 9:46 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

शहीद के बूढ़े माता-पिता गरीबी में कर रहे जीवन-यापन.

सहारनपुर: राजेश बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी करते थे, जिसके चलते 18 साल की उम्र में राजेश बैरागी 1988 में सेना में भर्ती हो गए. राजेश बैरागी ने 11 साल के कार्यकाल में कई लड़ाई लड़ी और दुश्मनों के छक्के छुड़ाए. जिसके चलते उनका प्रमोशन लांस नायक के पद पर हो गया.

बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी :
राजेश बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहे थे. राजेश बैरागी ने 11 साल के कार्यकाल में कई लड़ाई लड़ी और दुश्मनों के छक्के छुड़ाए, जिसके चलते उनका प्रमोशन लांस नायक के पद पर हो गया.

दुश्मनों से युद्ध करते हुए शहीद :
31 साल की उम्र में राजेश बैरागी 7 जुलाई 1999 को पैराशूट रेजीमेंट में लांस नायक के पद पर रहते हुए दुश्मनों से युद्ध करते हुए शहीद हो गए. जैसे ही राजेश की शहादत की खबर गांव में पहुंची तो न सिर्फ परिवार में कोहराम था बल्कि पूरे इलाके में शोक की लहर थी.

शहीद के बूढ़े माता-पिता गरीबी में कर रहे जीवन-यापन.

मां के लिए दी कुर्बानी और अब कैंसर से जूझ रही मां :
राजेश दुश्मनों से युद्ध में जिस भारत मां की रक्षा करते हुए शहीद हो गये. आज उसकी मां पैसे के अभाव में कैंसर के चलते देहरादून के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही हैं. बावजूद इसके जिला प्रशासन की ओर उन्हें आर्थिक मदद तो दूर उनकी बुढ़ापे की पेंशन भी नहीं भेजी गई है.

कौन सुनेगा शहीद परिवार का दर्द :
शहीद राजेश अपने पीछे बूढ़े मां-बाप के साथ पत्नी और बच्चों को छोड़ गए. उनकी शहादत पर आए अधिकारियों और नेताओं की मौजूदगी में राष्ट्रीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. प्रशासन ने अंत्येष्टि में पहुंचकर शहीद राजेश बैरागी के परिवार को सांत्वना देकर हर सभंव मदद का वादा किया था, लेकिन राजेश के शहादत के कुछ दिन बाद ही शहीद के परिवार को भूल गयी.

प्रशासन के झूठे वादे :
प्रशासन ने राजेश बैरागी की याद में गांव में सड़क मार्ग का नाम रखने, कस्बा गगोह में बस अड्डे पर शहीद की प्रतिमा लगाने और पक्का मकान बनाने का वादा किया था, लेकिन सरकार और अधिकारी सब भूल गए. इस वक्त शहीद के बूढ़े माता-पिता अपने छोटे-बेटे राकेश बैरागी के साथ गरीबी में जीवन जी रहे हैं.

एक साल से पेंशन का एक भी पैसा नहीं आया है. 90 साल की उम्र में अधिकारियों के चक्कर काटने को मजबूर हूं. राजेश की पत्नी अपने दोनों बच्चो के साथ हरियाणा के यमुनानगर में रह रही हैं.
-ताराचंद बैरागी, शहीद के पिता

कारगिल युद्ध के दौरान वह 20 दिन की छुट्टी पर आया हुआ था. राजेश 10 दिन ही घर रूका था कि बीच में ही कारगिल युद्ध छिड़ गया और उसको वापस जाना पड़ा. पूरा परिवार उसे रोकता रहा, लेकिन राजेश ने देश सेवा को अपना कर्तव्य बताकर किसी की नहीं सुनी. घर से जाने के 10 दिन बाद ही उसकी शहादत की खबर आई.
-राकेश बैरागी, शहीद के भाई

सहारनपुर: राजेश बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी करते थे, जिसके चलते 18 साल की उम्र में राजेश बैरागी 1988 में सेना में भर्ती हो गए. राजेश बैरागी ने 11 साल के कार्यकाल में कई लड़ाई लड़ी और दुश्मनों के छक्के छुड़ाए. जिसके चलते उनका प्रमोशन लांस नायक के पद पर हो गया.

बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी :
राजेश बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहे थे. राजेश बैरागी ने 11 साल के कार्यकाल में कई लड़ाई लड़ी और दुश्मनों के छक्के छुड़ाए, जिसके चलते उनका प्रमोशन लांस नायक के पद पर हो गया.

दुश्मनों से युद्ध करते हुए शहीद :
31 साल की उम्र में राजेश बैरागी 7 जुलाई 1999 को पैराशूट रेजीमेंट में लांस नायक के पद पर रहते हुए दुश्मनों से युद्ध करते हुए शहीद हो गए. जैसे ही राजेश की शहादत की खबर गांव में पहुंची तो न सिर्फ परिवार में कोहराम था बल्कि पूरे इलाके में शोक की लहर थी.

शहीद के बूढ़े माता-पिता गरीबी में कर रहे जीवन-यापन.

मां के लिए दी कुर्बानी और अब कैंसर से जूझ रही मां :
राजेश दुश्मनों से युद्ध में जिस भारत मां की रक्षा करते हुए शहीद हो गये. आज उसकी मां पैसे के अभाव में कैंसर के चलते देहरादून के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही हैं. बावजूद इसके जिला प्रशासन की ओर उन्हें आर्थिक मदद तो दूर उनकी बुढ़ापे की पेंशन भी नहीं भेजी गई है.

कौन सुनेगा शहीद परिवार का दर्द :
शहीद राजेश अपने पीछे बूढ़े मां-बाप के साथ पत्नी और बच्चों को छोड़ गए. उनकी शहादत पर आए अधिकारियों और नेताओं की मौजूदगी में राष्ट्रीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. प्रशासन ने अंत्येष्टि में पहुंचकर शहीद राजेश बैरागी के परिवार को सांत्वना देकर हर सभंव मदद का वादा किया था, लेकिन राजेश के शहादत के कुछ दिन बाद ही शहीद के परिवार को भूल गयी.

प्रशासन के झूठे वादे :
प्रशासन ने राजेश बैरागी की याद में गांव में सड़क मार्ग का नाम रखने, कस्बा गगोह में बस अड्डे पर शहीद की प्रतिमा लगाने और पक्का मकान बनाने का वादा किया था, लेकिन सरकार और अधिकारी सब भूल गए. इस वक्त शहीद के बूढ़े माता-पिता अपने छोटे-बेटे राकेश बैरागी के साथ गरीबी में जीवन जी रहे हैं.

एक साल से पेंशन का एक भी पैसा नहीं आया है. 90 साल की उम्र में अधिकारियों के चक्कर काटने को मजबूर हूं. राजेश की पत्नी अपने दोनों बच्चो के साथ हरियाणा के यमुनानगर में रह रही हैं.
-ताराचंद बैरागी, शहीद के पिता

कारगिल युद्ध के दौरान वह 20 दिन की छुट्टी पर आया हुआ था. राजेश 10 दिन ही घर रूका था कि बीच में ही कारगिल युद्ध छिड़ गया और उसको वापस जाना पड़ा. पूरा परिवार उसे रोकता रहा, लेकिन राजेश ने देश सेवा को अपना कर्तव्य बताकर किसी की नहीं सुनी. घर से जाने के 10 दिन बाद ही उसकी शहादत की खबर आई.
-राकेश बैरागी, शहीद के भाई

Intro:सहारनपुर : एक ओर जहां केंद्र की मोदी सरकार बॉर्डर पर शहीद हुए जवानों के परिवारों को मदद के दावे कर रही है वही कारगिल युद्ध में शहीद हुए लांस नायक शहीद राजेश बैरागी के माता पिता गरीबी हालत में जीवन गुजारने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं 85 साल की माता कांति देवी कैंसर की बीमारी से जूझ रही है। आलम यह है पैसे के अभाव में मां का इलाज भी नहीं करा पा रहे हैं। कारगिल युद्ध में अपने बेटे को गवां चुके पिता की आंखो से जहां आंसू सूख चुके हैं वहीं सैनिक बेटे की याद उन्हें रह-रहकर सता रही हैं। हालांकि 90 वर्षीय पिता ताराचंद बैरागी जहां बेटे की शहादत पर गर्व भी महसूस कर रहे हैं वही सरकार के दावो की पोल खोल रहे हैं।


Body:VO : आपको बता दें कि 1 अगस्त 1968 को गांव चेहरा अमिताभ बच्चन बैरागी राजेश बैरागी नहीं जन्म हुआ था। राजेश बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी करता रहता था। जिसके चलते 18 साल की उम्र में राजेश बैरागी 1988 में सेना में भर्ती हो गया था। राजेश बैरागी ने 11 साल के कार्यवकाल में कई लड़ाई लड़ी और दुश्मनों के छक्के छुड़ाए। जिसके चलते उनका प्रोमोशन लांस नायक के पद पर हो गया। 31 साल की उम्र में राजेश बैरागी 7 जुलाई 1999 को पैराशूट रेजीमेंट में लांस नायक के पद पर रहते हुए दुश्मनों से युद्ध करते हुए शहीद हो गए। जैसे ही राजेश की शहादत की खबर ग़ांव में पहुंची तो न सिर्फ परिवार में कोहराम मचा था बल्कि इलाके में शोक की लहर दौड़ गई। शहीद राजेश अपने पीछे बूढ़े मां बाप के साथ पत्नी और एक बेटा बेटी छोड़ गए। उनकी शहादत के पर आए अधिकारियों और नेताओं की मौजूदगी में राष्ट्रीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। शासन प्रशासन ने अंत्येष्टि में पहुंचकर शहीद राजेश बैरागी के परिवार को सांत्वना देकर हर सभंव मदद और सम्मान का वादा किया था। लेकिन राजेश को शहादत के बीस साल तो दूर कुछ दिन बाद ही शहीद के परिवार को भूल गयी। जबकि उस दौरान प्रशासन ने राजेश बैरागी की याद में ग़ांव में सड़क मार्ग का नाम और कस्बा गगोह में बस अड्डे पर शहीद की प्रतिमा लगाने समेत पक्का मकान बनाने का भी वादा किया था। लेकिन सरकार और अधिकारी सब भूल गए। इस वक्त शहीद बकके बूढ़े माता पिता अपने छोटे बेटे राकेश बैरागी के साथ गरीबी का जीवन जी रहे है। पिता ताराचंद बैरागी 90 साल की उम्र में बीमार रहते है तो कांति बैरागी मां 85 साल की उम्र ने कैंसर से बीमार चल रही है। पैसे के अभाव में कैसंर के चलते देहरादून के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है। बावजूद इसके जिला प्रशासन की ओर उन्हें आर्थिक मदद तो दूर उनकी बुढापे की पेंशन भी भेजी गई है। इटीवी से बातचीत में शहीद के पिता ताराचंद बैरागी ने बताया कि एक साल से उनकी पेंशन का एक भी पैसा नही आया है। जिसके चलते वे 90 साल की उम्र में अधिकारियो चक्कर काटने को मजबूर है। शहीद राजेश की पत्नी अपने दोनों बच्चो के साथ हरियाणा के यमुनानगर में रह रही है। पिछले साल शहीद की बेटी की शादी हो चुकी है जबकि बेटा पढ़ाई कर रहा है। वही शहीद राजेश के भाई राकेश बैरागी ने बताया कि राजेश बचपन से पढ़ने ने होशियार रहा है। खेतो में काम करते हुए हर रोज भाग दौड़ करता रहता है। उसके जज्बे के चलते वह सेना में भर्ती हो गया था। कारगिल युध्द के दौरान वह 20 दिन की छुट्टी आया हुआ था। राजेश 10 दिन ही घर रूका था कि बीच मे ही कारगिल युध्द छिड़ गया और उसको वापस जाना पड़ा। हालांकि पूरा परिवार उसे रोकता रहा लेकिन राजेश ने देश सेवा को अपना कर्तव्य बता कर किसी नही सुनी। घर से जाने के 10 दिन बाद ही उसकी शहादत की खबर आ गई। उन्हें जितना गर्व बड़े भैया की शहादत का है उतना ही शासन प्रशासन की अनदेखी पर अफसोस जताया है। उसका कहना है आज उनका परिवार गरीबी में जीवन जी रहा है।

बाईट - ताराचंद बैरागी ( शहीद के पिता )
बाईट - राकेश बैरागी ( शहीद के भाई )


Conclusion:FVO - शहीदों के परिवारों की अनदेखी से जहां सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे है वहीं शहीदों के परिजन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों पर भी गंभीर आरोप लग रहे है। यही हाल रहा तो वह दिन नही जब देश सेवा के लिए सेना में जाने के लिए देश का युवा कन्नी काटने लगेगा।

रोशन लाल सैनी
सहारनपुर
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Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST
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