सहारनपुर: तीन तलाक मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाली सहारनपुर की आतिया साबरी को जीत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने एतिहासिक फैसला सुनाते हुए सतिया साबरी को 13 लाख 44 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने की आदेश दिए हैं. वहीं, 21000 प्रति महीना दोनों बेटियों और आतिया के भरण पोषण के लिए भत्ता देने का फैसला सुनाया है. कोर्ट के इस फैसले से तलाक पीड़िता आतिया साबरी और परिजनों में खुशी का माहौल है. आतिया अपनी दोनों बेटियों के साथ बेहद खुश है. जिस चेहरे पर पिछले पांच वर्षों से चिंता की लकीरें दिखती थी, आज वहीं आतिया सालों बाद मुस्कुराई हैं. आतिया साबरी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए जस्टिस नरेंद्र कुमार का धन्यावाद किया है.
बता दें कि सहारनपुर के थाना मंडी इलाके के मोहल्ला आली की चुंगी निवासी आतिया साबरी का निकाह 25 मार्च 2012 को जनपद हरिद्वार के सुल्तानपुर निवासी वाजिद अली के साथ हुआ था. निकाह के बाद आतिया साबरी ने दो बेटियों को जन्म दिया था. इसके बाद उसके पति और ससुरालियों ने न सिर्फ उसको ताने देकर दहेज के लिए उत्पीड़न करने लगे बल्कि नवंबर 2015 में पति ने यह कहकर तीन तलाक दे दिया कि उसने बेटियां पैदा की हैं. लेकिन आतिया ने तीन तलाक को मानने से इनकार कर दिया. जिसके बाद ससुरालियों ने मारपीट कर मासूम बेटियों के साथ उसको घर से निकाल दिया था. तभी से आतिया सबरी अपनी बेटियों को लेकर अपने माता और भाई के साथ रह रही हैं.
आतिया साबरी ने परिजनों की मदद से तीन तलाक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. 2015 में आतिया ने सहारनपुर कोर्ट में तीन तलाक के अर्जी देकर पति और ससुरालियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग थी. कई महीनों की सुनवाई के बाद अदालत ने आरोपी पति और सुसरालियो क खिलाफ मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी के आदेश दिए थे. कोर्ट के आदेश पर हरिद्वार पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. इसके बाद आतिया साबरी तीन तलाक के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची. जहां कोर्ट ने आतिया साबरी की सुनवाई कर तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया.
संघर्ष के साथ विरोध का सामना करना पड़ा
इस दौरान आतिया साबरी को मुस्लिम संगठनों और रिश्तेदारों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. तीन तलाक पीड़िता आतिया साबरी ने ETV BHARAT से बातचीत में बताया कि तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ते वक्त उसने जहां मुस्लिम संगठनों की धमकियां मिलती थी वहीं इस्लामिक धर्म गुरु भी मजहबी नशीहत देते थे. इतना ही नहीं आस पड़ोस में रहने वाले और रिश्तेदार भी तरह-तरह के बातें करते थे, लेकिन किसी की परवाह किये बगैर तीन तलाक की कुप्रथा को आखिरी अंजाम तक पहुंचा कर ही दम लिया.
21 हजार रुपये प्रति महीने भत्ता देने का आदेश
तलाक पीड़िता आतिया ने दिसंबर 2015 में पति खिलाफ भरण पोषण भत्ते की मांग को लेकर कोर्ट में अर्जी लगाई थी. कोर्ट में भत्ते के लिए वाद दाखिल करते समय बताया था कि वाजिद अली के नाम पर हीरो होंडा मोटरसाइकिल की एजेंसी और 100 बीघा खेती की जमीन है. जिसके चलते अपने लिए 25 हजार और दोनों बेटियों के लिए पालन पोषण के लिए 10-10 हजार रुपये भत्ते की मांग की थी. पांच साल की लंबी सुनवाई और साक्ष्यों के आधार पर न्यायाधीश नरेंद्र कुमार ने उसके हक में फैसला सुनाया है. कोर्ट ने आतिया के साथ बेटी सादिया और सना के पालन पोषण के लिए 7-7 हजार रुपये यानि कुल 21 हजार रुपये प्रतिमाह भत्ता देने के आदेश दिए है.
प्रार्थना पत्र के पहले दिन से मिलेगा भत्ता
सुप्रीम कोर्ट प्रधान न्यायाधीश नरेंद्र कुमार ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कहा कि तलाक पीड़िता को गुजारा भत्ते का भुगतान पहले दिन के प्रार्थना पत्र की तारीख से दिया जाएगा. यानि दिसंबर 2015 से अब तक 5 साल 4 महीनों का 13 लाख 44 हजार रुपये गुजारा भत्ता एक साथ देना होगा. इसके बाद बच्चियों के भरण-पोषण भत्ते के रूप में 21 हजार रुपये प्रतिमाह देने के आदेश दिये हैं. जिससे दोनों नाबालिग बच्चियों लालन-पालन, पढ़ाई लिखाई और बेहतर परवरिश हो सके.
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कोर्ट और सरकार का जताया आभार
ETV BHARAT से बातचीत करते हुए आतिया सबरी ने सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार का आभार व्यक्त किया है. आतिया ने बताया कि उसको देश की अदालत पर पूरा भरोसा था, जिसका परिणाम आज देश के सामने है. मुस्लिम महिलाओं के लिए कलंक तीन तलाक के खिलाफ कानून बन गया. तीन तलाक के खिलाफ चली इस लड़ाई को सच्चाई की जीत बताया है.
तलाक पीड़िता को भत्ते के लिए पहला फैसला
आतिया साबरी जहां तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाने वाली पहली महिला हैं, वहीं गुजारा भत्ता पाने वाली भी पहलीं तलाक पीड़िता बनी है. सुप्रीम कोर्ट ने आतिया साबरी के हक में ऐतिहासिक फैसला देकर तीन तलाक पीड़ित अन्य महिलाओ के लिए भी रास्ता खोल दिया है. आतिया कहती हैं कि महिलाओं को अपने हक के लिए स्वयं लड़ाई लड़नी होगी. हालात और परिस्थितियों के आगे झुकने से की बजाय निडर होकर अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ें और न्यायपालिका पर भरोसा रखें.