रामपुर: छोटी इलायची की खेती अपने आप में एक अनोखी खेती है. इससे किसान अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं. यह अब तक दक्षिण भारत के केरल कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों के पहाड़ी इलाकों में होती है. इससे पैदावार भी अच्छी होती है.
पर इस परिपाटी के उलट अब रामपुर जिले के एक छोटे से किसान ने छोटी इलायची की खेती की पहल की है. इस खेती की शुरुआत करने वाले किसान रईस अहमद खेमपुर गांव के निवासी हैं. पूरे उत्तर प्रदेश में इस खेती की शुरुआत करने वाले वह पहले किसान बन गए हैं.
किसान रईस अहमद ने बताया कि रामपुर जिला छोटी इलायची की खेती के लिए अनुकूल नहीं है. इसके बावजूद उन्होंने खेती करने का प्रयास किया और वो कामयाब भी हुए. बताया कि इलायची की नर्सरी तैयार कर ली है. नर्सरी में करीब 300 पौधे तैयार हो गए हैं. अब इन पौधों को क्यारियों में लगाया जाएगा. इसके बाद कुछ ही समय में इन पौधों में इलायची भी आना शुरू हो जाएगी.
किसान रईस अहमद ने बताया कि कर्नाटक में रहने वाले उनके एक साथी ने उन्हें पूरी जानकारी दी है. रामपुर आकर उन्होंने इस खेती की पूरी तकनीक बताई है. बताया कि करीब 6 महीने पहले इसकी पौध डाली थी. उनकी नर्सरी में तकरीबन 300 पौधे तैयार हो गए हैं. 20 से 22 दिन के बाद लगभग तीन से चार बीघा जमीन में इन पौधों को लगाया जाएगा.
3-3 फीट की दूरी पर इन सभी 300 पौधों को लगाया जाएगा. इसके लिए लगभग 3 से 4 बीघे जमीन की जरूरत होगी. किसान रईस अहमद के मुताबिक पौधों की देखरेख बहुत ही अच्छे से हुई है.
उम्मीद है कि इसमें इलायची भी अच्छी आएगी. फसल अच्छी हुई तो मुनाफा भी अच्छा होगा. पूरे यूपी में यह पहला जनपद है जहां सफेद इलायची की खेती हुई है.
बताया कि छोटी इलायची की खेती करने के लिए मौसम बहुत अहम है. इसके पौध को गर्मियों की शुरुआत में लगाया गया था. कहा कि छह से सात महीने में यह पौधे तैयार हो गए हैं.
छोटी इलायची की खेती की यह है तकनीक
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इलायची का उत्पादन ऐसे क्षेत्रों में होता है जहां न्यूनतम् तापमान 10 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 35 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता हो. छोटी इलायची के पौधे का नाम वेलाडोडा है जो छायादार जगहों पर पैदा होता है.
इस कारण नारियल और सुपारी के बागों में वेलाडोडा या इलायची उगाना बेहतर होता है. फिर यह ध्यान रखा जाए कि सूरज की रोशनी सीधे इलायची के पेड़ पर न पड़े. इलायची के पौधों को 3x3 फीट की दूरी पर लगाना चाहिए.
मानसून खत्म होने के बाद तत्काल जलापूर्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए. ये पौधे पानी के दबाव को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं. इसलिए, मिट्टी में नियमित नमी सुनिश्चित करने के लिए देखभाल की जानी चाहिए. यदि मिट्टी उपजाऊ है तो चार दिन में एक बार पानी पर्याप्त है.
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