रायबरेली: जिले के रहने वाले विशेष शिक्षक अभय श्रीवास्तव एक ऐसी शख्सियत हैं, जो दिव्यांग बच्चों के लिए काम कर रहे हैं. बीते 12 वर्षों से लगातार दिव्यांगों के मन में शिक्षा की अलख जगाने वाले इस शिक्षक के लिए कोरोना काल बड़े संकट का दौर रहा. महामारी और बचाव के तरीके भी बेहद कठिन रहे, बावजूद इसके वे लगातार बच्चों के संपर्क में रहे. देखिए ये खास रिपोर्ट...
दिव्यांगों को समाज के मुख्य धारा से जोड़ना ही अभय श्रीवास्तव का मकसद है और इसके लिए शुरुआती दौर में उन्हें दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा था. 'समेकित शिक्षा' में दक्षता हासिल कर उन्होंने तेजी से कदम भी बढ़ाया. वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दिव्यांगजनों के जीवन में बड़ा बदलाव लाकर उन्हें समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए अभय श्रीवास्तव को पुरस्कृत किया था. वहीं लेखक मृगेंद्र पांडे ने अभय के जीवन संघर्षों पर जीवनी भी लिखी है.
रायबरेली के जवाहर विहार कॉलोनी निवासी अभय श्रीवास्तव बेसिक शिक्षा विभाग में विशेष शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं. अभय श्रीवास्तव कहते हैं कि जिन दिव्यांगों को कई बार खुद के घरवाले साथ नहीं रखते, उनके लिए अजनबी बनकर उनके जीवन में शिक्षा व समाज के प्रति स्वीकार्यता बढ़ाना ही उनका लक्ष्य है.
अपने खास छात्र जितेन्द्र के बारे में बताते हुए अभय कहते हैं कि जितेन्द्र 'सेरेब्रल पाल्सी' यानी मस्तिष्क के लकवे से पीड़ित हैं. बड़ी बात ये है कि शरीर के साथ न देने के बावजूद जितेन्द्र ने कभी हिम्मत नहीं हारी. हाथ की उंगलियों के साथ न देने के चलते जितेन्द्र ने पैर की उंगलियों का सहारा लिया. फिर धीरे-धीरे अभय ने जितेन्द्र को लेखनी में प्रबल बना दिया.
अभय का कहना है कि जितेंद्र भले ही शब्दों में बोल न पाते हों, लेकिन वो एक समर्पित शिष्य की भांति अपने गुरु के हर शब्दों का अक्षरशः पालन करते हैं. कोरोना काल के संकट के दौर में जितेंद्र पढ़ाई-लिखाई में पीछे न रह जाएं, इसीलिए अभय ने कुछ नवीन प्रयास के जरिए दीक्षित करने का प्रयास किया.
अभय ने जितेन्द्र के परिजनों को कोरोना संक्रमण से बचाव के तरीकों के बारे में जागरूक किया. साथ ही वीडियो कॉलिंग व व्हॉट्सएप व कई माध्यमों से जितेन्द्र के संपर्क में रहे. अभय के प्रयासों का नतीजा रहा कि जितेंद्र खौफनाक 'कोरोना' का चित्रण करने में भी कामयाब रहा.
अभय कहते हैं कि उनका प्रयास है कि सभी दिव्यांग छात्रों को सरकारी योजनाओं का भी लाभ मिलता रहे. हाल ही में जितेन्द्र के पिता को 5 हज़ार की धनराशि भी सरकारी कोष से उपलब्ध कराई गई है. वहीं बेटे के इस तरह बढ़ता देख जितेंद्र के पिता उदयराज बहुत खुश हैं, वे कहते हैं कि बेटा लिख लेता है, यही उनके लिए बहुत है.