रायबरेली: नामचीन शायर मुनव्वर राणा ने कभी कहा था कि सत्ता हमारे शहर रायबरेली की नालियों से बहकर दिल्ली पहुंचती है. मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस व भाजपा में चल रहे राजनीतिक घमासान के बीच रायबरेली सदर विधायक का ट्वीट और उस पर छिड़ी रार ने मुनव्वर राणा के इस शेर को मुकम्मल करने का काम किया है.
ट्विटर से हटाया कांग्रेस का नाम
कांग्रेस पार्टी और उसकी नुमाइंदगी करते हुए रायबरेली सदर सीट से विधायक चुनी गईं अदिति सिंह के रिश्ते महज एक साल के अंदर यानी मई 2019 से मई 2020 के बीच इस कदर बिगड़ गए कि कांग्रेस उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म करने पर उतारू दिख रही है. वहीं खुद अदिति सिंह ने भी अपने ट्विटर प्रोफाइल तक से पार्टी का दिया हुआ महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव का पद और कांग्रेस के झंडे समेत INC से पीछा छुड़ा लिया है. ऐसी संभावना कम से कम राजनीतिक पंडितों ने तो नहीं की थी.
...जब यूपी की सियासत में मची हलचल
प्रवासी मजदूरों को वापस प्रदेश ले आने को लेकर शुरू हुआ बस विवाद के बीच कांग्रेस पर निशाना साधकर अदिति सिंह ने न केवल रायबरेली बल्कि पूरे प्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी. जिले के सियासी समीकरण किस कदर करवट बदलते हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महज 1 साल पहले तक यानी मई 2019 में अदिति सिंह प्रदेश की गिरती कानून व्यवस्था पर वार करती नजर आती थीं. वहीं अब कई मुद्दों पर सरकार का गुणगान करने के लिए सुर्खियों में रहती हैं. जानकार कहते हैं कि सत्ता से जुड़कर और अलग रहने के फायदे और नुकसान की गणित को समझते हुए ही विधायक अदिति सिंह को बड़ा निर्णय लेने पर मजबूर होना पड़ा.
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कोटा में जब UP के हजारों बच्चे फंसे थे तब कहां थीं ये तथाकथित बसें, तब कांग्रेस सरकार इन बच्चों को घर तक तो छोड़िए,बार्डर तक ना छोड़ पाई,तब श्री @myogiadityanath जी ने रातों रात बसें लगाकर इन बच्चों को घर पहुंचाया, खुद राजस्थान के सीएम ने भी इसकी तारीफ की थी।
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— Aditi Singh (@AditiSinghRBL) May 20, 2020
लोकसभा चुनावों तक दिया था पार्टी का साथ
दरअसल, पूरा मामला जानने के लिए 1 साल पीछे के घटनाक्रमों से रुबरू होना पड़ेगा. बात 2019 लोकसभा चुनावों की है. कांग्रेस की तरफ से लगातार पांचवीं बार यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को रायबरेली से लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया था. भाजपा ने सोनिया के खिलाफ कांग्रेस से बगावत करके बीजेपी में शामिल हुए एमएलसी दिनेश सिंह को मैदान में उतारा था. सोनिया के पूर्ववर्ती चुनावों की अपेक्षा इस बार मुकाबला कांटे का था. सोनिया को अपनी सीट जीतने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. विधायक अदिति सिंह व उनके बीमार पिता पूर्व विधायक अखिलेश सिंह भी सोनिया को जिताने में जुटे रहे. 6 मई को लोकसभा चुनाव का मतदान हुआ.
चुनाव बाद अदिति पर हुआ जानलेवा हमला
14 मई को जिला पंचायत के अविश्वास प्रस्ताव पर कोर्ट के आदेश से वोटिंग होनी थी. उसी दिन विधायक अदिति सिंह पर कथित तौर पर जानलेवा हमला हुआ. आरोप भाजपा लोकसभा प्रत्याशी व उनके भाइयों पर लगा. हमले के अगले ही दिन वाराणसी के चुनाव प्रचार के लिए दिल्ली से निकली प्रियंका रायबरेली में अदिति से मिलने पहुंची थी. लेकिन कांग्रेस के लाख जतन के बावजूद सरकार साफ तौर से अपने लोकसभा प्रत्याशी के पक्ष में खड़ी नजर आई. पुलिस ने भी अपनी तफ्तीश में अदिति सिंह के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. दिनदहाड़े खुद पर हुए हमले से आहत अदिति के पास अब सीमित विकल्प खुले थे.
पिता की विरासत को सुरक्षित रखने का भी था दबाव
दरअसल, अदिति सिंह के पिता अखिलेश सिंह रायबरेली सदर से लगातार 5 बार विधायक निर्वाचित हुए थे. विधानसभा चुनावों में दलीय समीकरण अखिलेश सिंह के कद के आगे बौने साबित होते रहे हैं. यही कारण था कि जिस पिता की विरासत अदिति संभाल रही थी और दशकों तक जिस क्षेत्र में उनका दबदबा कायम था, अचानक हुए हमले से आम जनता ही नहीं, उनके प्रशंसक भी सहम गए थे. जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके राजनीतिक धुरंधर अखिलेश सिंह ने पुनः एक बार बेटी के लिये मोर्चा संभाला और भगवा खेमे में उसकी जगह बनवाने में भी कामयाब रहे. इससे पहले पंजाब से विधायक अंगद सैनी से अदिति की शादी कराने का फैसला भी वह ले चुके थे.
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United we stand!
— Aditi Singh (@AditiSinghRBL) August 5, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
Jai Hind#Article370
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अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले का किया स्वागत
6 अगस्त को कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मुद्दे पर विधायक अदिति सिंह ने ट्वीट किया. पीएम मोदी व केंद्र सरकार के निर्णय की सराहना करते हुए बीजेपी के पक्ष में पहली बार कांग्रेस विधायक खुलकर सामने आई थी. मुद्दे को राष्ट्रीय हित में करार देते हुए पार्टी लाइन से अलग हटने की दलील भी दी थी.
पिता की तेरहवीं में शामिल हुए थे डिप्टी सीएम
20 अगस्त को लंबे समय से बीमार चल रहे पूर्व विधायक अखिलेश सिंह का निधन हो गया. तेरहवीं में सूबे के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा भी शोक संतप्त परिवार को सांत्वना देने पहुंचे थे. 2 अक्टूबर को पार्टी व्हिप को नकारते हुए विधानसभा सत्र में भाग लेने अदिति सिंह पहुंची थी. कई बार मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री से मुलाकात करने को लेकर भी वह सुर्खियों में रहीं.
सरकार से मिली वाई प्लस सुरक्षा
रायबरेली के लालगंज में बीजेपी के एक कार्यक्रम में डिप्टी सीएम की मौजूदगी में अदिति सिंह बीजेपी का मंच साझा करती भी नजर आईं. बीजेपी के प्रति सकारात्मक रुख अपनाने के लिए सरकार से पुरस्कार स्वरूप उन्हें वाई प्लस सुरक्षा भी मिल चुकी थी. यही कारण रहा कि अब अदिति पीछे मुड़कर कांग्रेस की तरफ न रुख करते हुए सरकार व बीजेपी के खेमे में नजर आ रही हैं.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक मसलों के जानकार विजय विद्रोही कहते हैं कि यह सही है कि दिवंगत पूर्व विधायक अखिलेश सिंह का सदर विधानसभा में दबदबा रहा है और उनकी बेटी होने के नाते अदिति की जीत में उनका अहम योगदान था. लेकिन राजनीतिक दल के लिहाज से कांग्रेस का जनमत भी अदिति को 2017 के चुनावों में हासिल हुआ था. यही कारण है कि जब रायबरेली सदर के ही लाखों युवक गैर प्रांतों में रोज़गार के लिए जाने को विवश है और अब संकट की घड़ी में उन सभी के सुरक्षित घर वापसी के लिए उनकी (अदिति सिंह) तरफ से भी कुछ प्रयास किए जाने चाहिए थे. उन्होंने कहा कि भले ही प्रियंका गांधी इस मुद्दे को राजनीतिक लाभ लेने के मकसद से उठा रही हैं, पर इससे विषय की प्रासंगिकता कम नहीं होती. यही कारण है कि बतौर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि उन्हें सरकार के पक्ष में नहीं विरोध में खड़े होने की आवश्यकता थी. पर फिलहाल उनका निजी स्वार्थ अन्य विषयों पर हावी दिखता है.
पार्टी से भिन्न राय रख सकते हैं जन प्रतिनिधि
शहर के फिरोज गांधी डिग्री कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. आदर्श कहते है कि बतौर विधायक अदिति सिंह का कार्यकाल अनुकरणीय है. अदिति जनप्रतिनिधि होने के नाते तमाम विषयों पर पार्टी लाइन से भिन्न राय भी रख सकती हैं. कांग्रेस चूंकि इसकी इजाजत नहीं देती, इसलिए पार्टी एक्शन मोड में दिख रही है. निश्चित तौर पर जब राजनीति में पढ़े लिखे युवा अपना भविष्य तलाशने आगे आ रहे हैं, तब सभी मुद्दों पर पार्टी लाइन पर कायम रहना उनके लिए मुश्किल साबित होता है. अदिति के मसले में भी कुछ ऐसा ही है. रही बात पार्टी सदस्यता की तो यह अदिति को तय करना है कि वह किस दल में अपना भविष्य देखना चाहती हैं, न कि उनके आलोचकों या विरोधियों को.
सरकार के पक्ष में कई बार ट्वीट कर चुकी हैं अदिति
इसमें कोई संशय नही है कि कई मर्तबा विधायक अदिति सरकार के पक्ष में ट्वीट कर चुकी है. यही कारण है कि अदिति के बगावती तेवर कांग्रेस को अब अखरने लगे थे. पार्टी ने उन्हें पद से निलंबित कर दिया है और विधानसभा सदस्यता खत्म करने की मांग भी कर रही है. अदिति सिंह ने भी अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल से INC हटाकर अपने इरादे जता दिए हैं.
पिता की विरासत के बूते पर अदिति सिंह की कांग्रेस को ललकार
अदिति सिंह के इस कदम से उनके राजनीतिक कैरियर पर क्या प्रभाव पड़ता है यह तो आने वाला वक़्त बताएगा पर इतना जरुर है कि विधायक अदिति का यह रुख कांग्रेस पार्टी के हाई कमान से लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं तक के लिए बड़ा झटका जरुर करार दिया जा सकता है.