रायबरेली: रायबरेली जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर कई गांव के हजारों निवासी स्वनिर्मित पुल से अपनी जान जोखिम में डाल कर रोजाना गुजरते हैं. ग्रामीणों ने इस पुल के लिए जिलाधिकारी से लेकर सोनिया गांधी तक से कई बार गुहार लगाई, लेकिन मामला सिफर ही निकला. थक हारकर अब उन्होंने इसे अपनी नियति मान लिया है.
पिछले दो दशकों से चुनाव आते ही इस पुल को बनवाने के वायदे किये जाते हैं, लेकिन जीत के बाद कोई भी इस तरफ मुड़कर देखता नहीं. ये पुल हैबतपुर गांव के किनारे से निकलने वाले नैया नाले पर ग्रामीणों की ओर से हर साल बनाया जाता है. बारिश के मौसम में जब नाला उफान पर होता है तो बांस-बल्ली से बना ये पुल टूट जाता है, जिसके कारण ग्रामीणों को 12 किमी का चक्कर काट कर गुजरना पड़ता है. बारिश का मौसम जाते ही ग्रामीण फिर इसे स्वयं ही बनाते हैं. इस पुल से गांवों के बड़े-बुजुर्ग बच्चे और कामगारों का रोजाना आना-जाना होता है. कई बार हादसे भी हो चुके हैं, लेकिन मरता क्या न करता कि तर्ज पर लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर इससे गुजरते हैं.
वहीं, जिले के जिम्मेदारों को इस समस्या की भनक तक नहीं, जबकि ग्रामीणों ने इसको बनवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. इस मामले पर जिले के विकास की जिम्मेदारी निभा रहे सीडीओ साहब से बात की गई तो उन्होंने साफ कहा कि मामला उनके संज्ञान में ही नहीं है. वहीं वे जिले में 6 माह से ज्यादा का समय गुजार चुके हैं. हालांकि गांव वालों का कहना है कि यह हाल हर साल का है. हर बरसात में पुल बह जाता है. बारिश के बाद फिर गांव वाले आपसी सहयोग और श्रमदान से पुल का निर्माण करते हैं. चुनावी मौसम में नेताओं का जमावड़ा लगता है तो गांव वालों की एक ही मांग होती है, नाले पर पुल. वादे तो हर दल के प्रत्याशी करते हैं, लेकिन वे वादे आजादी के 70 साल बाद भी पूरे नहीं हुए.