रायबरेली: सियासी दलों और उनकी सियासत में रायबरेली हमेशा से अहम रहा है. कुछ यही कारण है कि चुनावों की सुगबुगाहट शुरू होने से पहले ही यहां पर तमाम तरह की रणनीति बननी शुरू हो जाती है. प्रदेश में पंचायत चुनाव कब होंगे, इसको लेकर भले ही तारीखों का एलान फिलहाल न हुआ हो, लेकिन यहां सियासी बिसात बिछाने का दौर अभी से ही शुरू हो चुका है. खास बात यह है कि विपक्षी दलों के उम्मीदवार तो विरोध में खड़े है ही, लेकिन कई ऐसी पार्टियां भी हैं, जिनके द्वारा अंदरुनी घमासान छिड़ने की आशंका है. यही वजह है कि पंचायत चुनाव को लेकर पार्टियां अभी से चौकन्नी नजर आ रही हैं.
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पंकज तिवारी कहते हैं कि रायबरेली हमेशा से गांधी परिवार से जुड़ा रहा है. यह इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक की कर्मभूमि रही है. यही कारण है कि यहां के पंचायत चुनावों में हमेशा से कांग्रेस को ही जीत मिलती रही है. इस बार भी कांग्रेस का ही जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर कब्जा रहेगा.
सपा जिलाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह यादव के अनुसार पंचायत चुनावों में हमेशा से समाजवादियों का वर्चस्व रहा है. सबसे ज्यादा प्रधान और बीडीसी सपा के रहे हैं. पंचायत को मजबूत करने और उसके अधिकारों को लेकर हमेशा से पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कई अभूतपूर्व कार्य किए हैं. यही कारण है कि जनता हमेशा से उन सभी बातों को ध्यान में रखकर ही मतदान करती है.
मजबूत संगठन के सहारे मैदान मारने की होगी कवायद
भाजपा के प्रदेश कार्य समिति के सदस्य व वरिष्ठ नेता आरबी सिंह का कहना है कि बीजेपी हमेशा से जमीनी संगठन को मजबूत करने पर जोर देती है, पार्टी ने तैयारी भी शुरू कर दी है. अभी से जिला पंचायत सदस्यों के संभावित उम्मीदवारों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. पार्टी संगठन पहले से ही बूथ स्तर से लेकर मंडल अध्यक्ष व ब्लॉक अध्यक्ष तक लगातार संपर्क में है. पंचायत चुनावों की गहमागहमी के बीच बीजेपी सभी दलों से आगे निकलकर जमीन पर सक्रिय है और चुनावी रणनीति में जुट चुकी है.
विपक्षी दलों की बिसात के आगे रणनीतिक बढ़त लेने की कवायद के बीच सबसे बड़ी चुनौती सियासी दलों के लिए अंदरुनी घमासान से निपटने को लेकर होगी. हर पार्टी में अंदरखाने की राजनीतिक उठा-पटक देखने को मिल रही है. कांग्रेस के हालात बुरे हैं. उसके दोनों एमएलए, एक एमएलसी और जिला पंचायत अध्यक्ष बागी हो चुके हैं. यही कारण है कि इस बार कांग्रेस के लिए चुनाव टेढ़ी खीर होने जा रहा है. सत्तारुढ़ दल भाजपा के लिए भी आसान इसलिए नहीं है, क्योंकि कई मठाधीश सत्तापक्ष में शामिल हो चुके हैं. वहीं, समाजवादी भी आपसी गुटबाजी से त्रस्त नजर आते हैं.
निर्दलीय पड़ सकते हैं सभी पर भारी
पंचायत चुनावों में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कई बार जनता प्रत्याशी विशेष को लेकर भी वोट करती है. यही कारण है कि पंचायत चुनाव हर मायने में बेहद रोचक माने जाते हैं. प्रधानी के चुनाव से लेकर जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव तक राजनीतिक समीकरणों और जोड़-तोड़ की राजनीति का गजब का नमूना पेश किया जाता है. कई दल अंदरखाने से ही निर्दलीय उम्मीदवारों को सपोर्ट करते रहे हैं. पर इस बार भाजपा हर स्तर पर पार्टी के उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर चुकी है. यही कारण है कि ग्रामीण सियासत किस करवट बैठती है, यह अंतिम समय तक अंदाजा लगा पाना थोड़ा मुश्किल नजर आता है.
29 दिसंबर को होगा सूची का प्रकाशन
जिले के सहायक निर्वाचन अधिकारी (पंचायत व नगरीय निकाय) राजकुमार शुक्ल ने बताया कि राज्य निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार पंचायत चुनावों को लेकर सभी तैयारियों को अंजाम दिया जा रहा है. वर्तमान में मतदाता सूची के वृहद पुनरीक्षण का कार्य किया जा रहा है. 6 दिसंबर को इसके ड्राफ्ट का प्रकाशन और 29 दिसंबर को अंतिम प्रकाशन होना है. इसके अलावा मतदान केंद्रों से लेकर अन्य सभी जरूरी और महत्वपूर्ण विषयों पर विभाग काम कर रहा है. आयोग से प्राप्त निर्देशों का हर हाल में पालन किया जाएगा.
कुल मतदान केंद्र | 1479 |
पोलिंग बूथ | 3566 |
कुल मतदाता | 16,50,000 (संभावित) |
कुल ग्राम पंचायत | 989 |
कुल ब्लॉक | 18 |
जिला पंचायत क्षेत्र की कुल संख्या | 52 |
न्याय पंचायत | 115 |
रिटर्निंग ऑफिसर | 19 (संभावित) |
सहायक रिटर्निंग ऑफिसर | 115 (संभावित) |
सेक्टर मजिस्ट्रेट | 115 (संभावित) |
जोनल मजिस्ट्रेट | 18 (संभावित) |