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रायबरेली: ओंकार नाथ भार्गव ने लिखा विदेश मंत्री को पत्र, 'मानसरोवर यात्रा मार्ग विवाद का हल करे सरकार'

फिरोज गांधी कॉलेज रायबरेली के मैनेजिंग सेक्रेटरी ओंकार नाथ भार्गव ने कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को लेकर एक बार फिर विभिन्न साक्ष्य और तथ्यों का हवाला देते हुए विदेश मंत्री को पत्र लिखा है.

ओंकार नाथ भार्गव
ओंकार नाथ भार्गव
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Published : Jun 6, 2020, 1:57 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:19 PM IST

रायबरेली: फिरोज गांधी कॉलेज रायबरेली के मैनेजिंग सेक्रेटरी ओंकार नाथ भार्गव कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को लेकर नेपाल के विरोध से आहत हैं. नेपाल के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्तों के पक्षधर भार्गव कहते हैं कि भगवान आशुतोष के करोड़ों उपासक भारत समेत नेपाल में भी हमेशा से मौजूद रहे हैं. इस प्राचीन मार्ग को लेकर चल रही उठापटक पर उन्होंने भारत सरकार से ऐतिहासिक साक्ष्यों के जरिए नेपाल को राजी करने की नसीहत दी है. भार्गव ने विदेश मंत्री को पत्र लिखकर अपनी बात कही है. साथ ही कई तथ्यों और साक्ष्यों के जरिेए लिपुलेख दर्रे समेत पूरे इलाके को भारत की सीमा क्षेत्र का निर्विवाद हिस्सा साबित किया है.

ईटीवी भारत की टीम ने ओंकार नाथ भार्गव से इस विषय पर बातचीत की, जिसमें भार्गव ने बताया कि जिस प्राचीन कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को लेकर गतिरोध उपजा है, वह पिछले 40 वर्षों से यात्रा मार्ग के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. नेपाल ने इसपर कभी कोई आपत्ति नहीं जताई. उन्होंने कहा कि चीन ने अपने क्षेत्र में लिपुलेख दर्रे से लेकर कैलाश मानसरोवर मार्ग को दुरुस्त कर सभी सुविधाएं बढ़ा दी हैं. इसी तरह तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए पहाड़ और पैदल मार्ग को सही करने के मकसद से ही भारत ने भी पहल की थी. इसीलिए नेपाल को तथ्यात्मक आंकड़ों के साथ बातचीत करके पूरे मसले को हल किया जा सकता है.

हेनरी स्ट्रैची ने भारत-नेपाल सीमा पर बसे नदियों का किया वर्णन
जनरल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल (Journal of Asiatic Society of Bengal) के वॉल्यूम 17 पार्ट-2 का जिक्र करते हुए भार्गव ने कहा कि ऐतिहासिक अभिलेखों से यह स्पष्ट है कि वर्ष 1816 की सुगौली संधि के बाद यह क्षेत्र अंग्रेजों के शासन में रहा. सितंबर-अक्टूबर 1846 में हेनरी स्ट्रैची नाम के अंग्रेज ने भारत-नेपाल सीमा पर काली नदी व सहायक नदियों के किनारे-किनारे होते हुए झील चो लोगान (राकस ताल) और चोमोपान (मानसरोवर झील) की यात्रा का वर्णन किया है. पूरी यात्रा में हेनरी स्ट्रैची सुगौली संधि (1816) के काफी समय बाद वर्ष 1846 में यह दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र जो 174 साल बाद अब भारत में है, वह तब भी अंग्रेजों के शासन में था. उस यात्रा के विभिन्न हिस्सों में अंग्रेजी शासन के प्रमाण मिले थे और कहीं भी 2 महीने से ऊपर की यात्रा में उसे नेपाल का आभास नहीं मिला.

ओंकार नाथ भार्गव ने साझा की जानकारी.

कुंती-याकंती को काली नदी का नाम देना गलत है
भार्गव ने बताया कि यात्रा विवरण में 25 सितंबर 1846 को हेनरी स्ट्रेची उस संगम पर पहुंचा जो नदी कुंती-याकंती तथा काली का है, उसके अनुसार कुंती-याकंती एक बड़ी नदी है. यह नदी उत्तर पश्चिम से आती है और पूर्व में बहती काली नदी से मिल जाती है. साथ ही यह भी लिखता है कि पूर्व में बहती काली नदी ही वास्तविक सीमा है तथा पश्चिम से आई कुंती-याकंती को काली नदी का नाम देना गलत है. भार्गव इसी ऐतिहासिक तथ्य के जरिए भारत सरकार को बेहद सूझबूझ के साथ नेपाल से इसका हल निकालने की बात कहते हैं.

इंदिरा गांधी को भी लिख चुके हैं पत्र
हालांकि, भार्गव इससे पहले भी कई सरकारों को पड़ोसी देशों के रिश्तों पर अपनी राय देते रहे हैं. साल 2017 के डोकलाम विवाद के दौरान भी भार्गव ने सरकार को पत्र लिखकर चीन से निपटने के तरीकों पर भी अपने सुझाव दिए थे. बाद में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने उनके पत्र का जवाब देते हुए उनके सुझावों को तर्कसंगत व राष्ट्रहित बताते हुए देशवासियों की जागरूकता बढ़ाने वाला बताया था. उससे पहले वर्ष 1980 के आसपास भार्गव ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर चीन से कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पुनः चालू करने की बात कही थी.

इस पत्र की एक प्रतिलिपि अटल बिहारी वाजपेई को भी भेजी गई थी. बाजपेई ने उनका पत्र मिलने के बाद एक हस्तलिखित पोस्ट कार्ड के जरिए जवाब देते हुए इस सुझाव पर हर्ष प्रकट किया. बकौल भार्गव इत्तेफाक से चीन के साथ हुई इस वार्ता में सिर्फ कैलाश मानसरोवर की यात्रा को पुनः खोलने पर ही समझौता हुआ. बकौल भार्गव बाद में तत्कालीन विदेश मंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने भी उन्हें यह मुद्दा सुझाने के लिए धन्यवाद प्रेषित किया था.

रायबरेली: फिरोज गांधी कॉलेज रायबरेली के मैनेजिंग सेक्रेटरी ओंकार नाथ भार्गव कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को लेकर नेपाल के विरोध से आहत हैं. नेपाल के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्तों के पक्षधर भार्गव कहते हैं कि भगवान आशुतोष के करोड़ों उपासक भारत समेत नेपाल में भी हमेशा से मौजूद रहे हैं. इस प्राचीन मार्ग को लेकर चल रही उठापटक पर उन्होंने भारत सरकार से ऐतिहासिक साक्ष्यों के जरिए नेपाल को राजी करने की नसीहत दी है. भार्गव ने विदेश मंत्री को पत्र लिखकर अपनी बात कही है. साथ ही कई तथ्यों और साक्ष्यों के जरिेए लिपुलेख दर्रे समेत पूरे इलाके को भारत की सीमा क्षेत्र का निर्विवाद हिस्सा साबित किया है.

ईटीवी भारत की टीम ने ओंकार नाथ भार्गव से इस विषय पर बातचीत की, जिसमें भार्गव ने बताया कि जिस प्राचीन कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को लेकर गतिरोध उपजा है, वह पिछले 40 वर्षों से यात्रा मार्ग के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. नेपाल ने इसपर कभी कोई आपत्ति नहीं जताई. उन्होंने कहा कि चीन ने अपने क्षेत्र में लिपुलेख दर्रे से लेकर कैलाश मानसरोवर मार्ग को दुरुस्त कर सभी सुविधाएं बढ़ा दी हैं. इसी तरह तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए पहाड़ और पैदल मार्ग को सही करने के मकसद से ही भारत ने भी पहल की थी. इसीलिए नेपाल को तथ्यात्मक आंकड़ों के साथ बातचीत करके पूरे मसले को हल किया जा सकता है.

हेनरी स्ट्रैची ने भारत-नेपाल सीमा पर बसे नदियों का किया वर्णन
जनरल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल (Journal of Asiatic Society of Bengal) के वॉल्यूम 17 पार्ट-2 का जिक्र करते हुए भार्गव ने कहा कि ऐतिहासिक अभिलेखों से यह स्पष्ट है कि वर्ष 1816 की सुगौली संधि के बाद यह क्षेत्र अंग्रेजों के शासन में रहा. सितंबर-अक्टूबर 1846 में हेनरी स्ट्रैची नाम के अंग्रेज ने भारत-नेपाल सीमा पर काली नदी व सहायक नदियों के किनारे-किनारे होते हुए झील चो लोगान (राकस ताल) और चोमोपान (मानसरोवर झील) की यात्रा का वर्णन किया है. पूरी यात्रा में हेनरी स्ट्रैची सुगौली संधि (1816) के काफी समय बाद वर्ष 1846 में यह दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र जो 174 साल बाद अब भारत में है, वह तब भी अंग्रेजों के शासन में था. उस यात्रा के विभिन्न हिस्सों में अंग्रेजी शासन के प्रमाण मिले थे और कहीं भी 2 महीने से ऊपर की यात्रा में उसे नेपाल का आभास नहीं मिला.

ओंकार नाथ भार्गव ने साझा की जानकारी.

कुंती-याकंती को काली नदी का नाम देना गलत है
भार्गव ने बताया कि यात्रा विवरण में 25 सितंबर 1846 को हेनरी स्ट्रेची उस संगम पर पहुंचा जो नदी कुंती-याकंती तथा काली का है, उसके अनुसार कुंती-याकंती एक बड़ी नदी है. यह नदी उत्तर पश्चिम से आती है और पूर्व में बहती काली नदी से मिल जाती है. साथ ही यह भी लिखता है कि पूर्व में बहती काली नदी ही वास्तविक सीमा है तथा पश्चिम से आई कुंती-याकंती को काली नदी का नाम देना गलत है. भार्गव इसी ऐतिहासिक तथ्य के जरिए भारत सरकार को बेहद सूझबूझ के साथ नेपाल से इसका हल निकालने की बात कहते हैं.

इंदिरा गांधी को भी लिख चुके हैं पत्र
हालांकि, भार्गव इससे पहले भी कई सरकारों को पड़ोसी देशों के रिश्तों पर अपनी राय देते रहे हैं. साल 2017 के डोकलाम विवाद के दौरान भी भार्गव ने सरकार को पत्र लिखकर चीन से निपटने के तरीकों पर भी अपने सुझाव दिए थे. बाद में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने उनके पत्र का जवाब देते हुए उनके सुझावों को तर्कसंगत व राष्ट्रहित बताते हुए देशवासियों की जागरूकता बढ़ाने वाला बताया था. उससे पहले वर्ष 1980 के आसपास भार्गव ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर चीन से कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पुनः चालू करने की बात कही थी.

इस पत्र की एक प्रतिलिपि अटल बिहारी वाजपेई को भी भेजी गई थी. बाजपेई ने उनका पत्र मिलने के बाद एक हस्तलिखित पोस्ट कार्ड के जरिए जवाब देते हुए इस सुझाव पर हर्ष प्रकट किया. बकौल भार्गव इत्तेफाक से चीन के साथ हुई इस वार्ता में सिर्फ कैलाश मानसरोवर की यात्रा को पुनः खोलने पर ही समझौता हुआ. बकौल भार्गव बाद में तत्कालीन विदेश मंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने भी उन्हें यह मुद्दा सुझाने के लिए धन्यवाद प्रेषित किया था.

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:19 PM IST
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