रायबरेली: जिले के फिरोज गांधी डिग्री कॉलेज में साइकोलॉजी के विषय पर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया. इस सेमिनार में शिरकत करने पहुंचे प्रदेश के प्रख्यात साइकोलॉजी प्रोफेसर डॉ. एनके सक्सेना ने कहा कि देश में बढ़ रही सुसाइडल टेंडेंसी को पॉजिटिव पेरेंटिंग के जरिए रोका जा सकता है.
प्रोफेसर एनके सक्सेना ने ईटीवी भारत से बातचीत में दावा किया की पॉजिटिव साइकोलॉजी के जरिए मानव के विकास और खुशहाल जीवन के रास्तों का सृजन किया जा सकता है. डॉ. एनके सक्सेना कहते हैं कि आज से करीब 20 वर्ष पहले मनोवैज्ञानिक ज्यादातर साइकोलॉजी के नेगेटिव टेंडेंसी पर अपना ध्यान केंद्रित करते थे और उसी विषय में शोध पर आगे बढ़ते थे. समय के बदलाव के साथ अब मनोवैज्ञानिक पॉजिटिव साइकोलॉजी का रुख कर चुके हैं और उनके शोध भी इसी विषय पर आधारित हैं.
डॉक्टर सक्सेना ने कहा कि
पॉजिटिव पेरेंटिंग व पॉजिटिव स्कूलिंग पर जोर देते हुए डॉक्टर सक्सेना कहते हैं कि वर्तमान दौर में यह दोनों किसी भी बच्चे के विकास में बेहद महत्वपूर्ण किरदार अदा करते हैं. यही कारण है कि स्कूल-फैमिली पार्टनरशिप पर भी जोर देने की जरुरत है. 'हैप्पी' बच्चे को 'सैड' बच्चे की अपेक्षाकृत ज्यादा बेहतरीन लर्नर को करार दिया. सक्सेना ने कहा कि बच्चों की परवरिश में व्यक्तित्व विकास के सकारात्मक परिणाम देने वाले खुशी, आभार, क्षमा, सत्कार, अभिवादन समेत तमाम गुणों को विशेष तौर पर शामिल किया जाता है.
सुसाइडल टेंडेंसी पर लगाम लगाने के लिए जरुरी है पॉजिटिव पेरेंटिंग
डॉ. सक्सेना कहते हैं कि स्ट्रेस व फ्रस्ट्रेशन जैसे नकारात्मक गुणों के बढ़ने का परिणाम सुसाइडल टेंडेंसी में बेतहाशा वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है. इस घातक मनोदशा को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है और पॉजिटिव पेरेंटिंग के जरिए इस पर ब्रेक लगाया जा सकता है. इसी विषय में विस्तार से मंथन करने के लिए नेशनल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया. उनका कहना है कि सही पॉजिटिव पेंटिंग के लिए पैरंट्स को जरुरत पड़ने पर काउंसलिंग और टिप्स के लिए भी परहेज नहीं करना चाहिए.
आने वाले दौर में युवाओं के लिए मनोविज्ञान में हैं बेशुमार अवसर
वर्तमान दौर में बेहतर साइकोलॉजिस्ट की बढ़ती मांग को देखते हुए आने वाले दौर में युवाओं को मनोविज्ञान में बेहतर अवसर मिल सकता है. मनोविज्ञान के क्षेत्र में भविष्य तलाशने वाले युवाओं के लिए न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के कई देशों में अवसरों की भरमार होने की बात कही गई है. डॉ. सक्सेना कहते हैं कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में जहां भारत से कई गुना कम आबादी है, लेकिन मनोवैज्ञानिक प्रोफेशनल करीब 25 गुना से भी ज्यादा है. इससे यह पता चलता है कि भारत में इनकी खासा कमी है.
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