रायबरेली: इंदिरा के व्यक्तित्व के दो खास पहलू थे. गजब का जज्बा और विलक्षण प्रतिभा. इन दोनों का जिक्र किए बगैर उनको लेकर कही गई. सभी बातें अधूरी ही करार दी जाएगी. ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर विंस्टन चर्चिल कहते थे कि 'जिन्दगी की सबसे बड़ी सिफत होती है हिम्मत और यदि इंसान में हिम्मत है तो बाकी सारे गुण अपने आप पैदा हो जाते हैं. इसी बात को इंदिरा गांधी का व्यक्तित्व चरितार्थ करता है. आजादी के बाद कई सांसद रहे रायबरेली से जिनमें फिरोज गांधी से लेकर राज नारायण तक थे, पर इंदिरा जैसा कोई नहीं था.
इंदिरा ने रायबरेली को दी 'इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्री'
वर्तमान समस्याओं में सबसे बड़ी व विकराल समस्या बेरोजगारी का जन्म इंदिरा के जाने के बाद हुआ. उनके समय रायबरेली में घरों से बुलाकर नौकरी दिए जाने का चलन था. उस दौर में इंडियन टेलीफोन जैसी इंडस्ट्रीज ने रायबरेली में जन्म लिया. रायबरेली के विकास को दिशा भी इंदिरा गांधी के सांसद रहते जिस कदर मिली, दोबारा फिर विकास वह गति नही पकड़ पाया.
रायबरेली को विश्व पटल पर पहुंचाया ‘आयरन लेडी’ ने
रायबरेली जैसे जनपद को विश्व के मानचित्र पर अंकित करने वाली शख्सियत और भारतीय राजनीति में ‘आयरन लेडी’ के नाम से विख्यात देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आज 102वीं जयंती है. इंदिरा गांधी की जयंती के अवसर पर ईटीवी भारत ने जिले के कुछ ऐसे लोगों से बातचीत की, जो उनके कार्यशैली के गवाह रहे हैं.
आजादी के दौर से ही शुरू हुआ रायबरेली से उनका जुड़ाव
जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित बोर्ड के प्रभारी और पूर्व विधायक मदन मोहन मिश्र के पुत्र अनिल मिश्र कहते हैं कि इंदिरा गांधी का व्यक्तित्व अद्भुत व अद्वितीय था. रायबरेली से उनका जुड़ाव आजादी के दौर से ही शुरू हुआ था. इंदिरा गांधी की लोकसभा में पहली बार इंट्री बतौर रायबरेली सांसद के रूप में हुई थी और यही कुछ कारण थे कि रायबरेली व यहां के लोगों से उनका हमेशा विशेष लगाव रहता था.
अनिल मिश्र ने याद दिलाए इंदिरा से जुड़े संस्मरण
इंदिरा गांधी से जुड़ा संस्मरण याद दिलाते हुए अनिल मिश्रा कहते हैं कि 1967 में रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद शहर के डिग्री कॉलेज मैदान में एक भव्य रैली का आयोजन किया गया था. कार्यक्रम उनके पिता और तत्कालीन रायबरेली के विधायक पंडित मदन मोहन मिश्रा ने किया था.
भरे मंच से की थी इंडस्ट्री लगाने की घोषणा
उन्होंने बताया कि रैली में विशिष्ट अतिथि के तौर पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह भी आमंत्रित किए गए थे. करीब दो लाख की भीड़ की मौजूदगी में जब विधायक मिश्रा ने रायबरेली सांसद व देश के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से रायबरेली से बेरोजगारी दूर करने के लिए किसी बड़े कारखाने की मांग की तो शुरू में इंदिरा कुछ हिचकिचाईं. फिर भरे मंच से इस बात की घोषणा की. जल्द ही रायबरेली में एक बड़ा कारखाना लगेगा और यहां के नौजवान अब बेरोजगार नहीं रहेंगे. उसी का नतीजा था कि रायबरेली में 1972 में इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्री स्थापित हुई.
शहीदों की लिए पेंशन सुविधा की शुरुआत
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रितों के जिला प्रमुख अनिल मिश्र कहते हैं कि देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को उचित सम्मान देने की परंपरा की शुरुआत इंदिरा गांधी ने ही की थी. उन्हीं के दौर में 'जंग-ए-आजादी' में अपना योगदान देने वाले सेनानियों को न केवल पहचान दी गई, बल्कि उनके किए हुए कार्यों के लिए उन्हें पेंशन सुविधा की भी शुरुआत की गई. इसके साथ ही जिले में 'जंग-ए-आजादी' की निशानी शहीद स्मारक की स्थापना में भी उनका अतुलनीय योगदान रहा.
यूं ही नहीं मिली 'आयरन लेडी' की उपाधि
रायबरेली शहर के नामचीन फिरोज गांधी डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. जीतेन्द्र कहते हैं कि इंदिरा गांधी को यूं ही 'आयरन लेडी' की उपाधि नहीं दी गई है. उन्होंने कई ऐसे महत्वपूर्ण कार्य किए हैं जो देशहित में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. जिस प्रकार से आजादी के बाद रियासतों के एकीकरण का काम सरदार पटेल द्वारा किया गया था. कुछ वैसा ही देशहित में बड़ा प्रयास इंदिरा गांधी द्वारा रियासतों व रजवाड़ों को सरकार की ओर से दी जाने वाली सौगातों को बंद करने से शुरू हुआ. सामंतवादी विचारधारा के खिलाफ इसे बड़ा कदम माना गया.
ये दो कदम हमेशा किए जाएंगे याद
इंदिरा गांधी द्वारा 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया. इसकी बदौलत देश का भविष्य व वर्तमान की गति संभव हो सका. उनका उपलब्धियों में 1971 युद्ध में पाकिस्तान की करारी शिकस्त माना जायेगा. यह इंदिरा गांधी ही थी जिनके कारण बांग्लादेश विश्व के मानचित्र पर अंकित हो सका. इंदिरा गांधी ने देश ही नहीं विश्व पटल पर भी अपने निर्णयों की अमिट छाप छोड़ी.
इमरजेंसी से बांग्लादेश के जन्म तक
रायबरेली लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ रहा. यहां से गांधी परिवार की कई पीढ़ियों ने लोकसभा तक का सफर तय किया है, लेकिन उन सभी में इंदिरा गांधी कुछ खास थीं. इमरजेंसी का दौर अगर लोकतंत्र का काला अध्याय कहलाता है तो बांग्लादेश का जन्म भारतीय सेना व राजनीतिक शक्ति के अदम्य साहस की निशानी रहा और रायबरेली के लिए तो इंदिरा केवल प्रियदर्शनी ही रही और आगे भी रहेंगी.