रायबरेली: आज पूरा देश महात्मा गांधी की 151वीं जयंती मना रहा है. गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत के दम पर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया. अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजाद दिलाने के लिए वैसे तो गांधी जी ने पूरे देश की यात्रा की लेकिन उनका कुछ लगाव रायबरेली से भी रहा.
गर्मजोशी से किया गया था बापू का स्वागत
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का रायबरेली से बेहद रोचक जुड़ाव है. 1925 में महात्मा गांधी पहली बार रायबरेली पहुंचे थे. जंगे-ए-आजादी में जिले की अद्वितीय हिस्सेदारी से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने रायबरेली को 'आंदोलनों के तीर्थ' का नाम दिया था. 1857 क्रांति में अतुलनीय योगदान देने वाले जनपद रायबरेली में जब बापू का पहली बार आगमन हुआ था तो एक सभा में उन्हें 1857 रुपये की थैली भेंट की गई थी.
दरअसल, मुंशीगंज के किसान गोलीकांड के बाद से ही महात्मा गांधी के मन में रायबरेली रच बस गया था. सैकड़ों की संख्या में किसानों की दिनदहाड़े बर्बरतापूर्ण तरीके से हुई हत्या ने बापू को भी झकझोर दिया था. यही कारण था कि बापू ने खुद पंडित जवाहरलाल नेहरू को मुंशीगंज गोलीकांड के घटनाक्रम की जमीनी हकीकत परखने के लिए मौके पर भेजा था. साथ ही रायबरेली, प्रतापगढ़ जैसे इलाकों के किसान आंदोलनों पर भी नजर रखने की बात कही थी. इन्ही कारणों से रायबरेली से जब भी महात्मा गांधी गुजरे यहां के स्थानीय लोगों से मिले.
राजनीतिक जानकार विजय विद्रोही कहते हैं कि स्वाधीनता संग्राम में जिले के योगदान से महात्मा गांधी परिचित थे. यही कारण था कि किसान आंदोलनों में नेहरू की सक्रिय भागीदारी बापू द्वारा दिये गए निर्देश के कारण ही संभव हो सकी थी. 1921 के मुंशीगंज किसान गोलीकांड के बाद से ही कांग्रेस व गांधी जी ने सभी आंदोलनों के रुख को मोड़ते हुए देशभर के मजदूरों व किसानों को भी इसमें सक्रिय भागीदारी के लिए जोड़ा.
1921 में किसान आंदोलन के बाद लगानबंदी आंदोलन जब हुआ और नमक आंदोलन हुआ फिर अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन हुआ तो उन आंदोलनों की रायबरेली बहुत बड़ी जमीन रही जिसमें गांधी जी का बहुत गहरा प्रभाव था.
-विजय विद्रोही, राजनीतिक जानकार
जब पहली बार पहुंचे रायबरेली
वर्ष 1925 के मार्च-अप्रैल माह में दक्षिण भारत व केरल के दौरे के बाद उत्तर भारत में आजादी की अलख जगाने के मकसद से महात्मा गांधी ने यूपी का रुख किया था. बलिया से लखनऊ जाते वक्त बापू 17 अक्टूबर 1925 के दिन रायबरेली रेलवे स्टेशन पहुंचे, स्टेशन पर ही उपस्थित अपार जनसमूह ने महात्मा गांधी को सिर आंखों पर बैठाया और गगनभेदी नारों के साथ गांधी जी का स्वागत किया गया. रायबरेली के आम जनमानस में अपने लिए अपार स्नेह देखकर बापू भी भावुक हो गए.
चार साल बाद दोबारा रायबरेली आए बापू
पहली बार रायबरेली से गुजरने के दौरान ही महात्मा गांधी ने दोबारा यहां आने की बात कही थी और करीब 4 साल के बाद 13 नवंबर 1929 को पुनः बापू रायबरेली आए. उनकी पहली सभा जिले के बछरावां कस्बे में हुई थी. बापू ने नमक सत्याग्रह के पूर्व यहां का दौरा किया था. बापू के स्वागत में करीब 50,000 से ज्यादा भीड़ एकत्रित हुई. कई ग्रामीण क्षेत्रों से इस सभा में गांधीजी को थैलियां भेंट की गई. जिसका उल्लेख बापू ने अपने समाचार पत्र 'यंग इंडिया' में किया.
बापू ने रायबरेली को 'आंदोलनों का तीर्थ' करार दिया था क्योंकि बापू द्वारा चलाए गए तमाम आंदोलनों का व्यापक असर यहीं पर देखने को मिला था. गांधी जी के उद्गार आन्दोलन के रूप में रायबरेली से ही निकले. बापू का स्वागत बेहद गर्मजोशी से हुआ था. समाज का हर तबका और वर्ग उन्हें देखने के लिए उनकी सभाओं में उमड़ पड़ा था.
-डॉ. जितेंद्र सिंह, स्थानीय इतिहासकार
बछरावां के बाद बापू रायबरेली आए थे. वर्तमान में जो जिला चिकित्सालय की भूमि है, पूर्व में यहीं पर बापू की सभा के लिए विशाल पंडाल लगाया गया था. खास बात यह थी कि उनकी सभा में आम जनमानस के अलावा स्थानीय तालुकेदार और आसपास के जनपदों के कई राजा - महाराजा भी कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे. उसी दिन शाम को वर्ष 1916 में स्थापित हिंदू स्कूल वर्तमान में जो वर्तमान में एमजीआईसी के नाम से प्रसिद्ध हैं. उसी के प्रांगण में महात्मा गांधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी का स्वागत किया गया था, जिसमें स्त्रियों ने आभूषण दिए थे. इस मौके पर जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी भी मौजूद रहीं.
14 नवंबर 1929 महात्मा गांधी पहुंचे लालगंज
हजारों की संख्या में अपार जनसमूह बापू की सभा में शिरकत करने पहुंचा. बैसवारे की धरती पर बापू को आल्हा गाकर सुनाया गया था. विनोदी स्वभाव के बापू ने गायकों से मुस्कुरा कर कहा इसी प्रकार अपने आंदोलनों से जुड़े गीत भी बनाएं. लालगंज से निकलकर कालाकांकर से इलाहाबाद जाते समय बापू सलोन के ढेकियां चौराहे पर भी रुक कर आम जनता से मुखातिब हुए थे. यहीं पर बापू को 1857 की महान क्रांति की स्मृति में 1857 रुपये की थैली भी भेंट की गई.