रायबरेली: यूपीए शासनकाल में स्थानीय सांसद सोनिया गांधी द्वारा वर्ष 2013 में जिले को रिंग रोड प्रोजेक्ट की सौगात दी गई थी. क्षेत्र के लोगों को महानगरों के बीच चलने वाले भारी ट्रैफिक से निजात दिलाने के मकसद से इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति दी गई थी. मार्च 2014 में ही इस प्रोजेक्ट के फर्स्ट फेज में काम शुरु हो गया था. दो साल के अंदर इसको पूरा करने का दावा किया जा रहा था. 2016 से 2019 आ गया लेकिन रिंग रोड प्रोजेक्ट का पहला फेज भी अभी तक पूरा नहीं हो सका है.
रिंग रोड प्रोजेक्ट पड़ा है अधूरी हालत में-
- केंद्र सरकार के सड़क परिवाहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को रिंग रोड प्रोजेक्ट को पूरा कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.
- शुरुआत में राजधानी लखनऊ की कंपनी जेकेएम को इसका ठेका दिया गया था.
- मजदूरों से जुड़ी समस्या तो कभी रंगदारी से जुड़े मुद्दे को लेकर यह प्रोजेक्ट अधूरा रह गया.
- दूसरी कंपनी एपीएस को इसे पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
- प्रोजेक्ट को अंतिम रूप देने में वह भी कामयाब नहीं हो सकी.
अधूरे पड़े रिंग रोड प्रोजेक्ट के बारे में एडीएम राम अभिलाष ने बताया कि एक बार पुनः नोडल विभाग द्वारा इसके संबंध में टेंडरिंग की प्रक्रिया शुरु की जा चुकी है. जल्द ही किसी अन्य कंपनी द्वारा प्रोजेक्ट को पूरा कराया जाएगा. पूर्व के वेंडर्स द्वारा काम अधूरा छोड़ने पर दोनों ही कंपनियों को 'ब्लैकलिस्ट' के दायरे में रखा जाएगा.
स्थानीय प्रशासन का पूरा जोर इस प्रोजेक्ट पर है और इसे जल्द से जल्द पूरा करने में लगा है. स्थानीय स्तर पर प्रोजेक्ट को पूरा करने में कोई दिक्कत नहीं आने दी जाएगी.
-राम अभिलाष, एडीएम