प्रयागराज: धर्म और आस्था की नगरी प्रयागराज में कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ शुरू होने वाले कल्पवास करने से पुण्यलाभ मिलता है. इस पुण्यलाभ को संगम नगरी में कौन नहीं पाना चाहता. हर वर्ष माघ मेले में उम्रदराज लोग अपने परिवार के साथ कल्पवास करने आते थे, लेकिन इस बार कोरोना के संक्रमण को देखते हुए सरकार ने मेले में गाइडलाइन जारी कर दी. जिसके मद्देनजर इस बार माघ मेले बुजुर्गों की संख्या कम दिख रही है. इस कारण से युवा कल्पवास करके परंपरा को जारी रख रहे हैं.
तीर्थराज प्रयाग में गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन है. यहां पर दूरदराज से श्रद्धालु कल्पवास करने आते हैं. आदि काल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में अलग-अलग नामों से मिलती है. आज भी नई और पुरानी पीढ़ी के लिए अध्यात्मिक राह का एक पड़ाव है. बदलते दौर में कल्पवास करने वाले के तौर तरीके में कुछ बदलाव जरूर आए हैं, लेकिन न तो कल्पवास करने वालों की संख्या में कमी आई है और न ही उम्र का संकोच.
कल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन माना जाता है कि सांसारिक मोह माया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए. क्योंकि जिम्मेदारियों में फंसे लोगों को कल्पवास के दौरान थोड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. क्योंकि 1 माह तक चलने वाले कल्पवास के दौरान कल्प वासी को जमीन पर शयन, फलाहार एक समय का भोजन या निराहार रहने का भी प्रावधान है.
12 वर्षों तक जारी रखने की है परंपरा
कल्पवास करने वाले श्रद्धालु को तीन समय में गंगा स्नान भजन कीर्तन करना चाहिए. कल्पवास की शुरुआत करने के बाद इसे 12 वर्षों तक जारी रखने की परंपरा है. बीच में अगर खंडित हो जाए तो इसका पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है. 12 वर्ष के बाद भी इसको जारी रखा जा सकता है. कल्पवासी तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन के साथ अपने कल्पवास को शुरू करते हैं. कल्पवास के लिए कुछ युवा भी कल्पवास की ओर आकर्षित हुए हैं, जो अपने माता-पिता के साथ कल्पवास करते-करते युवा खुद भी कल्पवासी हो गए हैं. कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष माघ मेले में सरकार ने गाइडलाइन जारी कर दी.
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