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नवरात्रि का छठवां दिनः मां कात्यायनी को प्रिय है शहद, ऐसे करें आराधना

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Published : Apr 7, 2022, 6:33 AM IST

Updated : Apr 7, 2022, 7:13 AM IST

आज नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा की छठी शक्ति देवी कात्यायनी की पूजा करने का विधान है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए देवी कात्यायनी महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं थीं. मां कात्यायनी को शहद बहुत प्रिय है.

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मां कात्यायनी

प्रयागराजः आज नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा की छठी शक्ति देवी कात्यायनी की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि मां कात्यायनी की आराधना करने से समस्त पाप और दुख नष्ट हो जाते हैं और जातक को रोग, शोक और भय से मुक्ति मिल जाती है. मां पार्वती ने यह रूप महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए धारण किया था. मां की आराधना करने से साधक को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं का कार्य सिद्ध करने व राक्षस को मारने के लिए देवी कात्यायनी, महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई थीं. महर्षि ने इन्हें अपनी पुत्री माना था और इसी वजह से इनका नाम कात्यायनी पड़ा.

नवरात्रि का छठवां दिन
पंडित शिप्रा सचदेव ने बताया कि नौ देवियों में कात्यायनी मां दुर्गा का छठा अवतार हैं. देवी का यह स्वरूप करुणामयी है. मां का शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है और 4 भुजाधारी मां सिंह पर सवार हैं. उन्होंने एक हाथ में तलवार और दूसरी हाथ में कमल का पुष्प धारण किया है, जबकि दाहिने हाथों से वरद एवं अभय मुद्रा धारण की हुई हैं. देवी लाल वस्त्र पहनती हैं.

यह भी पढ़ें- राजस्थान के राज्यपाल ने मां विंध्यवासिनी का किया दर्शन-पूजन, करौली की घटना को बताया पूर्वनियोजित

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण को पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने मां की पूजा कालिंदी नदी की तट पर की थी. ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी की रूप में प्रतिष्ठित हैं. इस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है. योग साधना में इस आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है. इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी की चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है.

माता की पूजा शुरू करने पर हाथों में सुगन्धित पुष्प लेकर देवी को प्रणाम कर मंत्र का ध्यान करना चाहिए. मां को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करना चाहिए. मां कात्यायनी को शहद बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन मां को भोग में शहद अर्पित करना चाहिए.

महर्षि कात्यायन की पुत्री हैं मां कात्यायनीः धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि कात्यायन ने भगवती मां की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी. उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें और मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली. कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ने अपनी-अपनी तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए मां कात्यायनी देवी को प्रकट किया था. महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की और देवी इनकी पुत्री कहलाईं.

आराधना मंत्रः
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता|
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||

इनकी पूजा करने से भक्तों को आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि मां के इस स्वरुप की पूजा करने से विवाह में आ रहीं रुकावटें भी दूर होती हैं. इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है. मां दुर्गा के छठवें रूप की पूजा से राहु-केतु से जुड़ी कुंडली की परेशानियां भी दूर हो जाती हैं.

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प्रयागराजः आज नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा की छठी शक्ति देवी कात्यायनी की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि मां कात्यायनी की आराधना करने से समस्त पाप और दुख नष्ट हो जाते हैं और जातक को रोग, शोक और भय से मुक्ति मिल जाती है. मां पार्वती ने यह रूप महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए धारण किया था. मां की आराधना करने से साधक को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं का कार्य सिद्ध करने व राक्षस को मारने के लिए देवी कात्यायनी, महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई थीं. महर्षि ने इन्हें अपनी पुत्री माना था और इसी वजह से इनका नाम कात्यायनी पड़ा.

नवरात्रि का छठवां दिन
पंडित शिप्रा सचदेव ने बताया कि नौ देवियों में कात्यायनी मां दुर्गा का छठा अवतार हैं. देवी का यह स्वरूप करुणामयी है. मां का शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है और 4 भुजाधारी मां सिंह पर सवार हैं. उन्होंने एक हाथ में तलवार और दूसरी हाथ में कमल का पुष्प धारण किया है, जबकि दाहिने हाथों से वरद एवं अभय मुद्रा धारण की हुई हैं. देवी लाल वस्त्र पहनती हैं.

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पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण को पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने मां की पूजा कालिंदी नदी की तट पर की थी. ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी की रूप में प्रतिष्ठित हैं. इस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है. योग साधना में इस आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है. इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी की चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है.

माता की पूजा शुरू करने पर हाथों में सुगन्धित पुष्प लेकर देवी को प्रणाम कर मंत्र का ध्यान करना चाहिए. मां को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करना चाहिए. मां कात्यायनी को शहद बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन मां को भोग में शहद अर्पित करना चाहिए.

महर्षि कात्यायन की पुत्री हैं मां कात्यायनीः धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि कात्यायन ने भगवती मां की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी. उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें और मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली. कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ने अपनी-अपनी तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए मां कात्यायनी देवी को प्रकट किया था. महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की और देवी इनकी पुत्री कहलाईं.

आराधना मंत्रः
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता|
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||

इनकी पूजा करने से भक्तों को आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि मां के इस स्वरुप की पूजा करने से विवाह में आ रहीं रुकावटें भी दूर होती हैं. इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है. मां दुर्गा के छठवें रूप की पूजा से राहु-केतु से जुड़ी कुंडली की परेशानियां भी दूर हो जाती हैं.

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Last Updated : Apr 7, 2022, 7:13 AM IST
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