प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि भरण पोषण का एक पक्षीय आदेश सही नहीं है विशेषकर जब पति को संबंधित वाद का नोटिस प्राप्त नहीं हुआ हो. कोर्ट ने एक पक्षीय आदेश रद्द करते हुए मामला वापस परिवार न्यायालय आगरा को भेज दिया है और पति का पक्ष सुनने के बाद निर्णय देने का निर्देश दिया है.
ललित सिंह की पुनरीक्षण याचिका पर यह आदेश (Allahabad High Court on provide for) न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने दिया है. ललित सिंह के खिलाफ़ उसकी पत्नी ने भरण पोषण का वाद आगरा की अदालत में दायर किया था. ललित सिंह इसमें अपना पक्ष रखने कभी उपस्थित नहीं हुए. इस पर कोर्ट ने एक पक्षीय डिक्री करते पत्नी को 9 हज़ार रुपए प्रति माह भरण पोषण के लिए देने का आदेश दिया. कई माह तक जब उन्होंने रकम जमा नहीं की, तो कोर्ट से रिकवरी का आदेश जारी हो गया. इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई.
ललित का कहना था कि उसका पत्नी के साथ समझौता हो गया था. इसलिए इस वाद की जानकारी नहीं हुई. रिकवरी आदेश जारी होने के बाद जानकारी हुईं. उसे कोई नोटिस भी नहीं मिला. कोर्ट ने पाया कि परिवार न्यायलय के आदेश में नोटिस सर्व होने का कोई जिक्र नहीं है. इस आधार पर कोर्ट ने परिवार न्यायालय का आदेश रद्द करते हुए पति को एक लाख रुपए जमा करने और पत्नि को पांच हजार रुपए प्रति माह देने की शर्त पर परिवार न्यायालय को वाद पुनर्स्थापित करने का आदेश (Unilateral order of support is not correct says Allahabad High Court) दिया है.
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