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पुलिस अफसरों की सत्यनिष्ठा रोकने का दंड देना गैरकानूनी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने यूपी पुलिस के अधीनस्थ श्रेणी के अधिकारियों, सिपाहियों, मुख्य आरक्षियों, दरोगाओं एवं पुलिस इंस्पेक्टरों की सत्यनिष्ठा रोकने का दंड देने को गैरकानूनी ठहराया है. साथ ही ऐसे ही कुछ दंडादेश निरस्त करते हुए याची पुलिस वालों को समस्त सेवा लाभ देने का आदेश दिया है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 1, 2024, 6:29 AM IST

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Etv Bharat इलाहाबाद हाईकोर्ट यूपी पुलिस सत्यनिष्ठा रोकने का दंड integrity breach Allahabad High Court

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने यूपी पुलिस (UP Police) के अधीनस्थ श्रेणी के अधिकारियों, सिपाहियों, मुख्य आरक्षियों, दरोगाओं एवं पुलिस इंस्पेक्टरों की सत्यनिष्ठा रोकने का दंड देने को गैरकानूनी ठहराया है. साथ ही ऐसे ही कुछ दंडादेश निरस्त करते हुए याची पुलिस वालों को समस्त सेवा लाभ देने का आदेश दिया है.

हाईकोर्ट ने यह आदेश नोएडा, मेरठ एवं बरेली में तैनात गिरीश चंद्र जोशी, बृजेंद्र पाल सिंह राना, विकास सिंह, वीरेंद्र सिंह, रविशंकर, पुष्पेंद्र कुमार, जितेंद्र सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों की याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम, एडवोकेट अतिप्रिया गौतम व अनुरा सिंह को सुनकर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारियों की सत्यनिष्ठा रोकने का दंड नियम एंव कानून के विरुद्ध है इसलिए सत्यनिष्ठा रोके जाने का दंड उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों को नहीं दिया जा सकता.

याचियों को उनके वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों ने दंडादेश पारित करते हुये वर्ष 2020 की सत्यनिष्ठा रोके जाने के आदेश दिए थे. याचियों पर आरोप था कि जब वे एसओजी बरेली में नियुक्त थे तो अन्य एसओजी में नियुक्त सहकर्मियों के साथ अवैध स्रोतों से प्राप्त धनराशि के संबंध में बंटवारे को लेकर आपस में विवाद कर रहे थे, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. उसके बाद इन पुलिसकर्मियों के विरुद्ध बरेली कोतवाली में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. याचियों आरोप था कि उन्होंने अपने कर्तव्यों के प्रति राजकीय दायित्वों का निर्वहन नहीं किया और उनके उक्त कृत्य से जनता में पुलिस की छवि धूमिल हुई.

वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम और अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम एवं अनुरा सिंह ने अपनी बहस में कहा कि उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम 4 में जो दंड हैं, उसमें सत्य निष्ठा रोकने (इंटीग्रिटी विहोल्ड) करने के दंड का प्रावधान नहीं है इसलिए वह दंड पुलिस अधिकारियों को नहीं दिया जा सकता. साथ ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम टीजे पॉल एवं विजय सिंह बनाम उप्र सरकार व अन्य में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि जो दंड नियम में नहीं प्रावधानित है, वह दंड नहीं दिया जा सकता.

हाईकोर्ट ने समस्त तथ्यों एवं विधि के सिद्धांतों पर विचार के बाद कानून में यह व्यवस्था प्रतिपादित कर दी कि उप्र पुलिस अफसरों को सत्य निष्ठा रोके जाने का दंड नहीं दिया जा सकता एवं यह भी निर्देशित किया कि याचियों को सेवा संबंधी समस्त लाभ प्रदान किए जाएं.

ये भी पढ़ें- अनोखे अंदाज में दिया जा रहा राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का आमंत्रण, तैयार किया गया खास मुकुट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने यूपी पुलिस (UP Police) के अधीनस्थ श्रेणी के अधिकारियों, सिपाहियों, मुख्य आरक्षियों, दरोगाओं एवं पुलिस इंस्पेक्टरों की सत्यनिष्ठा रोकने का दंड देने को गैरकानूनी ठहराया है. साथ ही ऐसे ही कुछ दंडादेश निरस्त करते हुए याची पुलिस वालों को समस्त सेवा लाभ देने का आदेश दिया है.

हाईकोर्ट ने यह आदेश नोएडा, मेरठ एवं बरेली में तैनात गिरीश चंद्र जोशी, बृजेंद्र पाल सिंह राना, विकास सिंह, वीरेंद्र सिंह, रविशंकर, पुष्पेंद्र कुमार, जितेंद्र सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों की याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम, एडवोकेट अतिप्रिया गौतम व अनुरा सिंह को सुनकर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारियों की सत्यनिष्ठा रोकने का दंड नियम एंव कानून के विरुद्ध है इसलिए सत्यनिष्ठा रोके जाने का दंड उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों को नहीं दिया जा सकता.

याचियों को उनके वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों ने दंडादेश पारित करते हुये वर्ष 2020 की सत्यनिष्ठा रोके जाने के आदेश दिए थे. याचियों पर आरोप था कि जब वे एसओजी बरेली में नियुक्त थे तो अन्य एसओजी में नियुक्त सहकर्मियों के साथ अवैध स्रोतों से प्राप्त धनराशि के संबंध में बंटवारे को लेकर आपस में विवाद कर रहे थे, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. उसके बाद इन पुलिसकर्मियों के विरुद्ध बरेली कोतवाली में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. याचियों आरोप था कि उन्होंने अपने कर्तव्यों के प्रति राजकीय दायित्वों का निर्वहन नहीं किया और उनके उक्त कृत्य से जनता में पुलिस की छवि धूमिल हुई.

वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम और अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम एवं अनुरा सिंह ने अपनी बहस में कहा कि उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम 4 में जो दंड हैं, उसमें सत्य निष्ठा रोकने (इंटीग्रिटी विहोल्ड) करने के दंड का प्रावधान नहीं है इसलिए वह दंड पुलिस अधिकारियों को नहीं दिया जा सकता. साथ ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम टीजे पॉल एवं विजय सिंह बनाम उप्र सरकार व अन्य में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि जो दंड नियम में नहीं प्रावधानित है, वह दंड नहीं दिया जा सकता.

हाईकोर्ट ने समस्त तथ्यों एवं विधि के सिद्धांतों पर विचार के बाद कानून में यह व्यवस्था प्रतिपादित कर दी कि उप्र पुलिस अफसरों को सत्य निष्ठा रोके जाने का दंड नहीं दिया जा सकता एवं यह भी निर्देशित किया कि याचियों को सेवा संबंधी समस्त लाभ प्रदान किए जाएं.

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