प्रयागराज: सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI Dhananjaya Yeshwant Chandrachud) ने ट्रेन में यात्रा के दौरान एक न्यायाधीश को हुई असुविधा के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार प्रोटोकॉल द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण के मामले में कहा है कि न्यायाधीशों को उपलब्ध कराई गई प्रोटोकॉल सुविधाओं का उपयोग विशेषाधिकार के दावे पर जोर देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, जो उन्हें समाज से अलग करता है या शक्ति या अधिकार की अभिव्यक्ति के रूप में उपयोग करता है. उन्होंने कहा कि न्यायिक प्राधिकार का बुद्धिमानीपूर्ण प्रयोग, बेंच के अंदर और बाहर दोनों जगह, न्यायपालिका की विश्वसनीयता और वैधता तथा समाज के न्यायाधीशों पर विश्वास को कायम रखता है.
सीजेआई ने यह बात अपनी चिंता साझा करने के लिए सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को भेजे गए पत्र में लिखी है. सीजेआई ने अपने पत्र में लिखा है कि मेरा ध्यान हमारे उच्च न्यायालयों में से एक के प्रोटोकॉल अनुभाग के प्रभारी रजिस्ट्रार द्वारा क्षेत्रीय रेलवे के महाप्रबंधक को संबोधित 14 जुलाई 2023 के एक पत्र की ओर आकर्षित हुआ है. यह पत्र उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के नाम है, जो अपनी पत्नी के साथ ट्रेन में यात्रा कर रहे थे.
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पास रेलवेकर्मियों पर अनुशासनात्मक क्षेत्राधिकार नहीं है, इसलिए उच्च न्यायालय के किसी अधिकारी के लिए रेलवेकर्मियों से स्पष्टीकरण मांगने का कोई अवसर नहीं था, जिसे "महामहिम के समक्ष विचारार्थ रखा जाए". जाहिर है, उपरोक्त संचार में उच्च न्यायालय का अधिकारी इस मामले में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के निर्देश का पालन कर रहा था ("माननीय न्यायाधीश की इच्छा है").
उच्च न्यायालय के एक अधिकारी द्वारा रेलवे प्रतिष्ठान के महाप्रबंधक को संबोधित पत्र ने न्यायपालिका के भीतर और बाहर दोनों जगह उचित बेचैनी को जन्म दिया है. न्यायाधीशों को उपलब्ध कराई गई प्रोटोकॉल सुविधाओं का उपयोग विशेषाधिकार के दावे पर जोर देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, जो उन्हें समाज से अलग करता है या शक्ति या अधिकार की अभिव्यक्ति के रूप में उपयोग करता है. न्यायिक प्राधिकार का बुद्धिमानीपूर्ण प्रयोग, बेंच के अंदर और बाहर दोनों जगह, न्यायपालिका की विश्वसनीयता और वैधता तथा समाज के न्यायाधीशों पर विश्वास को कायम रखता है.
मैं इसे उच्च न्यायालयों के सभी मुख्य न्यायाधीशों को इस आग्रह के साथ लिख रहा हूं कि वे अपनी चिंताओं को उच्च न्यायालयों के सभी सहयोगियों के साथ साझा करें. न्यायपालिका के भीतर आत्मचिंतन और परामर्श आवश्यक है. न्यायाधीशों को उपलब्ध कराई जाने वाली प्रोटोकॉल सुविधाओं का उपयोग इस तरह से नहीं किया जाना चाहिए जिससे दूसरों को असुविधा हो या न्यायपालिका की सार्वजनिक आलोचना हो.
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह एक पत्र सामने आया था, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार प्रोटोकॉल ने रेलवे के महाप्रबंधक को पत्र लिखकर हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश को ट्रेन में यात्रा करते समय हुई असुविधा के लिए स्पष्टीकरण मांगा था.
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