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Navratri 2021: 51 शक्तिपीठों में से एक है मां ललिता देवी मंदिर, यहां गिरी था मां की अंगुलियां - prayagraj news

प्रयागराज जिले में स्थित मां ललिता देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. मान्यता है कि यहां देवी सती की हाथ की अंगुलियां गिरी थीं. नवरात्रि में यहां भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है. आइए जानते हैं मंदिर के महत्व के बारे में...

मां ललिता देवी
मां ललिता देवी
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Published : Oct 10, 2021, 2:22 PM IST

प्रयागराज: जिले में स्थित तीन शक्तिपीठों में एक मां ललिता देवी का मंदिर भी है. 51 शक्तिपीठों में से एक मां ललिता का विशेष महात्म्य है. मान्यता है कि यहां सती की अंगुलियां गिरी थीं. शक्तिपीठ मंदिर के पास संकट मोचन हनुमान, राम, लक्ष्मण और सीता के साथ-साथ राधा-कृष्ण की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं.

मां ललिता देवी के साथ यहां भगवती महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजमान हैं. इनके दर्शन-पूजन के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु यहां आते हैं और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के हिस्से, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठ बन गए थे. यह पावन तीर्थस्थान पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है. इन्हीं में से एक संगमनगरी में ललिता देवी मंदिर भी है जहां सती की अंगुलियां गिरी थीं.

स्पेशल रिपोर्ट
माता के इस पावन शक्तिपीठ के दर्शन के लिए वैसे तो सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां का महात्म्य और भी बढ़ जाता है. क्योंकि नवरात्रि के नौ दिन मां की उपासना का दिन है, ऐसे में शक्तिपीठों के दर्शन-पूजन से विशेष लाभ प्राप्त होता है. मां की विशेष साधना के लिए भक्त दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं. नवरात्रि के नौ दिनों में रोजाना माता का दिव्य श्रृंगार भी किया जाता है. सुबह करीब 5.30 बजे मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और पूरे विधि-विधान के साथ देवी की पूजा-अर्चना की जाती है और शाम 7.30 बजे मां की भव्य आरती की जाती है. मां के पवित्र मंदिर में प्रतिदिन सुबह-शाम सप्तचंडी का पाठ और पूजन किया जाता है. साथ ही हर माह अष्टमी तिथि को ललिता देवी का दर्शन-पूजन अत्यंत फलदायी माना जाता है. कुमकुम से अर्चन करने और गुड़हल का फूल अर्पित करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. ललिता माता का मंत्र समस्त सुखों को प्रदान करने वाला मंत्र है. आदिशक्ति त्रिपुर सुंदरी जगत जननी ललिता माता के दर्शन से मनुष्‍य के सभी कष्टों का निवारण स्वत: ही हो जाता है. ललिता माता की पूजा-अर्चना एवं व्रत मनुष्य को शक्ति प्रदान करते हैं. प्रतिदिन अथवा पंचमी के दिन ललिता माता के निम्न मंत्र का जाप करने का कुछ विशेष ही महत्व होता है. माता ललिता का ध्यान धरकर उनकी प्रार्थना एवं मंत्र का जाप करने से सभी कष्टों से मुक्ति पा जाता है.
कैसा है मां का स्वरूप

देवी त्रिपुर सुंदरी शांत मुद्रा में लेटे हुए भगवान शिव की नाभि से निर्गत कमल-आसन पर विराजमान हैं. चार भुजाओं में देवी के पाश, अंकुश, धनुष और बाण हैं. तीन नेत्रों से युक्त और मस्तक पर अर्ध चंद्र को धारण करती हैं. मान्यता है कि मां त्रिपुर सुंदरी की पूजा-अर्चना करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

पूजन विधि

शाम के वक्त स्वच्छ होकर गुलाबी रंग के कपड़े पहनें. घर के मंदिर में देवी ललिता का चित्र स्थापित कर उत्तरमुखी होकर विधिवत पूजा करें. गाय के घी का दीपक लगाएं, चंदन की धूप करें, गुलाबी रंग के फूल चढ़ाएं, गुलाल अर्पित कर मां को सुंगधित इत्र लगाएं. खीर का भोग लगाकर मंत्रोचार करें.

मां ललिता देवी मंदिर के पुजारी शिवमूर्त मिश्र के अनुसार, इसका ताल्लुक महाभारत काल से भी माना जाता है और लाक्षागृह के दौरान पांडवों ने यहां पर आकर एक कुएं का निर्माण किया था जिसे पांडुकूप भी कहा जाता है. इस कूप से हमेशा जल निकलता रहता है और उसी कूप के जल से माता का पूजन-अर्चन किया जाता है.

इसे भी पढ़ें-Navratri 2021: चौथे दिन करें मां कुष्मांडा की पूजा, जानें क्या है सही विधि

प्रयागराज: जिले में स्थित तीन शक्तिपीठों में एक मां ललिता देवी का मंदिर भी है. 51 शक्तिपीठों में से एक मां ललिता का विशेष महात्म्य है. मान्यता है कि यहां सती की अंगुलियां गिरी थीं. शक्तिपीठ मंदिर के पास संकट मोचन हनुमान, राम, लक्ष्मण और सीता के साथ-साथ राधा-कृष्ण की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं.

मां ललिता देवी के साथ यहां भगवती महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजमान हैं. इनके दर्शन-पूजन के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु यहां आते हैं और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के हिस्से, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठ बन गए थे. यह पावन तीर्थस्थान पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है. इन्हीं में से एक संगमनगरी में ललिता देवी मंदिर भी है जहां सती की अंगुलियां गिरी थीं.

स्पेशल रिपोर्ट
माता के इस पावन शक्तिपीठ के दर्शन के लिए वैसे तो सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां का महात्म्य और भी बढ़ जाता है. क्योंकि नवरात्रि के नौ दिन मां की उपासना का दिन है, ऐसे में शक्तिपीठों के दर्शन-पूजन से विशेष लाभ प्राप्त होता है. मां की विशेष साधना के लिए भक्त दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं. नवरात्रि के नौ दिनों में रोजाना माता का दिव्य श्रृंगार भी किया जाता है. सुबह करीब 5.30 बजे मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और पूरे विधि-विधान के साथ देवी की पूजा-अर्चना की जाती है और शाम 7.30 बजे मां की भव्य आरती की जाती है. मां के पवित्र मंदिर में प्रतिदिन सुबह-शाम सप्तचंडी का पाठ और पूजन किया जाता है. साथ ही हर माह अष्टमी तिथि को ललिता देवी का दर्शन-पूजन अत्यंत फलदायी माना जाता है. कुमकुम से अर्चन करने और गुड़हल का फूल अर्पित करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. ललिता माता का मंत्र समस्त सुखों को प्रदान करने वाला मंत्र है. आदिशक्ति त्रिपुर सुंदरी जगत जननी ललिता माता के दर्शन से मनुष्‍य के सभी कष्टों का निवारण स्वत: ही हो जाता है. ललिता माता की पूजा-अर्चना एवं व्रत मनुष्य को शक्ति प्रदान करते हैं. प्रतिदिन अथवा पंचमी के दिन ललिता माता के निम्न मंत्र का जाप करने का कुछ विशेष ही महत्व होता है. माता ललिता का ध्यान धरकर उनकी प्रार्थना एवं मंत्र का जाप करने से सभी कष्टों से मुक्ति पा जाता है. कैसा है मां का स्वरूप

देवी त्रिपुर सुंदरी शांत मुद्रा में लेटे हुए भगवान शिव की नाभि से निर्गत कमल-आसन पर विराजमान हैं. चार भुजाओं में देवी के पाश, अंकुश, धनुष और बाण हैं. तीन नेत्रों से युक्त और मस्तक पर अर्ध चंद्र को धारण करती हैं. मान्यता है कि मां त्रिपुर सुंदरी की पूजा-अर्चना करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

पूजन विधि

शाम के वक्त स्वच्छ होकर गुलाबी रंग के कपड़े पहनें. घर के मंदिर में देवी ललिता का चित्र स्थापित कर उत्तरमुखी होकर विधिवत पूजा करें. गाय के घी का दीपक लगाएं, चंदन की धूप करें, गुलाबी रंग के फूल चढ़ाएं, गुलाल अर्पित कर मां को सुंगधित इत्र लगाएं. खीर का भोग लगाकर मंत्रोचार करें.

मां ललिता देवी मंदिर के पुजारी शिवमूर्त मिश्र के अनुसार, इसका ताल्लुक महाभारत काल से भी माना जाता है और लाक्षागृह के दौरान पांडवों ने यहां पर आकर एक कुएं का निर्माण किया था जिसे पांडुकूप भी कहा जाता है. इस कूप से हमेशा जल निकलता रहता है और उसी कूप के जल से माता का पूजन-अर्चन किया जाता है.

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