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मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की याचिका खारिज - petition dismissed

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट के अध्यक्ष मोहम्मद आजम खां के मार्फत दाखिल याचिका खारिज कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने ट्रस्ट की तरफ से दाखिल याचिका पर दिया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Oct 21, 2020, 7:29 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट के अध्यक्ष मोहम्मद आजम खां के मार्फत दाखिल याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा है कि राजस्व परिषद के आदेश में कोई अवैधानिकता नहीं है. इसलिए हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है.

यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने ट्रस्ट की तरफ से दाखिल याचिका पर दिया है. राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुधांशु श्रीवास्तव का कहना था कि अनुसूचित जाति के किसानों की जमीन बिना कलेक्टर की पूर्व अनुमति के बैनामा कराना विधि विरूद्ध है. उप्र जमींदारी उन्मूलन कानून की धारा 157ए के विपरीत है. ऐसी भूमि का स्वामित्व राज्य सरकार मे निहित हो जाता है.

इससे पहले कोर्ट ने याची अधिवक्ता सफदरजंग काजमी की वीडियो कान्फ्रेन्सिंग से सुनवाई की माग पर संपर्क न हो पाने पर कोर्ट में बहस का आदेश दिया था. केस की दुबारा पुकार के बाद याची की तरफ से कोई अधिवक्ता नहीं आया तो कोर्ट ने पत्रावली के आधार पर बोर्ड के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है, और कहा है कि निचली अदालत के आदेश मे कोई अवैधानिकता नहीं है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट के अध्यक्ष मोहम्मद आजम खां के मार्फत दाखिल याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा है कि राजस्व परिषद के आदेश में कोई अवैधानिकता नहीं है. इसलिए हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है.

यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने ट्रस्ट की तरफ से दाखिल याचिका पर दिया है. राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुधांशु श्रीवास्तव का कहना था कि अनुसूचित जाति के किसानों की जमीन बिना कलेक्टर की पूर्व अनुमति के बैनामा कराना विधि विरूद्ध है. उप्र जमींदारी उन्मूलन कानून की धारा 157ए के विपरीत है. ऐसी भूमि का स्वामित्व राज्य सरकार मे निहित हो जाता है.

इससे पहले कोर्ट ने याची अधिवक्ता सफदरजंग काजमी की वीडियो कान्फ्रेन्सिंग से सुनवाई की माग पर संपर्क न हो पाने पर कोर्ट में बहस का आदेश दिया था. केस की दुबारा पुकार के बाद याची की तरफ से कोई अधिवक्ता नहीं आया तो कोर्ट ने पत्रावली के आधार पर बोर्ड के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है, और कहा है कि निचली अदालत के आदेश मे कोई अवैधानिकता नहीं है.

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