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इलाहाबाद संग्रहालय में रखी मुगलकालीन जम्बूराक बंदूक और तोप के गोलों को देखकर हैरत में पड़ जाएंगे आप... - प्रयागराज राष्ट्रीय संग्रहालय

प्रयागराज के इलाहाबाद संग्रहालय (Allahabad Museum) में मुगलकालीन (Maughal era) जम्बूराक बंदूक (Jamburak gun) और तोप के गोले (cannonballs) रखे हुए है. इस बंदूक और तोप के गोले को देखकर आप हैरत में पड़ जाएंगे. इस जम्बूराक बंदूक का वजन इतना है कि उसे उठाने में अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाएं.

Allahabad Museum
इलाहाबाद संग्रहालय में जम्बूराक बंदूक
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Published : Jul 22, 2021, 1:27 PM IST

Updated : Jul 22, 2021, 3:15 PM IST

प्रयागराज : संगम नगरी प्रयागराज का नाम दुनिया के प्राचीनत शहरों में शामिल है. ये शहर कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है. प्रयागराज के राष्ट्रीय संग्रहालय (Prayagraj National Museum) में कई ऐसी चीजें रखी हुई हैं. जिन्हें देकर आप हैरत में पड़ जाएंगे. इन्हीं में से एक है मुगलकालीन (Maughal era) जम्बूराक बंदूक (Jamburak gun) और तोप के गोले (cannonballs). आने वाले दिनों में 17वीं शताब्दी की इस बंदूक (17th century gun)का वजन इतना है कि इसे उठाने में अच्छे और अच्छों के पसीने छूट जाएं. हालांकि अभी तक इलाहाबाद म्यूजियम (Allahabad Museum) में आने वाले लोग मुगलकाल की इस जम्बूराक बंदूक और तोप के गोले को नहीं देख सकते थे. लेकिन, अब जल्द ही यहां आने वाले सैलानी 17वीं-18वीं शताब्दी की जम्बूराक बंदूक और तोप के गोले देख सकेंगे.

प्रयागराज के राष्ट्रीय संग्रहालय में इस वक्त मुगलकालीन एक जम्बूराक बंदूक के साथ ही तोप के दो गोले रखे हुए हैं. ये बंदूक और तोप के गोले इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (Allahabad Central University) के मध्यकालीन इतिहास विभाग (Medieval History Department) द्वारा म्यूजियम को भेंट स्वरूप दी गयी है. विश्वविद्यालय के मध्यकालीन इतिहास विभाग के तहखाने में मिली इस बंदूक और तोप के गोलों को वहां के विभागाध्यक्ष ने पिछले साल कार्यकारी वीसी रहे प्रोफेसर आर आर तिवारी से अनुमति लेकर संग्रहालय को दे दिया था.

इलाहाबाद संग्रहालय में जल्द देखने को मिलेगी मुगलकालीन जम्बूराक बंदूक

संग्रहालय में बंदूक और गोलों को किया गया दुरुस्त

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से भेंट के रूप में मिली बंदूक और तोप के गोले काफी खराब हालात में थे. जिसे संग्रहालय के लैब में रखकर केमिकल और अन्य उपकरणों की मदद से साफ-सुथरा किया गया. जिसके बाद अब ये बंदूक और गोले काफी अच्छी हालात में हो गए हैं.
1संग्रहालय में रखी मुगलकालीन बंदूक और तोप के गोले
संग्रहालय में रखी मुगलकालीन बंदूक और तोप के गोले

बंदूक चलाने वालों को कहा जाता था जम्बूराक्ची

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी के अनुसार मुगलकालीन इस बंदूक को जम्बूराक कहा जाता है. उन्होंने बताया कि विशेष तरह की इस बंदूक को चलाने वालों को जम्बूराक्ची कहा जाता था. इस बंदूक को चलाने के लिए हाथी और ऊंट का सहारा लिया जाता था. इन्हीं जानवरों के पीठ पर से इस बंदूक को रखकर चलाया जाता था. इस बंदूक को चलाने से पहले इसमें बारुद भरा जाता और इसके बाद इसे फायर किया जाता था. इस बंदूक का वजन 40 किलोग्राम के करीब है.
जम्बूराक बंदूक की नली
जम्बूराक बंदूक की नली

प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने बताया कि ये बंदूक इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी तक कैसे पहुंची इस बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं हैं. लेकिन, उन्होंने बताया कि ये बंदूक मुगल काल की है. 17वीं शताब्दी के आस-पास इस तरह की बंदूकों इस्तेमाल पठान लोग करते थे. प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी के मुताबिक अनुमानत: 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम दौरान बंदूक और गोलों को इलाहाबाद लाया गया होगा. उस वक्त यूनिवर्सिटी के आस-पास के इलाकों में मेवाती लोग रहते थे और वो बहादुरी के साथ अंग्रेजी सेना से लोहा लेते थे. उस वक्त के स्वतंत्रता सेनानी और मेवातियों के द्वारा इस बंदूक और तोप के गोलों को छिपाकर रखा गया रहा होगा. बाद में उसी स्थान पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय और उसके तमाम विभाग बन गए.

पिछले साल इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मध्यकालीन इतिहास विभाग के तहखाने की सफाई के दौरान इतिहास के छात्रों को ये बंदूक और गोले मिले थे. जिसके बाद इसे उस वक्त विभाग के अध्यक्ष रहे प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी को दिखाया गया. जिसके उन्होंने बंदूक और तोप के गोले की डिजाइन और मॉडल के आधार पर शोध शुरू किया तो जानकारी मिली कि ये बंदूक और गोले मुगलकाल के हैं. जिसके बाद इसे संरक्षित करने के लिए इलाहाबाद संग्रहालय को सौंप दिया गया.


जल्द ही आम लोग देख सकेंगे मुगलकालीन बंदूक और तोप के गोले

इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने बताया कि इस बंदूक और गोले को संभाल कर रखने और उसकी बेहतर देखभाल के लिए संग्रहालय को दे दिया गया है. जो कि आने वाले दिनों में संग्रहालय में लोगों को दिखाने के लिए गैलरी में रखा जाएगा. इस वक्त इस संग्रहालय में आजाद गैलरी का निर्माण हो रहा है. जहां पर आने वाले दिनों में इस बंदूक और तोप के गोलों को रखा जाएगा.

इसे भी पढ़ें : कंगना रनौत की अगली फिल्म 'इमरजेंसी' पर सियासी घमासान, कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने


प्रयाग संग्रहालय या इलाहाबाद संग्रहालय के नाम से मशहूर प्रयागराज के राष्ट्रीय संग्रहालय भवन का आधारशिला 14 दिसंबर 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी. इसके बाद 1954 में ये म्यूजियम आम लोगों के लिए खोल दिया गया. इस संग्रहालय में कई कलाकृतियां और ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं संजोकर रखी गई हैं. यहां मौजूद कलाकृतियों और ऐतिहासिक वस्तुओं के महत्व को देखते हुए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने इसे राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित कर दिया.

प्रयागराज : संगम नगरी प्रयागराज का नाम दुनिया के प्राचीनत शहरों में शामिल है. ये शहर कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है. प्रयागराज के राष्ट्रीय संग्रहालय (Prayagraj National Museum) में कई ऐसी चीजें रखी हुई हैं. जिन्हें देकर आप हैरत में पड़ जाएंगे. इन्हीं में से एक है मुगलकालीन (Maughal era) जम्बूराक बंदूक (Jamburak gun) और तोप के गोले (cannonballs). आने वाले दिनों में 17वीं शताब्दी की इस बंदूक (17th century gun)का वजन इतना है कि इसे उठाने में अच्छे और अच्छों के पसीने छूट जाएं. हालांकि अभी तक इलाहाबाद म्यूजियम (Allahabad Museum) में आने वाले लोग मुगलकाल की इस जम्बूराक बंदूक और तोप के गोले को नहीं देख सकते थे. लेकिन, अब जल्द ही यहां आने वाले सैलानी 17वीं-18वीं शताब्दी की जम्बूराक बंदूक और तोप के गोले देख सकेंगे.

प्रयागराज के राष्ट्रीय संग्रहालय में इस वक्त मुगलकालीन एक जम्बूराक बंदूक के साथ ही तोप के दो गोले रखे हुए हैं. ये बंदूक और तोप के गोले इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (Allahabad Central University) के मध्यकालीन इतिहास विभाग (Medieval History Department) द्वारा म्यूजियम को भेंट स्वरूप दी गयी है. विश्वविद्यालय के मध्यकालीन इतिहास विभाग के तहखाने में मिली इस बंदूक और तोप के गोलों को वहां के विभागाध्यक्ष ने पिछले साल कार्यकारी वीसी रहे प्रोफेसर आर आर तिवारी से अनुमति लेकर संग्रहालय को दे दिया था.

इलाहाबाद संग्रहालय में जल्द देखने को मिलेगी मुगलकालीन जम्बूराक बंदूक

संग्रहालय में बंदूक और गोलों को किया गया दुरुस्त

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से भेंट के रूप में मिली बंदूक और तोप के गोले काफी खराब हालात में थे. जिसे संग्रहालय के लैब में रखकर केमिकल और अन्य उपकरणों की मदद से साफ-सुथरा किया गया. जिसके बाद अब ये बंदूक और गोले काफी अच्छी हालात में हो गए हैं.
1संग्रहालय में रखी मुगलकालीन बंदूक और तोप के गोले
संग्रहालय में रखी मुगलकालीन बंदूक और तोप के गोले

बंदूक चलाने वालों को कहा जाता था जम्बूराक्ची

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी के अनुसार मुगलकालीन इस बंदूक को जम्बूराक कहा जाता है. उन्होंने बताया कि विशेष तरह की इस बंदूक को चलाने वालों को जम्बूराक्ची कहा जाता था. इस बंदूक को चलाने के लिए हाथी और ऊंट का सहारा लिया जाता था. इन्हीं जानवरों के पीठ पर से इस बंदूक को रखकर चलाया जाता था. इस बंदूक को चलाने से पहले इसमें बारुद भरा जाता और इसके बाद इसे फायर किया जाता था. इस बंदूक का वजन 40 किलोग्राम के करीब है.
जम्बूराक बंदूक की नली
जम्बूराक बंदूक की नली

प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने बताया कि ये बंदूक इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी तक कैसे पहुंची इस बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं हैं. लेकिन, उन्होंने बताया कि ये बंदूक मुगल काल की है. 17वीं शताब्दी के आस-पास इस तरह की बंदूकों इस्तेमाल पठान लोग करते थे. प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी के मुताबिक अनुमानत: 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम दौरान बंदूक और गोलों को इलाहाबाद लाया गया होगा. उस वक्त यूनिवर्सिटी के आस-पास के इलाकों में मेवाती लोग रहते थे और वो बहादुरी के साथ अंग्रेजी सेना से लोहा लेते थे. उस वक्त के स्वतंत्रता सेनानी और मेवातियों के द्वारा इस बंदूक और तोप के गोलों को छिपाकर रखा गया रहा होगा. बाद में उसी स्थान पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय और उसके तमाम विभाग बन गए.

पिछले साल इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मध्यकालीन इतिहास विभाग के तहखाने की सफाई के दौरान इतिहास के छात्रों को ये बंदूक और गोले मिले थे. जिसके बाद इसे उस वक्त विभाग के अध्यक्ष रहे प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी को दिखाया गया. जिसके उन्होंने बंदूक और तोप के गोले की डिजाइन और मॉडल के आधार पर शोध शुरू किया तो जानकारी मिली कि ये बंदूक और गोले मुगलकाल के हैं. जिसके बाद इसे संरक्षित करने के लिए इलाहाबाद संग्रहालय को सौंप दिया गया.


जल्द ही आम लोग देख सकेंगे मुगलकालीन बंदूक और तोप के गोले

इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने बताया कि इस बंदूक और गोले को संभाल कर रखने और उसकी बेहतर देखभाल के लिए संग्रहालय को दे दिया गया है. जो कि आने वाले दिनों में संग्रहालय में लोगों को दिखाने के लिए गैलरी में रखा जाएगा. इस वक्त इस संग्रहालय में आजाद गैलरी का निर्माण हो रहा है. जहां पर आने वाले दिनों में इस बंदूक और तोप के गोलों को रखा जाएगा.

इसे भी पढ़ें : कंगना रनौत की अगली फिल्म 'इमरजेंसी' पर सियासी घमासान, कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने


प्रयाग संग्रहालय या इलाहाबाद संग्रहालय के नाम से मशहूर प्रयागराज के राष्ट्रीय संग्रहालय भवन का आधारशिला 14 दिसंबर 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी. इसके बाद 1954 में ये म्यूजियम आम लोगों के लिए खोल दिया गया. इस संग्रहालय में कई कलाकृतियां और ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं संजोकर रखी गई हैं. यहां मौजूद कलाकृतियों और ऐतिहासिक वस्तुओं के महत्व को देखते हुए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने इसे राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित कर दिया.

Last Updated : Jul 22, 2021, 3:15 PM IST
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