प्रयागराज: संगमनगरी में पितरों की आत्मा की शांति के लिए भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से अशिवन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया जाता है. इस बार पितृपक्ष 2 सितंबर से आरंभ हो गया है, लेकिन पूर्णिमा की श्राद्ध एक सितंबर को की गई थी. प्रयागराज के तीर्थ पुरोहितों की माने तो यहां पर भगवान राम ने भी अपने पितरों का श्राद्ध किया था, जिस कारण से मान्यता है कि प्रयागराज के संगम में अगर पितरों का श्राद्ध किया जाए तो पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- पितृपक्ष 2 सितंबर से आरंभ
- प्रयागराज में सप्त ऋषि की प्रार्थना होती है
- मान्यता है कि प्रयागराज 36 करोड़ देवी देवता वास करते हैं
यह पर्व पूर्वजों के प्रति श्राद्ध का पर्व है. नई पीढ़ी में पूर्वजों के प्रति आस्था के जागरण का पर्व है, जिनकी जिस तिथि पर मृत्यु होती है, उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए. अगर तिथि याद नहीं है तो माता का मातृ नवमी पिता का अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है, जिसकी मृत्यु मार्ग दुर्घटना में हुई हो उसका श्राद्ध चतुर्थी तिथि पर किया जाता है.
प्रयागराज के संगम में बुधवार को शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के अवसर पर श्रद्धालु अपने पितरों को याद करते हुए संगम में स्नान किया, जिसके बाद में तीर्थ पुरोहितों के माध्यम से अपने पूर्वजों का तर्पण किया. ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने भी अपने पूर्वजों का तर्पण प्रयागराज में ही किया था, जिस कारण से इसकी मान्यता और भी बढ़ जाती है.
तीर्थ पुरोहितों की माने तो प्रयागराज के संगम में देश-विदेश से भी लोग आते हैं. यहां पर श्राद्ध करने से फल सीधे पितरों को प्राप्त होता है. यह प्रथा अनादि काल से चली आ रही है. प्रयागराज में सप्त ऋषि की प्रार्थना होती है. पितरों की आराधना होती है. पूरे श्राद्ध माह तक यहां पर लोगों का मजमा लगा रहता है, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते श्राद्ध करने वालों में कमी आई है.